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________________ सुचरित्रम् अधिक पारंगत एक ही स्वयं शिक्षित व्यक्ति सामने आया था-एकलव्य किन्तु अर्जुन पर गर्व करने वाले द्रोणाचार्य उसे सह न सके और एकलव्य के दाहिने हाथ का अंगूठा कटवा कर अर्जुन के शीर्ष स्थान के विषय में वे निश्चिन्त हो गए। अस्तु-यहां तो अर्जुन के अद्भुत कौशल का वर्णन किया जा रहा है। अर्जुन से भी वही प्रश्न किया गया, किन्तु वह उत्तर एकदम अलग था। अर्जुन ने कहा-'मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है सिवाय मछली की दाहिनी आंख के, जिस पर मुझे शर संधान करना है।' उत्तर सुनकर सब चौंके यह कैसी बात है? क्या अर्जुन की दृष्टि अवरुद्ध हो गई है सो सारा परिदश्य ही लप्त हो गया है। किन्त निर्णायक की मख मद्रा पर संतोष और सराहना की रेखाएं खिंच आई। उन्होंने सहर्ष घोषणा की कि केवल अर्जुन का ही उत्तर सार्थक रहा है। चुनौती का सामना करने से पहले मन, भाव और विचार की एकाग्रता आवश्यक है और इस एकाग्रता से दृष्टि की एकाग्रता सधती है। जब एक बिन्दु को निशाना बताया गया है तो एक कुशल धनुर्धारी उस बिन्दु के अलावा और कुछ क्यों देखेगा? उसे जब वह केवल एक बिन्दु ही दिखाई देता है तो उसका शर-संधान उस बिन्दु के बाहर जा ही कैसे सकता है? ___ मन और दृष्टि की सम्पूर्ण एकाग्रता के साथ जब अर्जुन ने उस कठिन चुनौती को चुनौती मानकर नीचे देखते हुए ऊपर तीर चलाया तो उससे मछली की दाहिनी आंख भिद ही गई। कैसा भी साध्य हो, उत्कृष्ट एकाग्रता किसी भी चुनौती के सामने कभी-भी हार नहीं मानती है। युवाजन अपना व्यक्तित्व प्रचंड बनावें, एक मशाल से अनेक मशालें जलावें : ___ व्यक्ति स्वयं में एक तथ्य है, किन्तु उसकी चरित्रशीलता, गुणवत्ता एवं कार्यक्षमता का परिचायक होता है उसका व्यक्तित्व। यह व्यक्तित्व मूल में प्रकृतिदत्त होते हुए भी विशेष रूप से रचना का वस्तु विषय होता है। व्यक्तित्व गढ़ा जाता है पारम्परिक संस्कारों, शिक्षा के प्रभावों तथा वातावरण के अनुभवों से, किन्तु यथार्थ में व्यक्तित्व का निर्माण स्वयं व्यक्ति अपने संकल्प शक्ति के आधार पर करता है। तभी तो भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यक्तित्व दृष्टिगत होते हैं। किन्हीं का व्यक्तित्व इतना प्रचंड हो जाता है कि उसकी प्राभाविकता अप्रतिम बन जाती है। कई अन्य व्यक्तियों के सिवाय स्वयं पंडित नेहरू भी गांधी जी के व्यक्तित्व के संबंध में कहा करते थे कि जब भी हम बापू की किसी बात का विरोध करने के लिए अनेक तर्क सजा कर उनके सामने जाते तो उनके व्यक्तित्व की न जाने कैसी प्राभाविकता थी कि हम अपने सारे तर्क भूल जाते और उनकी ही बात को स्वीकार करके लौट आते। यह प्रचंड व्यक्तित्व की बात है और युवा अपनी आयु, अपनी ऊर्जा तथा अपनी निष्ठा के अनुसार रचनात्मकता का एकाग्र अनुसरण करते हुए अपने व्यक्तित्व को प्रचंड बना सकते हैं। ___ सम्पूर्ण संस्कारिता, शिक्षा एवं अध्ययनशीलता का एकमात्र उद्देश्य होता है श्रेष्ठ व्यक्तित्व का सृजन । आज भी यही उद्देश्य वर्तमान है, किन्तु बल दिया जाता है बहिरंग व्यक्तित्व के निर्माण में, जो अन्तरंग निर्माण के अभाव में संतुलित एवं स्थिर रूप नहीं ले पाता है। जबकि बल देने लायक उद्देश्य का वह भाग होता है मनुष्य का विकास, मनुष्यत्व का विकास एवं मनुष्यत्व के चारित्रिक गुणों का विकास। गढ़े गए व्यक्तित्व में झलकना चाहिए वह अन्तर्मानव, जो अपना उत्तम प्रभाव सब पर 402
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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