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रहस्यों, संभावनाओं तथा प्रत्यक्ष उपलब्धियों से भरा है यह
ज्ञानियों एवं दार्शनिकों की गूढ़ दृष्टि ने दिखाई आध्यात्मिक राहें:
संसार के अनेक देशों में ऋषि-मुनियों, ज्ञानियों, साधकों, सन्तों, दार्शनिकों और धर्म प्रवर्तकों ने अपनी साधना, ध्यान, तप आदि की शक्तियों के बल पर नये धर्म सिद्धान्त प्रवर्तित किये, दर्शन की अनेक धाराएं बहाई और साध्य के नये आयाम उपस्थित किये। इस महद् कार्य में भारत निश्चित रूप से विश्व गुरु रहा । यहाँ जिस प्रकार की आध्यात्मिक राहें बनी, वे प्रकाश स्तंभ रूप रही जिनके प्रकाश में समस्त संसार ने अपने उत्थान के उपाय खोजे ।
मनुष्य की आकांक्षा केवल जीने की ही नहीं होती, बल्कि उसकी मूल आकांक्षा गौरव के साथ जीने की होती है और यही गौरव वह अपने विविध उपक्रमों से प्राप्त करना चाहता है। उसकी सही आकांक्षा न केवल धर्म-दर्शन के प्रतिफलन में अपितु श्रेष्ठ संस्कृति एवं सभ्यता के सृजन में भी अभिव्यक्त होती । इसी मूल आकांक्षा के निर्वाह हेतु ही श्रेष्ठ चरित्र पर आधारित परम्पराओं का ढांचा रचा जाता है ताकि मनुष्य की गौरव प्राप्त करने की आकांक्षा ही नहीं, मनुष्यता की गौरव गरिमा भी अक्षुण्ण बनी रहे।
भारत के धर्म और दर्शनों का यही आधार मुख्य रहा है। हमारे यहां की धर्म और दर्शन की प्रगति भी अद्भुत रही है । ऐतिहासिक दृष्टि से 1500 ईसा पूर्व से भारतीय विचारधारा का जो विकास होना शुरू हुआ, वह निरन्तर चलता रहा है- वेद, उपनिषद्, पुराण, रामायण, महाभारत, जैन, बौद्ध, शैव, वैष्णव आदि के दर्शन प्रवाह में अनेक अमूल्य सिद्धान्त प्रकट हुए जो भारतीय धर्म-दर्शन की अमूल्य निधि है। सारे संसार के दर्शनों पर इसकी छाप पड़ी है। इस निधि के उल्लेखनीय रत्न हैंवेदों का सृष्टि विज्ञान, उपनिषदों का आत्मज्ञान, जैन दर्शन का अहिंसा और अनेकान्तवादी यथार्थ, बौद्ध मत का नैतिक आदर्शवाद, भगवद्गीता का आस्तिकवाद, सांख्यदर्शन का जीव - प्रकृतिवाद, नैयायिक दर्शन का तत्त्व निरूपण, चित्तवृत्ति निरोधक योगदर्शन, चार्वाक का लोकायत दर्शन आदि । ये तो कुछ बानगियाँ हैं, बाकी गूढ़ सिद्धांतों का अम्बार है, जिनके अनेक रहस्यों का अभी भी उद्घाटन शेष है।
दर्शनशास्त्रों के प्रादुर्भाव के उपरान्त जैन एवं बौद्ध दर्शनों के विप्लव ने भारतीय विचारधारा के क्षेत्र में एक विशेष ऐतिहासिक युग का निर्माण किया, क्योंकि इस विप्सव ने कट्टरता की पद्धति को अन्ततः उखाड़ कर ही दम लिया तथा एक समालोचनात्मक दृष्टिकोण को उत्पन्न करने में सहायता दी (भारतीय दर्शन खंड 2 अध्याय 1 द्वारा सर्वपल्ली राधाकृष्णन्) ।
आध्यात्मिक क्षेत्र के रहस्य और उनका उद्घाटन एक आंतरिक प्रक्रिया के बल पर होता है, जिनकी जिज्ञासा, साधना और अवाप्ति का सूक्ष्म संचरण मन की तरंगों, ध्यान के योगों तथा आत्मिक चिन्तन धाराओं में से होकर गुजरता है । परन्तु इस क्षेत्र की प्रमुख आधारभूमि चरित्र - संपन्नता ही रहती है । चरित्र की उत्कृष्टता के बिना न तो साहसिकता का समुद्भव हो सकता है और न ही रहस्य भेदन की प्रक्रिया की सफलता । पुष्ट मूलाधार पर ही गति अग्रसर हो सकती है।
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