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________________ / सुचरित्रम् 16 वैज्ञानिकों की भौतिक उपलब्धियाँ आश्चर्यजनक रही हैं : आज से सौ वर्ष पहले की स्थिति पर नजर डालें तो लगेगा कि तब विज्ञान की प्रगति में ऐसा कुछ नहीं था जिस पर दांतों तले अंगुली दबाई जाती । यों तो सबसे पहले आग की खोज हुई तो लोगों की जीवनशैली में बड़ा बदलाव आया। फिर पहिये की खोज ने आवागमन के साधनों में नया ही चमत्कार ला दिया, लेकिन अभी-अभी जो सूचना तकनीक की नई-नई खोजें हुई हैं, उनसे तो सारे संसार में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो रहे हैं। सूचना तकनीक के विकास में तो भारत का भी पहले क्रम का योगदान है - कम्प्यूटर सोफ्टवेअर में भारत का कोई सानी नहीं। वैसे संवाद प्रेषण, जानकारी संचयन आदि में कम्प्यूटर हार्ड व सॉफ्टवेअर, इन्टरनेट, वेबसाइट, ई-मेल, मोबाइल फोन आदि संसाधनों ने सारे संसार को इस तरह घनिष्ठता एवं समीपता से जोड़ दिया है, जैसे कि पूरा संसार एक छोटा-सा गाँव हो गया हो । अन्यान्य क्षेत्रों के सिवाय चिकित्सकीय क्षेत्र में भी अद्भुत कारनामे सामने आ रहे हैं। टेस्ट ट्यूब बेबी, भ्रूण प्रत्यारोपण, अंग प्रत्यारोपण के बाद अब समस्वरूपांकन (क्लोनिंग ) के काम में भी कामयाबी मिल गई है। इस क्लोनिंग से जहाँ अनेक दुविधाएं पैदा होने की आशंकाएं हैं, वहां इसका एक उपयोगी पहलु भी बताया जा रहा है कि इसके माध्यम से अमुक कोशिका से ऐसा प्रयोग किया जा सकेगा, जिससे नष्ट हो रहे शारीरिक अंगों का दुबारा अंकुरण करा कर उन्हें स्वस्थ अंग-प्रत्यंगों के रूप में बदला जा सके। अन्य अनेक क्षेत्रों में नये-नये अनुसंधान सामने आ रहे हैं, जिन्हें आश्चर्य जनक माना जा रहा है। यहाँ इस वैज्ञानिक प्रगति के पीछे रही हुई शक्ति की पहचान भी की जानी चाहिये। इस प्रगति में भी वही शक्ति अनिवार्य रूप से चाहिये जो आध्यात्मिक शोधों में चाहिये - वह है चरित्र की शक्ति । यों कहें कि इसमें चरित्र की विशिष्ट शक्ति चाहिये कि विज्ञान को विनाशक न बनाया जा सके, जैसा कि आज हो रहा है। कम से कम आयुध क्षेत्र की उपलब्धियाँ महाविनाश की तलवार सिर पर लटकाए हुए है। शक्तिशाली व्यक्तियों, समाज नायकों तथा राष्ट्र शासकों में यदि चरित्र हीनता का कुसंस्कार रहता है और विज्ञान की प्रगति इसी क्रम में चलती रहती है तो कोई सन्देह नहीं कि स्वार्थवादिता की आग में सम्पूर्ण मानवता और संसार जल- झुलस जायेगा। इस दृष्टि से विज्ञान क्षेत्र में भी चरित्र की महत्ता पर विशेष ध्यान देने की जरूरत I सच में यह संसार बहुविध चरित्र का ही विशाल रंगमंच है : व्यापक रूप से संसार की दृश्यावलियों पर दृष्टिपात किया जाए तो यह तथ्य स्पष्ट उजागर होता है कि समस्त उपलब्धियों की सही आधारभूमि चरित्र सम्पन्नता ही है। कारण, जब-जब चरित्रहीनता उभरी और फैली है, तब-तब व्यक्ति-व्यक्ति के बीच, संगठन संगठन के बीच, राष्ट्र - राष्ट्र के बीच, व्यक्ति, संगठनों व राष्ट्रों के बीच कटुता बढ़ी है, द्वन्द्व पैदा हुए हैं और युद्ध तक छिड़े हैं। क्योंकि चरित्रहीनता से नैतिकता तथा दायित्व की भावना लुप्त हो जाती है और स्वार्थ सबसे ऊपर बैठ जाता है। तब बुरे साधनों का बुरा उपयोग रुका हुआ हो तो फिर भड़क जाता है, लेकिन अच्छे साधनों का
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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