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________________ सुचरित्रम् रखा-ईमानदारी का दामन नहीं छोड़ा। सेठ ने संतोष की सांस ली और नगर से बाहर एक छोटी-सी झोंपड़ी में गरीब-गुजरान करने लगा। कहावते हैं-कोढ़ में खाज और अकाल में अधिक मास की या गरीबी में आटा गीला होने की। अचानक एक लेनदार और आ गया। वह एक राजपूत भाई था और उसका सेठ के यहां पुराना हिसाब किताब था। उसके सवा लाख रूपए रुके हुए थे। उसने भी सेठ के बारे में सुना तो वह भी अपनी राशि वसूल करने के लिए आ खड़ा हुआ। सेठ ने आजीजी से उसे कहा-भाई, मेरी आर्थिक दशा को अभी भारी धक्का लगा है, इसमें थोड़ा सा सुधार होते ही सबसे पहले मैं आपकी पाई-पाई चुका दूंगा। लेकिन ऐसे वक्त में कोई विरला ही साथ देता है। राजपूत ने कमर में बंधी तलवार की मूठ पर हाथ रख कर धमकी दी कि उसे उसका सारा रूपया अभी ही चाहिए। सेठ की आंखों के आगे अंधेरा छा गया कि अब वह क्या करे? कोई नहीं दिखता जो उसकी सहायता कर सकता हो। ___ सेठ सवाचंद ने अहमदाबाद के एक बड़े सेठ का नाम सुन रखा था, परिचय कुछ भी नहीं था। लेकिन उस वक्त तो जान पर आई आफत को टालने का सवाल था। उस सेठ का नाम था सेठ सोमचंद । इष्टदेव का स्मरण करके उसने एक हुंडी सेठ सोमचंद के नाम लिखी की अमुक राजपूत भाई को सवा लाख रुपए का भुगतान कर दिया जाए और हुंडी राजपूत भाई को सौंप दी। सवाचंद मन में घबरा रहा था कि उसकी हुंडी सिकरनी तो है नहीं, तीन चार दिन बाद अधिक क्रोधित होकर लौटने पर यह भाई न जाने क्या करेगा? राजपूत भाई सवा लाख की हुंडी लेकर सेठ सोमचंद के यहां पहुंचा। उसने हुंडी का एक-एक अक्षर पढ़ा, ऊपर से नीचे तक उसकी मन ही मन पूरी जांच पड़ताल की और अपनी याददाश्त पर जोर दिया, लेकिन उसे याद नहीं आया कि वह सेठ सवाचंद नाम के किसी व्यक्ति को जानता है और उसी की है यह सवा लाख की हुंडी। वह विचार में पड़ गया। फिर एक बार और उसने हुंडी पर अपनी पारखी नजर घुमाई, तब उसे न जाने क्या नजर आया कि उसने अपने मुनीम को कहा कि हुंडी लाने वाले को सवा लाख की राशि का चुकारा कर दिया जाए। उस राजपूत भाई को रूपया ही नहीं मिला, बल्कि सेठ सोमचंद की शानदार मेहमाननवाजी भी मिली। उसने लौटकर खुशी-खुशी ये सारी बातें सेठ सवाचंद को सुनाई और उसका धन्यवाद करके वह अपने स्थान को लौट गया। सेठ सवाचंद यह सब सुनकर चकित रह गया कि आखिर यह सब हो कैसे गया? घातक चिंता मिटी और उसने मन ही मन सेठ सोमचंद के प्रति लाख-लाख आभार व्यक्त किया। उधर सेठ सोमचंद भी वह भुगतान करके काफी समय बाद उसे एकदम भुला ही बैठा। सदा समय एक सा नहीं रहता और सवाचंद के दिन भी फिरे। फिर से उसके पास लाखों की सम्पत्ति जमा हो गई। सेठ सोमचंद तो देकर भूल गया-चरित्रनिष्ठा जो उसकी रग-रग में समाई हुई थी, लेकिन लेकर सवाचंद के लिए भूलने की बात कहां थी-उसके भी रक्त में चरित्रनिष्ठा का ही तो संचार था। ब्याज सहित हुंडी की राशि लेकर सेठ सोमचंद को चुकाने के लिए वह अहमदाबाद पहुंचा। कोई किसी को जानता-पहचानता नहीं था सो पहले बड़ा असमंजस रहा, लेकिन सवाचंद ने सारी बात बताई और अपना अमित आभार प्रकट करते हुए राशि सोमचंद के सामने धर दी। बड़ी 504
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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