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सुचरित्रम्
3.शिष्य ने पूछा-'सही क्या-उलझना या सुलझना?'
गुरु ने कहा-'सुलझना।' क्योंकि जिसने ममत्व के वशीभूत होकर जीवन को देखा, वह उलझ
गया और जिसने निरपेक्ष होकर मृत्यु को देखा, वह सुलझ गया। 4. शिष्य ने पूछा- आवश्यक क्या, सुनना या सीखना?'
गुरु ने कहा-'सीखना।' क्योंकि दुनिया गलतियों के बारे में सुनती है, पर सबक नहीं सीखती। गलती को मात्र सुनना नहीं, उससे सीखना चाहिए ताकि वह दुबारा न हो। 5. शिष्य ने पूछा- क्या करना-पकड़ना या छोड़ना?'
गुरु ने कहा-'छोड़ना।' क्योंकि पकड़ना भी आसान और छोड़ना भी आसान है, किन्तु पकड़े
हुए को छोड़ देना अत्यन्त कठिन है। 6. शिष्य ने पूछा-'क्या करूँ-चिन्ता या चिन्तन?'
गुरु ने कहा-'चिन्तन।' क्योंकि चिन्तन चांदनी की तरह झिलमिलाता है, जबकि चिन्ता अग्नि
की तरह जलाती है। 7. शिष्य ने पूछा-' श्रेष्ठ क्या, मांगना या देना?'
गुरु ने कहा- देना।' क्योंकि मांगना पुरुषार्थ का कलंक है जबकि देना पुरुषार्थ का वरदान। 8. शिष्य ने पूछा- क्या चाहूँ-मौन या वाचालता?'
गुरु ने कहा-'मौन।' क्योंकि मौन सर्वनाश से बचा सकता है तथा मौनी कभी नुकसान में नहीं रहता, जबकि वाचाल हर वक्त भयभीत रहता है। 9.शिष्य ने पूछा-'सही क्या-जलना या बुझना?' गुरु ने कहा-'बुझना।' क्योंकि क्रोध की आग में जल कर सब कुछ स्वाहा किया, जबकि क्रोध
की आग को बुझा कर सब कुछ बचा लिया। 10. शिष्य ने पूछा- क्या चाहिए-खाली दिमाग या भरा दिमाग?'
गुरु ने कहा-'खाली दिमाग।' क्योंकि खाली दिमाग भगवान् का घर होता है, जबकि भरा
दिमाग शैतान का घर बन सकता है। 11. शिष्य-'क्या -अधिकार या कर्त्तव्य?'
गुरु-'कर्तव्य।' क्योंकि अधिकार में अहं है और अहं के आंखें होती हैं पर वे देखती नहीं, कान है पर सुनते नहीं, पूंछ है पर पशु नहीं, मूंछ है पर मर्द नहीं, परन्तु कर्त्तव्य के पास कुछ
नहीं होते हुए भी सब कुछ होता है। 12. शिष्य-'क्या बनूँ-ताला या चाबी?'
गुरु-'चाबी।' क्योंकि चाबी भले ही छोटी है, पर वह बड़े से बड़े ताले को खोल सकती है।
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