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सुदृढ़ संकल्प बिना चमत्कार असंभव
सबके शक्तिभर सहयोग से सबकी समान अभिवृद्धि। जीवन का स्वस्थ निर्माण, जो देश, दुनिया और परी मानव जाति के स्वास्थ्य की देखरेख करने में पर्ण सक्षम होगा। मल रूप से उत्तम परिणाम यह रहेगा कि सर्वत्र चारित्रिक गुणों की पर्याप्त समुन्नति-सब सबके हितैषी। यों तो यह परिणाम असाध्य-सा लगता है, किन्तु यह चरित्रसाध्य अवश्य है। वैसे भी साध्य ऊंचा और आदर्शमय हो तो प्रगति की गति राह नहीं भटकती और शुद्ध साधनों से विलग भी नहीं होती। हीनता का उत्तर होता है सम्पन्नता अतः चरित्र सम्पन्नता ही प्रधान साध्यः
निहित स्वार्थी भले ही संतुष्ट रहें, किन्तु चरित्रहीनता की परिस्थितियों में पूरा समाज धधकते हुए असंतोष में जलता रहता है। क्योंकि जीवन मूल्यों की गिरावट में आम आदमी कभी-भी संतुष्ट नहीं रह सकता है। चरित्रहीनता की समस्या आज एक वर्ग या दूसरे वर्ग की अथवा, एक देश या दूसरे देश की ही समस्या नहीं रह गई है, बल्कि समूची मानव जाति तथा मानव सभ्यता की समस्या बनी हुई है। इस युग को एक असाधारण युग कह सकते हैं जब जीवन मूल्यों के अभाव में जीवनयापन करना पड रहा है। यह यग हिंसा. आतंक और उत्तेजनाओं से भरा हआ है और चनौतीपर्ण है। लगता है कि जैसे शान्ति और चरित्रशीलता मनुष्य की प्रथम आवश्यकता नहीं रह गई है। विश्व में चारों ओर व्याप्त हिंसा, तनाव, शोषण, उत्पीडन, विज्ञान के विनाशकारी स्वरूप और अशान्ति के बीच सभी दार्शनिक, विचारक, वैज्ञानिक, शिक्षाविद, पत्रकार, उपासक तथा मानवता प्रेमी इस तथ्य से चिा हैं कि जीवन के गुणात्मक मूल्यों का क्या भविष्य है?
यह सत्य है कि मानव सभ्यता एवं मानव-चरित्र के विकास के साथ जीवन के सभी गुणात्मक मूल्य भी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचे थे, लेकिन आज उन्हीं मूल्यों का ऐसा भयावह पतन भी हो गया है। उत्थान के बाद पतन और पतन के बाद उत्थान, यह प्रकृति का नियम है तथा इसके अनुसार जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना आज की ज्वलन्त समस्या है। मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, क्योंकि उसके पास ज्ञान है, विवेक है, अपना चिन्तन है और दर्शन है। उसके पास अपनी आत्मशक्ति है जिसे परिष्कृत करके उसे ईश्वर तुल्य बना लेने की क्षमता भी उसके पास है। जीवन मूल्यों की गिरावट से वह क्षमता कंठित होती है। परिष्कार विकार में बदलता रहता है और गणवत्ता चरित्रहीनता में गम होती रहती है। इस पतन को संभाल लेने का नाजुक दौर आज आ गया है क्योंकि जीवन मल्यों का सीधा संबंध मनुष्य की आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति के साथ जुड़ा हुआ है। जनमत का अध्ययन स्पष्ट करता है कि जीवन मूल्यों के तनिक क्षरण की अवस्था में भी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं और इसे जागरण का लक्षण मानना चाहिए। यही जागरण सम्पूर्ण समाज में फैले, तभी जीवन मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा की आशा बलवती हो सकती है। सीधा सादा विश्लेषण है कि चरित्रहीनता का एकमात्र उत्तर है चरित्रसम्पन्नता और इस दृष्टिकोण से आज का प्रधान साध्य चरित्र-सम्पन्नता ही है। चरित्र-सम्पन्नता की स्टेज आएगी चरित्र निर्माण एवं विकास के बाद, अत: आज से ही ऐसा प्रयास प्रारंभ हो-यह अनिवार्य है।
यह निर्विवाद सत्य है कि चरित्रहीनता सर्वत्र हिंसा में उभरती है तथा हिंसा का अन्तिम विस्तार विश्व युद्धों में प्रकट होता है। युद्धों के पिछले आकंड़े इतने चौंकाने वाले हैं कि उन्हें जानकर ही
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