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________________ नव-जागरण का बहुआयामी कार्यक्रम नहीं करूँगा/करूँगी। इन सात प्रतिज्ञाओं का संक्षिप्त नामकरण इस प्रकार है-1. मानव धर्म एवं अहिंसक जीवनशैली में आस्था, 2. नित्य कर्म सुधार, 3. कुरीति-उन्मूलन, 4. व्यसन मुक्ति, 5. नैतिक व्यापार, 6. पर्यावरण व जीव रक्षण तथा 7. आत्म हत्या व भ्रूण हत्या निषेध। दिनांक :. हस्ताक्षर संकल्पकर्ता साक्षी : 1. स्थानीय प्रतिष्ठित व्यक्ति 2. चरित्र निर्माण अभियान का सदस्य प्रथम चरण की परीक्षा : एक वर्ष की समाप्ति पर प्रथम चरण संकल्प-पत्र भरने वाला व्यक्ति अपने चरित्र निर्माण तथा अभ्यास का विवरण देगा और यदि उसका आचरण सामान्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट श्रेणियों में से किसी भी श्रेणी में निर्धारित मानदंडों के अनुकूल परीक्षित होगा तो वह द्वितीय चरण का संकल्प-पत्र भर सकेगा। इसके लिए प्रथम चरण के परीक्षक की स्वीकृति आवश्यक होगी। फिर वह केन्द्रिय चरित्र निर्माण समिति द्वारा अधिकृत परीक्षक या पर्यवेक्षक को अपने आचार-सुधार को स्तरीय बनाने का आश्वासन देगा, तभी वह द्वितीय चरण का संकल्प-पत्र भर सकेगा। इसके साथ ही उसे 'चरित्रशील' होने का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा तथा तदनसार वह इस 'अलंकरण' का प्रयोग इच्छा हो तो अपने नाम के साथ करने का अधिकारी होगा। द्वितीय चरण : प्रथम चरण के संकल्प-पत्र के अभ्यास एवं चरित्र सुधार से स्वयं संकल्पकर्ता एवं पर्यवेक्षक के पूर्ण संतोष के पश्चात् ही इस श्रेणी का संकल्प-पत्र भरा जा सकेगा। यदि संतोष में कमी होगी तो प्रथम श्रेणी के संकल्प-पत्र का ही एक और वर्ष के लिए नवीनीकरण किया जाएगा। इस द्वितीय श्रेणी का संकल्प-पत्र (प्रारूप) निम्नानुसार होगा - संकल्प-पत्र (द्वितीय चरण) 1. मैं प्रतिदिन अपने मन, वचन तथा कर्म के समभाव के विकास की दृष्टि से सामायिक/स्वाध्याय/ चिन्तन-मनन/आत्मालोचना का अभ्यास/तपाचरण (पांच तिथियों को रात्रि भोजन व जमीकंद त्याग एवं ब्रह्मचर्य पालन से लेकर उच्चतर कोई भी) को नित्य कर्म में निश्चित रूप से स्थान दूंगा/दूंगी। मेरे चिन्तन के विषय रहेंगे कि विनय एवं विवेकमय व्यवहार मेरे जीवन का आदर्श है, मैं किसी के अहित का, असुख का, अकल्याण का आचरण नहीं करूँगा/करूँगी और मैं सेवाभाव के साथ पारस्परिक सहयोग को प्रमुख मागूंगा/मानूँगी। 2. मैं आत्मशुद्धि कारक तपस्या अथवा अन्य किसी अनुष्ठान के उपलक्ष में कोई भी आडम्बर, जैसे जुलूस, दिखावा, भोज, भेंट आदि न तो करूँगा/करूँगी और न ऐसे आडम्बर को बढ़ावा दूंगा/दूंगी। 3. मैं अपने यहां वैवाहिक आदि समारोह कार्यों में दहेज की मांग, महंगे बाजों की धूम, फूलों की सजावट तथा किसी भी रूप में वैभव का प्रदर्शन या आडम्बर नहीं करूँगा/करूँगी और पांच सितारा होटलों में अथवा जिन होटलों में सामिष और निरामिष आहार सम्मिलित बनता हो वहाँ 491
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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