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________________ सुचरित्रम्" . . है। अपने इन्हीं अनुभवों और पास-पड़ौस के परिवारों के अनुभवों को समेट कर विश्लेषण करेंगे तो आपको वास्तविक न्याय-अन्याय के परिदृश्य साफ दिखाई देंगे और उनका भेद भी समझ में आने लगेगा। ये अनुभव आपको न्याय से मिलने वाले संतोष तथा अन्याय से उपजने वाले रोष की झलक भी दिखाएंगे। तब आप अपने इन सारे अनुभवों को न्याय तथा अन्याय के दो वर्गों में बांट कर उनका तुलनात्मक अध्ययन करें। फिर उस अध्ययन को सामाजिक न्याय के अध्ययन में आरोपित करके अपने निष्कर्ष निकालें। अध्ययन की गहराई को इन सरल उदाहरणों के माध्यम से समझें। दृश्य एक-पहले एक न्याय सम्पन्न परिवार की झलक। सभी परिवार जन अपनी योग्यता एवं शक्ति के अनुसार काम करते हैं, काम का तदनुसार बंटवारा भी करते हैं, लेकिन किसी की कम या अधिक कार्यशक्ति अथवा प्राप्त आय पर कोई अंगुली नहीं उठाता। सबको सबकी भली नीयत पर भरोसा होता है सो काम अपनीअपनी शक्तिभर-पर खाना, पीना, पहनना, रहना-सहना सबका करीब-करीब एक समान, बल्कि बालकों, रोगियों और वृद्धों की कार्यक्षमता नहीं जैसी होने पर भी उनके लिए अधिक पौष्टिक आहार, अधिक सुविधा और अधिक व्यय साध्य देखभाल। एक भाई के बच्चे सभी भाइयों के बच्चे यानी कोई किसी एक भाई का बच्चा नहीं-सभी एक परिवार के बच्चे। ऐसे परिवार की न्यायपूर्ण व्यवस्था का आकलन यह रहा-शक्ति साधन-सम्पूर्ति, आपसी मेल मिलाप, गहरा विश्वास, अभेद दृष्टि और सबके सम्मान, सुख में सबका सुख तथा एक का दुःख सबका दुःख। एक सजीव चित्र एक सबके लिए सब एक के लिए का। __दृश्य दो-अब एक अन्यायग्रस्त परिवार की झलक। माता-पिता अपने आनन्द-योग में अपनी ही संतान के हित की उपेक्षा करें-बच्चों को आया संभालें और माँएं क्लबों में मौज उड़ावें। पिता को व्यवसाय से तनिक फुरसत नहीं-बच्चे-बच्चियां नौकरों के भरोसे। प्यार से वंचित बच्चे भी हठी, दुराग्रही और प्रतिशोधी-बड़े होने पर अलग-अलग विदिशाओं में बिखर जाते हैं, व्यसनग्रस्त, अकेलेपन के तनाव से पीडित. सेक्स रोगी और स्नेहहीन निर्मम स्वभाव वाले। एक मकान में रहते हुए सबका एक साथ मिल कर बैठना, बतियाना और मनोविनोद करना मुश्किल और वृद्धों के साथ निभाह पाना तो एकदम मुश्किल। अपराधग्रस्त हो जाना, मनमाना खर्च करना और दूसरों का जितना झपट सके, झपटते रहना-यह घोर स्वार्थ दृष्टि बन जाती है। ऐसा परिवार लम्बा चलता नहीं, कहीं बीच में ही अकस्मात् ऐसी टूट होती है जैसे कि कोई दुर्घटना घटी हो, एक्सीडेंट हुआ हो। ___ अब करिए न्याय और अन्याय के वातावरणों तथा परिणामों की तुलना और आंकिए उन परिणामों का अन्तर। फिर आकलन करिए चरित्रशीलता अथवा चरित्रहीनता के अन्तर का और अपने इस अध्ययन को समाज, राष्ट्र या विश्व के विस्तृत फलक की दशा-दुर्दशा के साथ लागू कीजिए। कई दृष्टियों से अनुभवों में समानता प्रतीत होगी। यह प्रतीति ही आपको सामाजिक अन्याय के साथ सफल संघर्ष करने तथा सब ओर चरित्र का यथोचित विकास सम्पादित करने की प्रेरणा देगी। एक न्याय सम्पन्न परिवार के समान ही अन्य बड़े घटकों में भी न्यायपूर्ण व्यवस्था स्थापित की जा सके तो उसका परिणाम होगा-मानव समाज की एकता, मानवीय मूल्यों की स्थापना, उदार हार्दिकता और 398
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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