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संकल्पित, समर्पित व सर्वस्व सौंपने की तत्परता ही युवा की पहचान
सना कपड़ा खून से धोने पर कभी स्वच्छ नहीं होता, उसकी स्वच्छता पानी से धोने पर ही प्राप्त हो सकेगी। इसी तरह असमाधि देकर समाधि चाहना निरर्थक है। आत्मिक शक्ति का एक प्रवाह बह रहा है-मन, वचन, काया के योगों से। इस शक्ति प्रवाह का उपयोग व्यक्तित्व विकास की दिशा में किया जाना चाहिए, किन्तु इसी शक्ति प्रवाह का दुरूपयोग किया जाय तो उससे व्यक्तित्व का विनाश होगा। इस शक्ति प्रवाह का श्रेष्ठतम उपयोग इससे बढ़कर क्या होगा कि अपने और दूसरों के चरित्र को गुणविभूषित धवलस्वरूप प्रदान किया जाए? कुछ उदाहरण देखिए___1. एक व्यक्ति को एक टॉर्च मिली, उसकी मदद से उसने अंधेरे में खोई अपनी एक वस्तु खोज ली और वह प्रसन्न हो गया। दूसरे व्यक्ति को भी टॉर्च मिली, लेकिन उसने फालतू में ही इधर-उधर रोशनी बिखेरते हुए टॉर्च की बैटरी बरबाद कर दी और आखिर में उदासी लेकर अंधेरे में भटक गया। ___2. एक व्यक्ति को अमृत कलश प्राप्त हुआ जिसके चूंट पीकर वह अमर हो गया। दूसरे व्यक्ति
को भी अमृत कलश मिला, जिससे उसने अपने पांव धोकर अमृत को बहा दिया। ____ 3. एक व्यक्ति को दैविक कृपा से चिन्तामणि रत्न प्राप्त हुआ, उसने उससे मनोवांछित फल प्राप्त कर लिए। दूसरे व्यक्ति ने उसी चिन्तामणि रत्न को टुकड़े-टुकड़े करके फैंक दिया और अपने ही हाथों अपनी बरबादी कर ली। यह सब व्यक्ति की सदुपयोग एवं दुरूपयोग की प्रज्ञा पर निर्भर करता है कि वह किस प्रज्ञा से कौनसा उपयोग करता है? शक्ति का सदुपयोग किया जाए तो उसके व्यक्तित्व का भव्य विकास हो सकता है तथा उस व्यक्तित्व के प्रभाव से पिछड़ेपन से त्रस्त हजारोंलाखों-करोड़ों लोगों का उत्थान साधा जा सकता है और यदि उस प्राप्त शक्ति का दुरूपयोग किया जाए तो उससे सर्व विनाश की ही स्थिति सामने आती है। युवा शक्ति के सदुपयोग एवं दुरूपयोग के इस विश्लेषण से युवानों को विशेष शिक्षा लेनी चाहिए तथा सदुपयोग के बिन्दु को केन्द्रस्थ बना लेना चाहिए, क्योंकि युवावस्था की प्राप्त शक्ति टॉर्च, अमृत कलश या चिन्तामणि रत्न से भी अधिक मूल्यवान होती है। जड़ शक्ति से चेतन शक्ति का क्या मुकाबला? युवा शक्ति यदि पूर्ण सदुपयोग से विस्तार पावे तो एक व्यक्ति,एक वर्ग, एक समाज या एक राष्ट्र क्या, सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित कर सकती है-मानव चरित्र में शुभ परिवर्तन लाकर समूची व्यवस्था को चरित्र सम्पन्न बना सकती है। ___ मन, वचन, काया के इन तीन योगों के शक्ति प्रवाह को हम अच्छी तरह से समझें। इन तीनों योगों का उपयोग हम अगर दूसरों को समाधि देने में करते हैं तो हमें भी समाधि प्राप्त होती है, अन्यथा असमाधि। दुःख देने में यदि इस शक्ति प्रवाह का दुरूपयोग किया जाता है तो स्वयं के व सबके दुःखों में वृद्धि ही होगी। इन तीनों योगों में हम मनोयोग की शक्ति को अच्छी तरह से समझने का प्रयास करें। यह भी जान लें कि चरित्र निर्माण, चरित्र सुधार अथवा चरित्र विकास की किसी भी प्रक्रिया में इन तीनों योगों का तथा मुख्य रूप से मनोयोग का विशिष्ट महत्त्व होता है, क्योंकि हमारी मनोयोग की शक्ति ही वचन योग एवं काय योग में संलग्न होती है। मनोयोग की सक्रियता के बिना हमारा वचन योग तथा काय योग कार्यरत नहीं होता है। यह बात हमारे तथा समनस्क प्राणियों पर लागू होती है। अमनस्क प्राणी बिना मनोयोग के भी वचन व काय योग से प्रवृत्ति करते हैं, किन्तु हमारी
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