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सामाजिक प्रवाह की गतिशीलता व निरन्तरता हेतु हो बदलाव
इसके सिवाय कोई अन्य उपाय नहीं रह जाता कि उस ईमारत का नव निर्माण नींव से किया जाए। ऐसी ही दुर्दशा हुई है नई पीढ़ी के चरित्र निर्माण की अब तक कि उसके खड़े होने की कोई ठोस जमीन उसके पैरों तले नहीं रही है और न ही उसकी अपनी पहचान की विशेषता उसके व्यक्तित्व में सफाई है। ऐसे में नई पीढ़ी के नींव से नवनिर्माण की चर्चा उठाई जाए तो वह सभी दृष्टियों से उपयुक्त मानी जाएगी। लक्ष्य तो यह होना चाहिए कि नई पीढ़ी का नवनिर्माण ऐसा प्रभावशाली हो जो नये सत्कृति युग की पहचान बन जाए। ऐसे नवनिर्माण के कुछ बुनियादी बिन्दु निर्धारित किए जाने चाहिए, जैसे कि____ 1. चरित्र निर्माण का शुभारंभ : जब आमूलचूल परिवर्तन का उद्देश्य हो तो चरित्र निर्माण (केरेक्टर बिल्डिंग) को सर्वोपरि महत्त्व दिया जाना चाहिए तथा यह प्रक्रिया उस समय से ही प्रारंभ हो जानी चाहिए जब शिशु गर्भावस्था में हो। अभिमन्यु की कथा सभी जानते हैं कि गर्भावस्था में दिया गया ज्ञान और संस्कार कितना दृढ़ और दीर्घजीवी होता है। इस स्तर से जब चरित्र निर्माण का प्रशिक्षण शरू हो जायगा तो वैसा नवनिर्माण उस शिश को अपने जन्म के बाद परे जीवन में कभीभी जर्जरित नहीं होने देगा।
2. सत्संस्कारों का धन : आज के अर्थ के अनर्थ को मिटाने के लिए जरूरी है कि प्राथमिक शिक्षा ही सत्संस्कारों के आरोपण से हो। बालक, किशोर और नवयुवक अपने अन्तर्हृदय में इस सत्य को स्थापित कर दें कि जीवन का उच्चतम विकास सत्संस्कारों के आधार पर ही साधा जा सकता है। यही सच्चा धन है। जो भौतिक धन-सम्पत्ति या सत्ता की बात है, वह कितनी भी आकर्षक लगे, पर अन्ततः वह चारित्रिक गुणों को नष्ट करने वाली ही सिद्ध होती है। अतः जीवन में सत्संस्कार, सद्व्यवहार एवं सहकार की त्रिवेणी बहती रहे-यही सुख का मूल है।
3. विचार, वाणी, व्यवहार की एकरूपता : जो सोचा जाए, वही वचन में व्यक्त हो तथा जो सोचा और कहा गया है, उसकी ही छवि उसके कार्य में दिखाई दे-यह सज्जनता का लक्षण है। दुर्जन की ये तीनों वृत्तियां पृथक्-पृथक् और कपटपूर्ण होती है। विचार, वाणी, व्यवहार की एकरूपता में ही सत्यनिष्ठा स्पष्ट होती है कि सत्य विचार, सत्य भाषा और सत्य कर्म, सम्पूर्ण विश्व के लिए हितावह होता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में ऐसा स्वभाव-संतुलन साध लेता है, उसके लिए पतित से पतित का हृदय परिवर्तन भी आसान हो जाता है। नई पीढ़ी के नवनिर्माण में इस गुण के सम्पोषण एवं संवर्धन से वैश्विक वातावरण इतना दोषमुक्त हो सकता है, जैसे कि सतयुग का आगमन हो गया हो। वैसे सत्कृति को सतयुग की कृति कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ___4. प्रामाणिकता के मानदंड : प्रारंभ से मानव चरित्र का मोड़ आदर्श धरातल पर किया जाएगा तो वैसे में चरित्र का जो स्वरूप निर्मित होगा वही प्रामाणिकता का मानदंड होगा। सत्य से प्रामाणिकता सहज ही में उत्पन्न हो जाती है। किन्तु इसकी पृष्ठभूमि में जो निष्ठा काम करती है, वह होती है कर्तव्यपालन की निष्ठा। कर्तव्यों का समूह होता है सच्चा मानव धर्म। कर्त्तव्यनिष्ठा का अर्थ होगा धर्म में विश्वास, अतः वैसी प्रामाणिकता धर्म का मुखर रूप होगी। 5. साध्य-साधन की सुनिश्चितता : उन लोगों का जीवन सफलता का स्वाद नहीं चख सकता
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