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सुचरित्रम्
जो अपने जीवन का साध्य निर्धारित करने में ही विफल रह जाते हैं। साध्य निर्धारण के बाद ही जीवन में गतिशीलता आती है जैसे कि रेल का टिकट खरीद लेने के बाद उस स्थान पर पहुंचना तय हो जाता है। दूसरे, साध्य निर्धारित हो जाने से यह निश्चित करना कठिन नहीं रहता कि उस साध्य की प्राप्ति के लिए कौन से साधन अपनाए जाने चाहिए। सफलता के लिए साध्य-साधन का तालमेल जरूरी होता है।
6. भौतिकता-आध्यात्मिकता की पूरकता : जड़ चेतन के संयोग से संसार में जीवन मिला है तो उसके संरक्षण एवं सदुपयोग के लिए जड़ का योगदान भी चाहिए और चेतन की सहायता भी-यह मानते हुए कि भौतिकता एवं आध्यात्मिकता परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं, क्योंकि शरीर ही तो धर्म-साधना का मुख्य साधन होता है (शरीरमाद्यं खलु धर्म-साधनम् )। दोनों तत्त्वों का व्यक्ति के ही नहीं, समूहों के अन्यान्य घटकों के जीवन में भी ऐसा सुन्दर सम्मिश्रण हो कि धर्म, न्याय, समता तथा सर्व सहयोग पर आधारित समाज की रचना हो सके। ____7. 'स्व' का 'सर्व' में समावेश : चरित्र की यह श्रेष्ठतम विशेषता होगी कि व्यक्ति अपने 'स्व' को गौण करता हुआ चले और सर्वहित के प्रति इतना निष्ठावान बन जाए कि धीरे-धीरे 'स्व' गलता हुआ 'सर्व' में समाविष्ट हो जाए। सर्व की प्राथमिकता ही व्यक्ति को पूरे विश्व के स्नेह बंधन में इस तरह बांध देगी कि पूरा विश्व ही उसके कुटुम्बवत् महसूस होगा।
8. संविभाग, सर्वजीव सुरक्षा एवं प्रदूषण मुक्ति : अर्थशास्त्र का इसे सौम्यतम सिद्धान्त बनाया जाना चाहिए कि पग-पग पर व्यक्ति अपने साथियों के साथ 'संविभाग' के सिद्धान्त पर चले। जो कुछ भी अर्जित किया जाता है उस पर व्यक्तिगत स्वामित्व न माना जाए, महावीर का उपदेश उसे संविभाग का कर्त्तव्य देता है। प्राप्त को सब में बांटों और बराबर बांटों-इससे ऊपर कौनसा आर्थिक आदर्श हो सकता है? संविभाग की मनोवृत्ति सर्वजीव सुरक्षा में प्रवृत्त बनाएगी और उससे पर्यावरण की रक्षा भी होगी तो मानवीय मूल्यों की सुदृढ़ स्थापना भी। तब बाहर का और भीतर का भी प्रदूषण असह्य बन जाएगा और उससे मुक्ति पाने की ओर चरित्र के चरण तेजी से बढ़ेंगे।
इस प्रकार चरित्र के विकास कारक कई गुणों की गणना करवाई जा सकती है जिनके बल पर व्यक्ति और विश्व के हितों में सुन्दर सामंजस्य स्थापित हो जाए। इस रूप में चरित्र का विकास ही नई पीढ़ी के नवनिर्माण का मूल हो सकता है। चरित्र नींव में हो तो निर्माण के कण-कण में भी उसकी आभा अवश्य बिखरेगी, फिर ऐसे नवनिर्माण वाली नई पीढ़ी इस विश्व में सत्कृति का युग क्यों नहीं ला सकेगी? धर्म, अहिंसा और लोकतंत्र से मिश्रित बने भावी जीवनशैली :
आधुनिक लोकतंत्र की परिभाषा है-जनता के द्वारा, जनता के लिए तथा जनता का शासन और इसकी विशेषताएं हैं-स्वतंत्रता, समानता एवं शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व। किन्तु प्राचीनकाल में आज से करीब 2600 वर्ष पूर्व भी लोकतंत्रीय शासन का अस्तित्व था। वह शासन था लिच्छवी वंश का तथा उनकी राजधानी थी वैशाली, जहां भगवान् महावीर का जन्म हुआ था। लिच्छवी गणतंत्र ने बिम्बसार,
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