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________________ चरित्र गति हेतु ग्राहगुणसूत्र व प्रचार नेटवर्क मुश्किल से उसे याद आया कि सवा लाख की राशि किसी राजपूत भाई को दी थी। हुंडी की बात भी याद आई और हुंडी के रहस्य की बात भी। जब सवाचंद ने राशि स्वीकार करने की हठ की तो सोमचंद ने कहा-भाई ! मैंने तुम्हारे पर कोई उपकार नहीं किया और न ही सवा लाख की राशि मैंने तुम्हें दी थी। मैंने तो दो मोती खरीदे थे, उनमें से एक का मूल्य सवा लाख मैंने उस राजपूत भाई को चुका दिया और दूसरे के मूल्य के सवा लाख रुपए बाकी हैं वे तुम्हें लेने होंगे। यह कहकर उसने मुनीम को सवा लाख रुपए लाकर सवाचंद को देने का आदेश दिया। सेठ सवाचंद तो हतप्रभ रह गया कि यह दो मोती वाली बात क्या है? उसको चकित होता हुआ देख सोमचंद ने मुनीम को वह हुंडी लाने को भी कहा। ____ हुंडी के साथ सवाचंद की चिट्ठी थी उसे सोमचंद ने सवाचंद को दिखाई और बताया कि तुम्हारी आंखों से जो दो मोती इस चिट्ठी पर गिरे, वे इस पर साफ दिखाई दे रहे हैं, बस मैंने ये ही दोनों मोती खरीद लिए और यह दूसरे मोती का मूल्य तुम संभालो, मुझे कोई राशि देने की जरूरत नहीं है। सवाचंद तो जैसे स्नेह भरे आभार के शीतल जल में डूब कर नहा उठा। वह बोल ही पड़ा-"मैं धन्य हुआ आप जैसे चरित्रवान पुरुष के दर्शन करके, जिसने मेरी गहरी व्यथा समझी और हुंडी स्वीकार करके मुझे घातक स्थिति से बचाया। आपने तो चरित्र सम्पन्नता की उस उत्कृष्टता का परिचय दिया है मुझे कर्जदार भी नहीं बनाया और अधिक राशि देने का प्रस्ताव करके मुझे अनूठा स्नेह दिया है। मैं परम आभारी हूँ।" अभियान की मार्मिकता स्पष्ट करने वाले ग्राह्य गुणसूत्र : प्रश्नोत्तर के माध्यम से चरित्र निर्माण अभियान कोई सामान्य अभियान नहीं है। जैसा ऊँचा इस अभियान का उद्देश्य है, वैसी ही ऊँची इसकी गुणात्मकता भी होनी चाहिए। अभियान की प्रक्रिया में प्रयासरत चरित्र निर्माण के प्रशिक्षणार्थियों, स्वयंसेवकों आदि का प्रधान स्वभाव गुण-ग्राहकता के रूप में ढलना चाहिए। प्रत्येक गुण के स्वरूप को स्पष्टतया समझ कर उसे क्रियान्वित करने के कार्य में एकाग्रता का अभ्यास किया जाना चाहिए। यहां प्रश्नोत्तर के माध्यम से अभियान की मार्मिकता को स्पष्ट करने वाले ग्राह्य गुणसूत्रों का संक्षिप्त स्वरूपांकन सहित विवरण दिया जा रहा है। 1. शिष्य ने पूछा - 'क्या धारण करूँ-शक्ति या शान्ति?' गुरु ने कहा-'शान्ति।' शक्ति की साधना द्वैत की साधना है। उसके प्रयोग के लिए कोई दूसरा चाहिए जबकि शान्ति की साधना अद्वैत की साधना है, उसके लिए एकत्व की अनुभूति ही पर्याप्त है। 2. शिष्य ने पूछा-'क्या बनूं-मृण्मय या चिन्मय?' गुरु ने कहा-'चिन्मय।' क्योंकि चिन्मय ऊर्ध्वगामी होता, जबकि मृण्मय अधोगामी। ऊंचा उठना हल्केपन पर निर्भर करता है, भारी तो नीचे ही गिरेगा। 505
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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