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सामाजिक प्रवाह की गतिशीलता व निरन्तरता हेतु हो बदलाव
अजातशत्रु जैसे निरंकुश राजाओं के आक्रमणों को झेला था, किन्तु अंततः बिम्बसार के एक मंत्री वर्षकर ने कूटनीतिक षड्यंत्र से लिच्छवियों में मतभेद पैदा किए, जिसके परिणामस्वरूप बिम्बसार ने वैशाली पर विजय प्राप्त कर ली। ___ यह तो एक ऐतिहासिक तथ्य है। लिच्छवी गणतंत्र का यहां उल्लेख करने का आशय यह है कि लोकतंत्र से यह देश अपरिचित नहीं, बल्कि इस शासन प्रणाली पर सफलतापूर्वक राज्य चलाया जा चुका है। वह प्रणाली भी प्रत्यक्ष थी। लाल व काली पट्टिकाओं के द्वारा गुप्त मतदान किया जाता था और बहुमत के निर्णय क्रियान्वित होते थे, किन्तु अधिकांशतः निर्णय सर्वसम्मत ही हुआ करते थे। ___ लोकतंत्र की पहली शर्त है-स्वतंत्रता। महावीर ने भी स्वतंत्रता को धर्म का पहला लक्षण कहा है कि स्वतंत्रता सारे गुणों में उसी प्रकार श्रेष्ठतम है जिस प्रकार तारों में चन्द्र श्रेष्ठतम होता है (सूत्रकृतांग-1-11-22)। अथर्ववेद में भी स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा गया है कि अपने आपको मुक्त बनाओ, मुक्त आकाश रचो, बंधनों की जकड़ से छुड़ाओं, फिर गर्भ से मुक्त हुए नवजात शिशु के समान स्वतंत्रतापूर्वक अपने पथ का चयन करो (6-121-4)। अपने गूढ़ अर्थ में अहिंसा की ऐसी स्वतंत्रता होती है कि किसी भी प्राणी को विनाश, शोषण, यातना और दासता का शिकार मत बनाओ, क्योंकि प्रत्येक आत्मा में ईश्वरत्व का स्वरूप समाविष्ट है। प्रत्येक आत्मा अपने कर्मों का क्षय करके पूर्णत्व प्राप्ति की दिशा में गतिशील होती है। कोई ऐसा ईश्वर नहीं जिसका आत्माओं पर शासन हो या वह उनका कोई बुरा या भला कर सकता हो, क्योंकि स्वयं आत्मा अपने सुख या दुःख की विधाता होती है। आत्मा ही अपनी मित्र है और अपनी शत्रु भी, क्योंकि उसके अपने अच्छे-बुरे कार्यों का फल उसे ही भोगना पड़ता है। ऐसे में स्वतंत्रता का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है कि अपनी जीवनशैली की रचना में किसी अलौकिक शक्ति का कोई नियंत्रण या निर्देशन नहीं होता है। उसकी रचना का पूरा भार हमारे पर ही है। इसी दृष्टि से पं. नेहरू ने एक स्थान पर कहा है-'स्वतंत्रता और सत्ता के साथ जिम्मेदारियां आती है।' स्वामी चिन्मयानन्द कहते हैं'वास्तविक स्वतंत्रता इस बात में नहीं है कि तुम जैसा चाहो, वैसा करो, बल्कि इस बात में भी है कि
जैसा तुम चाहते हो वैसा न भी करो।' वास्तव में स्वतंत्रता का अर्थ अनुशासन से छुटकारा अथवा किसी भी प्रकार की व्यवस्था का अभाव नहीं होता है, बल्कि सही अर्थ यह है कि किसी अन्य के द्वारां थोपी गई व्यवस्था नहीं होती, बल्कि स्वयं द्वारा निर्धारित एवं स्वीकृत व्यवस्था होती है। इसलिए स्वतंत्रता है आत्मानुशासन, जो धर्म का प्राण भी है तो लोकतंत्र का भी प्राण है। दोनों क्षेत्रों में अनुशासनहीनता का कोई स्थान नहीं होता है, क्योंकि उससे दूसरों के हितों को आघात पहुंचता है
और उससे अहिंसा की भी क्षति होती है। अनुशासन ही स्वतंत्रता की सबसे बड़ी नैतिकता है और यदि यह नहीं है तो कैसी भी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि स्वतंत्रता टिक नहीं पाएगी। __ लोकतंत्र का दूसरा स्तंभ है समानता या समता। समता तो वस्तुतः धर्म ही माना गया है। सभी प्राणी समान हैं क्यांकि मूलतः सबकी आत्मिक शक्ति समान है, अतः असमान व्यवहार अधर्म है। मानवाधिकारों के उल्लंघनों तथा आर्थिक सामाजिक आदि असमानताओं को समाप्त करना प्रथम धर्म माना जाना चाहिए। सैद्धान्तिक दृष्टि से अपरिग्रहवाद इसका समाधान है जिसके अनुसार धन
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