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________________ संकल्पित, समर्पित व सर्वस्व सौंपने की तत्परता ही युवा की पहचान डालता है, जो अपने संगी-साथियों पर जादू सा असर दिखाता है और जो शक्ति का महान् केन्द्र बन जाता है। ऐसे शक्तिसम्पन्न अन्तर्मानव का व्यक्तित्व ऐसा पथ-प्रदर्शक बन जाता है, जिसका अनुसरण करने के लिए लोगों के बीच होड़ मच जाती है। आधुनिक युग में भी ऐसे प्रचंड व्यक्तित्व के दर्शन हुए हैं गांधी जी के अन्तर्मानवीय व्यक्तित्व में। शास्त्रों, ग्रंथों तथा इतिहास के पन्नों पर अनेक प्रचंड व्यक्तित्वों का उल्लेख मिलता है, जो आज भी युवा वर्ग के लिए प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। ___ क्या आप देखते हैं कि अपने आसपास की सारी दुनिया में क्या हो रहा है? अपना प्रभाव बनाना और चलाना-यह हर कोई कर रहा है। हमारी शक्ति का कुछ अंश तो हमारे शरीर धारण के उपयोग में आता है और शेष अंश का दूसरों पर प्रभाव डालने में व्यय किया जाता है। यह प्रभाव डालने की जो क्रिया है, उसके भिन्न-भिन्न उद्देश्य हो सकते हैं जो अच्छे परहित के भी हो सकते हैं तो बुरे स्वार्थ सिद्धि के भी। उद्देश्य के अनुरूप ही व्यक्तित्व की प्राभाविकता का गुण विकसित होता है। हमारा शरीर, हमारे चारित्रिक गुण, हमारी बुद्धि और हमारा आत्मिक-बल, ये सब लगातार किसी न किसी बहाने से दूसरों पर अपना प्रभाव डालने की चेष्टा करते रहते हैं। यही प्रक्रिया दूसरों के संबंध में भी चलती है और हम उनके प्रभाव से भी न्यूनाधिक रूप में प्रभावित होते हैं। प्रभाव का क्रम दोनों ओर चलता रहता है और प्रभाव के घनत्व के अनुसार कोई कम और कोई अधिक प्रभावित होता है। प्रभाव की प्रक्रिया को भी थोड़ी-सी बारीकी के साथ समझने की जरूरत है। एक उदाहरण से समझें। एक व्यक्ति आपके पास आता है, वह खूब पढ़ा-लिखा है, बोली भी मधुर है। आपके साथ घंटे भर बातचीत करता है, फिर भी वह अपना असर नहीं छोड़ पाता। एक दूसरा व्यक्ति आता है, वह इने गिने शब्द ही बोलता है जो शुद्ध तक नहीं होते, फिर भी आपको प्रतीत होता है कि वह आप पर बहुत असर कर गया है। ऐसा क्यों होता है? इस प्रकार के अनुभव सभी को हो सकते हैं और उनका कारण स्पष्ट है। मनुष्य पर किसी दूसरे का जो प्रभाव पड़ता है, वह सिर्फ शब्दों, शक्ल सूरत या पहनावे का ही नहीं होता-वह तो मामूली होता है। असली असर तो पड़ता है उसके व्यक्तित्व का, जिसे वैयक्तिक आकर्षण भी कहा जाता है। क्या रहस्य है व्यक्तित्व का और कैसा होता है वैयक्तिक आकर्षण? व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है और उसके व्यक्तित्व के तत्त्वों को गिनावें तो वे हो सकते हैं-व्यक्ति की आन्तरिक क्षमता, भाव शुद्धता, विशाल हृदयता, कर्तव्यनिष्ठा, आध्यात्मिक चेतना एवं अन्य चारित्रिक गुण। इसी प्रकार बाह्य तत्त्व है-व्यक्ति का शारीरिक ढांचा, स्फूर्ति, व्यवहार के तरीके, मिलनसारिता आदि। समुच्चय में व्यक्ति की मनोवृतियों, सामर्थ्यो, योग्यताओं, रुचियों तथा अधिरुचियों के विशेष संगठित रूप को उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का नाम दिया जा सकता है। व्यक्तित्व में सम्मिलित होते हैं उसके स्थायी गुण, उसके अनुभव, उसकी सामाजिक तथा अन्यान्य क्रियाएं, नये संयोग, गतिशील धारणाएं, उसका जैवयिक आधार, व्यवहार कार्य में उसकी अभिव्यक्ति। एक अमूर्त तथ्य ऐसा होता है जिसे खोजना पड़ता है और उस का विश्लेषण करना होता है। व्यक्तित्व के प्रधान निर्धारक होते हैं-1. शरीर का क्रियात्मक दृष्टिकोण, 2. सामाजिक दृष्टिकोण तथा 3. सांस्कृतिक दृष्टिकोण। संस्कृति के साथ व्यक्तित्व का घनिष्ठ संबंध होता है, बल्कि संस्कृति ही व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। 403
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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