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रहस्यों, संभावनाओं तथा प्रत्यक्ष उपलब्धियों से भरा है यह संसार!
भी दुरुपयोग शुरु हो जाता है। ऐसे दुरुपयोग की साफ तस्वीर आज के जमाने में देखी जा सकती है। ____ आधुनिक वातावरण धन लिप्सा एवं सत्ता लालसा की आंधी से इतना धूल धूसरित हो गया है कि सुधारने की दिशा में काम करने वाले प्रबुद्ध जनों को भी कई बार निराशा का सामना करना पड़ता है। निराशा का कारण यही होता है कि सभी प्रकार की मानवहित की उपलब्धियों का निजी स्वार्थ पूर्ति हेतु दुरुपयोग हो रहा है। इससे मानवीय मूल्यों का क्षरण ही नहीं होता, बल्कि लोप भी होता जाता है। ऐसे में दलित एवं पीड़ित लोगों की दुःख गाथाएं सुन-देख कर ही दिल दहल जाता है। ___परन्तु, यह अटल सत्य है कि प्रत्येक युग में चरित्रशील व्यक्ति संसार के विशाल रंगमंच पर उतर कर सामने आते हैं और नई उत्क्रान्ति का प्रसार करके समग्र वातावरण को सर्वजन के हित एवं सुख हेतु नया रूप-स्वरूप प्रदान करते हैं। आज भी (स्थाई निराशा का कोई काम नहीं) प्रबुद्ध एवं युवा वर्गों के चरित्र-निर्माण के सत्प्रयास अवश्यमेव सफल होंगे तथा संसार के वातावरण में नया सुखद मोड़ आएगा। इसके लिए आवश्यकता है कठिन से कठिन परिस्थितियों से लोहा लेने की और सदाचार के समर्थन में नई जन-भावना जगाने की। अब हमारे यहाँ भी चरित्र-निर्माण की हवा बहने लगी है और वातावरण सुधार की इच्छाशक्ति की झलक दिखाई देने लगी है। ऐसे में यदि चरित्रनिर्माण का एक सतत सक्रिय अभियान पूरी उमंग और निष्ठा के साथ चलाया जाए तो सुधार की प्रक्रिया में तेजी लाई जा सकती है। ___ जरा अपनी दृष्टि को गहराई तक ले जावें तो अवश्य समझ में आएगा कि यह संसार सचमुच ही बहुविध चरित्रों का एक विशाल रंगमंच है। जितनी भी गतिविधियाँ इस रंगमंच पर नजर में आती है, उनको दो ही रूपों में देखा जा सकता है। एक तो यह है कि यदि चरित्रशीलता है और उसका चारों
ओर फैलाव है तो सभी शक्तियों का सदुपयोग है तथा उपलब्धियों के माध्यम से मानव सेवा का उपक्रम है। दूसरा, यदि चरित्रहीनता का चारों ओर माहौल है तो वहाँ उन्हीं श्रेष्ठ उपलब्धियों का भी दुरुपयोग और मानवता विरोधी कार्यों की श्रृंखला का चलता हुआ क्रम दिखाई देगा। चरित्र निर्माण के क्षेत्र में कार्य करने वालों को आकलन करना होगा कि समाज व संसार में प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग तथा सदुपयोग करने वालों का क्या अनुपात है? हमें अपने (आन्दोलनकारी) कार्यकलापों से चरित्रनिष्ठा के दायरे को बढ़ाते हुए सदुपयोग की प्रवृत्ति को इतनी प्रखर बनानी है कि दुष्प्रयोग की दुष्प्रवृत्ति कम होकर बेअसर बन जाए। एक प्रकार से पूरी तरह संसार का संचरण चरित्र के संदर्भ में प्रसारित एवं पुष्ट बन जाए। चरित्र ही बनाता है बिम्ब, छवियाँ और महान विभूतियाँ :
सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक रूप से यह सत्य स्थापित है कि चरित्र के महात्म्य पर ही किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व पूरी भीड़ में से ऊपर उभरता है जैसे कि वह दीप्तिमान बिम्ब हो। यही बिम्ब जब अपने जीवन के विस्तृत व्यवहार एवं काल प्रवाह में उस दीप्ति को बनाए रखता है अथवा उसे वह प्रवर्धमान करता रहता है तब उसका रूप स्थायित्व में बदल जाता है और उसका उल्लेख छवि (इमेज) के रूप में होने लगता है। छवि होती है सफल व्यक्तित्व के प्रतिस्थापन की (पुष्टि की)।
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