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सुचरित्रम्
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एक बिखराव सा आ गया था, उसके सूत्र फिर से जुड़ने लगे हैं। सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों को अनेक प्रकार से सम्मान व सुविधाएं दी हैं तो समाज में भी बड़े-बूढ़ों के लिए सहानुभूति का भाव प्रबल बना है। पारिवारिक, धार्मिक, सामाजिक आदि क्षेत्रों में भी संबंधों की तरलता बढ़ रही है और जब संबंधों में तरलता, सरलता और मधुरता समाती है तो सहयोग एवं संवेदना की स्थिति सुदृढ़ बनती ही है।
6. साहित्य, कला, संगीत का क्षेत्र- ये तीनों क्षेत्र मानवीय वृत्तियों तथा प्रवृत्तियों के साथ गहराई से जुड़े हुए रहते हैं और इन्हीं के रूप-स्वरूप में मानवीय प्रगति का आकलन किया जा सकता है। इन क्षेत्रों के विषय में हो सकता है कि अधिक परिचितता न हो, किन्तु फिल्म संसार के साथ तो आज बहुसंख्या जुड़ी हुई लगती है तो जानने वाले बताते हैं कि फास्ट फूड के बाजारों से लोप होने की तरह ही निरुद्देश्य और विलासिता व हिंसा को फैलाने वाली फिल्मों के प्रति लोगों की रूझान घट रही है तथा सामाजिक संबंधों को जोड़ने वाली फिल्मों या टेली- सीरियलों की लोकप्रियता बढ़ रही है। आशय यह है कि लोगों की आम पसन्द ने नई सुधारक करवट ले ली है।
विश्वात्मवाद की चेतना - सूचना तकनीक के अभूतपूर्व विकास ने मानवीय भावना के उदारीकरण को प्रोत्साहित किया है तथा अपने ही शहर की कॉलोनियों की तरह पूरी दुनिया के देशों के साथ सहज सम्पर्क की स्थिति बन गई है। इससे व्यापारिक व व्यावसायिक विस्तार तो हो ही रहा होगा किन्तु साथ ही विश्व स्तर पर सर्वहित के अनेकानेक कार्यक्रम भी सफलतापूर्वक चलाए जा रहे हैं जिनसे आभास मिलता है कि कहीं न कहीं मानवीय मूल्यों की भी पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ तथा उसकी अनेक संस्थाओं के कल्याण कार्यक्रमों का निरन्तर विस्तार हो रहा है जो गरीबी उन्मूलन, स्त्री सशक्तिकरण, कन्या- शिक्षा, पोषाहार वितरण आदि कई उपकारी कार्यों से संबंधित हैं। सर्वत्र मानवाधिकार का कार्य क्षेत्र सशक्त हो रहा है तथा सरकारी दमन के विरोध में मानवाधिकार आयोगों की आवाज असरदार हो रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी देशों में गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा उपयोगी कार्य किया जा रहा है। पशु क्रूरता के विरुद्ध तथा लुप्त होती प्रजातियों की रक्षा भी प्रभावपूर्ण कार्य हो रहा है।
इस विहंगम सर्वेक्षण से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि प्रतिकृति का अंधेरा छंट रहा है तो सत्कृति की हल्की ही सही, लाली बिखरने लगी है। इससे विश्वास जमता है कि कालचक्र का पहिया प्रतिकृति से सत्कृति की दिशा में मुड़ गया है और अब इस पर युवा वर्ग का जोर लगे तथा पहिये की गति बढ़े तो सत्कृति की तस्वीर में कृति के चमकदार रंगों को भरना कठिन हो सकता हैदुस्साहस नहीं । कठिनाई को जीतना तो युवा वर्ग का प्रिय विषय होता है। अब आवश्यक है तो यह चारों ओर चरित्र निर्माण तथा विकास का ऐसा जोश फैल जाए एवं सशक्त क्रियाशीलता बने जिससे चरित्रहीनता की कालिमा सर्वत्र जड़ मूल से मिट जाए।
नई पीढ़ी का नींव से निर्माण बने सत्कृति के चरित्र की पहचान :
जब किसी विस्फोट से कोई इमारत ढह जाती है और उसकी नींव तक क्षतिग्रस्त हो जाती है तब