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सुचरित्रम्
व्यक्तित्व के विशिष्ट गुणों का उल्लेख इस रूप में किया जा सकता है-1. उत्तरदायित्व की भावना, 2. सम्मान प्रदर्शन, 3. नैतिकता का स्वरूप, 4. यौन नैतिकता, 5. कष्ट सहिष्णुता, 6. मनोवृतियों की रचनात्मकता, 7. व्यवहार के प्रतिमानों का निर्धारण, 8. पालन-पोषण एवं प्रशिक्षण आदि। स्व की धुरी पर घूमता है एक सफल व्यक्तित्व और परहित के लिए सर्वदा तत्पर रहता है वह।।
व्यक्तित्व कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे प्रचंड, तेजस्वी, ईमानदार, मधुर-स्नेहिल, मोहक आदि और इनके प्रभाव भी इसी प्रकार विविध होते हैं। समर्थ व्यक्तित्व वाले व्यक्ति और व्यक्तित्वहीन व्यक्ति के प्रभाव में ही बड़ा अन्तर होता है, बल्कि व्यक्तित्वहीन एक प्रकार से प्रभावहीन होता है। सोचें कि प्रत्येक परिवार में एक कर्ता या मुख्य संचालक होता है। कोई-कोई संचालक घर चलाने में सफल होता है तो कोई प्रयत्न करने पर भी असफल रहता है। ऐसा क्यों होता है? जिसको असफलता मिलती है, वह दूसरों को कोसता है और उन्हें अपने अपयश के कारण बताता है। परन्तु मनुष्य अक्सर करके अपनी कमजोरी और अपने दोषों को स्वीकार नहीं करता है
और यही दिखलाने की कोशिश जारी रखता है कि वह निर्दोष है तथा सारा दोष दूसरों के सिर मढ़ देता है। सच में असफल मुख्य संचालक को स्वयं से ही यह प्रश्न पूछना चाहिए कि क्यों कई लोग अपने घर अच्छी तरह चलाते हैं, किन्तु वह क्यों नहीं चला सका? जब अन्तर पर गहरा विचार किया जाएगा, तब व्यक्ति और व्यक्तित्व का अन्तर भी उसको स्पष्ट हो जाएगा। सच्चा मनुष्यत्व या व्यक्तित्व ही वह तत्त्व है जो सब पर प्रभाव डालता है-व्यक्ति के कर्म तो उसकी बाह्य के रूप से प्रकट होगा ही-कारण के रहते कार्य का आविर्भाव अवश्यंभावी है।
आज युवा वर्ग को व्यक्तित्व की विशेषताओं को हृदयंगम करके अपने व्यक्तित्व को प्रचंड रूप देना चाहिए, क्योंकि उन्हें चरित्रहीनता के चक्रव्यूह को छिन्न-भिन्न करना है। जो व्यक्तित्व प्रचंड होगा, वह दुर्जन से दुर्जन तथा क्रूर से क्रूर व्यक्ति के दिल को भी दहला देगा और साथ ही उनके मन में पश्चात्ताप की धारा बहा देगा। प्रचंड व्यक्तित्व को एक मशाल के मानिन्द मानिए और ऐसी प्रज्वलित मशाल, जो एक नहीं, सैंकड़ों-हजारों-लाखों बुझी हुई मशालों को जलाती जाती हैं-उनमें प्रचंडता के प्राणतत्त्व भरती हुई चली जाती है। फलस्वरूप एक तेजोमय वातावरण की सृष्टि होती है, जो शुभ परिवर्तनों को साकार करने में जादू जैसा काम करता है। समय की मांग है तो यह कि आज का युवा वर्ग अपनी पहचान बनावे, अपने मंद पड़े व्यक्तित्व को संवारे और उपयुक्त भूमिका के साथ चरित्रहीन वृत्तियों तथा मनोवृत्तियों को बदल देने के प्रभावशाली अभियान का सहभागी बने।
आत्म-नियंत्रण, मनोबल एवं संतुलन में है स्वस्थ विकास का रहस्य : ___ व्यक्ति है और व्यक्तित्व नहीं है, मनुष्य है और मनुष्यत्व नहीं है अथवा मानव है और मानवता नहीं है तो वैसे व्यक्ति, मनुष्य या मानव को जीवन्त नहीं मान सकते हैं। व्यक्ति शरीर है तो व्यक्तित्व उसकी आत्मा होती है। अब बिना आत्मा के शरीर का क्या मूल्य है-यह सभी भलीभांति जानते हैं। अतः आवश्यक है कि अपने प्राणतत्त्व का संचार किया जाए तथा अपने व्यक्तित्व का निर्माण ही नहीं, उसके सम्यक् एवं स्वस्थ विकास के उपाय भी किए जाए। व्यक्तित्व के स्वस्थ विकास का रहस्य इन उपलब्धियों में बताया गया है
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