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________________ सुचरित्रम् बीच संबंध का निर्णय इस तथ्य पर किया जाना चाहिए कि कोई व्यक्ति अपने जीवन के तथ्यपरक अनुभव से दोनों के बीच के संबंध को किस रूप में आंकता है। वैसे एक अमेरिकन धर्मवेत्ता प्रोफेसर जे.एफ हॉट ने धर्म और विज्ञान के संबंधों को चार कोणों से देखने, समझने और निर्णय लेने के बारे में अपने विचार रखे हैं। पहला कोण विश्वास का है कि धर्म और विज्ञान मूल रूप से ही परस्पर में विरोधी है। कई विज्ञानवेत्ता भी यह मानते हैं कि धर्म को विज्ञान के अनुकूल कभी भी नहीं बनाया जा सकेगा, क्योंकि विज्ञान के समान धर्म कभी भी अपने सिद्धान्तों को स्पष्ट रीति से प्रमाणित नहीं कर सकेगा। विज्ञान हमेशा अपने प्रस्तावों तथा विचारों को अनुभव के आधार पर जांचता है, जबकि धर्म के विचार निष्पक्ष साक्ष्य के माध्यम से प्रयोगात्मक रूप से प्रमाणित नहीं किए जा सकते हैं। आज भी अपने आपको आस्तिक मानने तथा ईश्वर द्वारा सृष्टि रचना में विश्वास रखने वाले ग्रहनक्षत्र, भौतिकी और जैविकी के क्षेत्र में प्राप्त वैज्ञानिक उपलब्धियों को मानने से इन्कार करते हैं। अब धर्म व विज्ञान के संबंधों को देखने का दूसरा कोण है तुलनात्मक। वे वैज्ञानिक और धार्मिक पुरुष जो धर्म तथा विज्ञान के बीच विरोध को नहीं मानते, तर्क देते हैं कि अपने-अपने स्पष्ट रूप से परिभाषित क्षेत्रों में धर्म और विज्ञान दोनों सही है। विज्ञान के स्तरों के अनुसार धर्म का मूल्यांकन अपने-अपने कार्य की दृष्टि से होता है। विज्ञान प्राकृतिक जगत् का परीक्षण करता है तो धर्म उससे बहुत ऊपर अंतिम सत्य की खोज करता है। विज्ञान प्रकृति में पदार्थों का घटनाक्रम क्या होता है-इस पर विचार करता है तो धर्म प्रत्येक अस्तित्व पर गहराई से सोचता है। विज्ञान का मुख्य ध्यान कारणों पर तो धर्म का मुख्य ध्यान परिणामों पर रहता है। तीसरा कोण है जीवन्त सम्पर्क का कि धर्म और विज्ञान के संबंधों को तदनुसार समझा जाए। यह कोण दोनों के बीच सार्थक सम्पर्क एवं चर्चा का पक्षपाती है। यह चाहता है कि ज्ञान के सभी क्षेत्रों में शोध और सहयोग से शाश्वत मानवीय जिज्ञासा को सदैव प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। जीवन्त सम्पर्क के समर्थकों का विश्वास है कि वैज्ञानिक जानकारियों से धार्मिक श्रद्धा को अतिशय विस्तार मिलता है एवं श्रद्धा जागरूक व सशक्त बनती है। इसी प्रकार धार्मिक सिद्धान्त वैज्ञानिक प्रयोगों को सम्बल प्रदान कर सकते हैं। इस सम्पर्क में ईश्वर के अस्तित्व को वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणित करने के तर्क पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता है ताकि आपसी विवाद बढ़े नहीं। यह कोण चाहता है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों का धार्मिक महत्त्व प्रतिपादित किया जाए। मानव चरित्र के निर्माण में अन्ततः धर्म और विज्ञान दोनों की भूमिकाएं हैं और दोनों का योगदान अपेक्षित रहता है। जैसे आज के वास्तविक संसार का स्वरूप समझने के लिए मस्तिष्क कार्य करता है, उसी रूप में धर्म और विज्ञान का पारस्परिक सम्बन्ध मानना चाहिए तथा मनुष्य के कृतित्व का कहीं भी विस्मरण नहीं होना चाहिए। चौथा कोण है प्रमाणीकरण का। जीवन्त सम्पर्क से यह आगे का कोण है। इस कोण के समर्थक मानते हैं कि धर्म को समूचे वैज्ञानिक उपक्रम का सहायक होना चाहिए। सच में धर्म की इस मान्यता ने कि यह विश्व एक मर्यादित, सम्बद्ध तथा व्यवस्थित घटक है-विज्ञान की ज्ञान-पिपासा को जागृत बनाए रखा है। यथार्थ में विज्ञान इसी पूर्व विश्वास पर अपनी जड़ें जमाता है कि यह विश्व समग्र वस्तुओं की न्यायपूर्ण व्यवस्था पर टिका है और मानव मस्तिष्क उसकी सम्पूर्ण रूपरेखा का ज्ञान करने में समर्थ है। 448
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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