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________________ सुचरित्रम् किसी समारोह का भोज आदि का आयोजन नहीं करूँगा/करूँगी। अपने यहां आयोजित सामूहिक भोज में कुल 15 आइटम से ज्यादा नहीं बनवाऊँगा/बनवाऊँगी। इस भोज में जमीकंद का उपयोग नहीं होगा। 4. मैं अपने जीवन शुद्धि एवं सादगी हेतु धूम्रपान, पान पराग, गुटखा या अन्य नशीले पदार्थ का सेवन, हिंसापूर्ण सौन्दर्य प्रसाधनों व असली रेशमी परिधानों का उपयोग तथा नॉन-वेज और संभव हो तो किसी भी होटल में भोजन नहीं करूँगा/करूँगी। सभी सप्त कुव्यसनों के त्याग को मजबूत बनाकर निर्व्यसनी जीवनशैली के प्रचार-प्रसार में भाग लूँगा/लूँगी। 5. मैं व्यापार-व्यवसाय में नकली को असली बताने का मायाचार या अन्य कोई छल-कपट, श्रम का शोषण आदि अनैतिक, अमानवीय तथा तस्करी आदि राष्ट्र विरोधी कार्य नहीं करूँगा/करूँगी। धन संग्रह व संचय से दूर रह कर मैं सबके साथ संविभाग एवं मर्यादाओं के आधार पर आर्थिक दृष्टि से भी वात्सल्य एवं स्नेह भरा व्यवहार करूँगा/करूँगी। 6. मैं राज-समाज के काम-काज में रिश्वत न लूँगा/लूँगी और न दूंगा/दूंगी तथा भ्रष्टाचार के किसी भी ककत्य में लिप्त नहीं होऊँगा/होऊँगी और यथाशक्य भ्रष्टाचार उन्मूलन के अभियानों में सहायक बनूँगा/बनूँगी। 7. मैं धार्मिक एवं पारमार्थिक कार्यों के लिए अपनी कुल आमदनी का दस प्रतिशत भाग अथवा दो घंटा प्रतिदिन का समय अथवा वर्ष भर में पांच या तीन हजार की सामग्री का दान आरक्षित रखूगा/रलूँगी। प्रतिदिन समय नहीं दे सका तो वर्ष में एक माह पूरी तरह चरित्र निर्माण अभियान के कार्य में संलग्न रहूँगा/रहूँगी। ___ इन सात प्रतिज्ञाओं का संक्षिप्त नामकरण इस प्रकार है-1. समभाव-विकास, 2. तप के साथ आडम्बर नहीं, 3. विवाह में दहेज-दिखावा नहीं, 4. जीवन में शुद्धि-सादगी, 5. धंधे में छल नहीं, 6. भ्रष्टाचार निषेध तथा 7. धनदान-समयदान। द्वितीय चरण की परीक्षा : प्रथम चरण के समान ही इस चरण की भी प्रक्रिया चलेगी तथा प्रमाण-पत्र 'चरित्रनिष्ठ' के अलंकरण से युक्त होगा। तृतीय चरण-चरित्रलीन : तृतीय एवं अन्तिम चरण का संकल्प-पत्र (प्रारूप) इस प्रकार का होगा संकल्प-पत्र (तृतीय चरण) 1. मैं नियमित रूप से प्रतिदिन सामायिक, स्वाध्याय या अन्य धर्मानुष्ठान, पाक्षिक प्रतिक्रमण या आत्मालोचना का चिन्तन एवं प्रतिमाह दो आयंबिल, एक उपवास अथवा अन्य तपस्या करके अपने ज्ञानमय आचरण का विकास करूँगा/करूँगी। मेरा चिंतन रहेगा कि मैं सामूहिक संयम तथा त्याग के भावों को विकसित करूँ, परमात्म भावों में पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण रखू, प्रत्येक प्राणी के साथ आत्मीयतापूर्ण मैत्री का भाव हो तथा सबके अभ्युदय और आध्यात्मिक एवं चरित्र विकास में अपनी शक्ति का प्रयोग-उपयोग करने हेतु सदैव तत्पर रहूँ। 492
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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