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सुचरित्रम्
दावों से वह सम्प्रदाय कई भागों में विभाजित भी हो जाती है। तब वे उप-सम्प्रदाएं अपने-अपने प्रभाव-विस्तार के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वे सब चालें चलने को तैयार हो जाती हैं, जो राजनीति के क्षेत्र में चली जाती हैं। इससे आपसी कटुता और विद्वेषता घातक रूप ले लेती है। यह तो एक नामधारी धर्म की बाद में दशा होती है। इसी प्रकार इतिहास के पन्नों पर अनेक नामधारी धर्मों के प्रचलन की संघर्ष-गाथाओं के विवरण अंकित हैं। हिन्दू धर्म में जब आपसी मतभेद और मनभेद से कई सम्पदायों और उप-सम्प्रदायों ने जन्म लिया तो प्रचलन में कई विकतियों ने भी प्रवेश किया तथा यज्ञ-याग आदि के ढंग में बिगाड़ आया। जैन और बौद्ध धर्मों के प्रवर्तकों ने 'वैदिकी हिंसा' का विरोध करके नये अहिंसामय वातावरण की रचना की। किन्तु जैन धर्म भी अपने प्रचलन में पहले दो सम्प्रदायों-दिगम्बर व श्वेताम्बर तथा बाद में अनेक उप सम्प्रदायों में बंट गया। इससे इस धर्म की लोकप्रियता को धक्का लगा और अनुयायियों का वांछित रूप से विस्तार नहीं हो पाया। इसी प्रकार बौद्ध धर्म भी महायान और हीनयान सम्प्रदायों में बंटा लेकिन भारत की भूमि जन्म लेकर भी इसी भूमि पर लुप्त-सा हो गया।
यों धर्मों के प्रचलन के दोष उनकी सैद्धान्तिकता को निष्क्रिय बना देते हैं तो दूसरी ओर सम्प्रदायिकता की खोल में बन्द हो होने से दोषग्रस्तता उनका मूलाधार बन जाती है। इसी दोषग्रस्तता से धर्म के नाम पर कटता. आतंकवाद और हिंसा के दरवाजे खलते हैं। ज्यों-ज्यों सम्प्रदायों के बीच कटुता की परतें गहरी होती जाती हैं, हिंसा के नये-नये रूप सामने आते हैं। ईसाई धर्म जब केथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट सम्प्रदायों में बंटा तो उनकी कटुता संघर्षमय बनी और लम्बे अर्से तक चलती रही है। लेकिन इस्लाम के प्रचलन का दूसरा ही रूप दुनिया के सामने आया। इस्लाम ने लोगों के दिलों को जीत कर अपने साथ करने का रवैया नहीं अपनाया। मुसलमान हमलावर बन कर इधर-उधर बढ़ते गये और अपनी हकूमतें कायम करते रहे सो उन्होंने इस्लाम के अनुयायियों की संख्या तलवार के . जोर से ही ज्यादातर बढ़ाई। कम से कम भारत तो इस तथ्य का सबूत है। बादशाह अकबर ने कुछ धार्मिक उदारता दिखाई तो वह नहीं चली और उसकी प्रतिक्रिया में औरंगजेब की नीति अधिक ' निर्दयी बनी। __इतिहास को एक ओर रख दें और केवल वर्तमान को देखें। आज पूरे विश्व में आतंकवाद के . विरोध में संघर्ष चल रहा है। यह आतंकवाद कौनसा है? यह आतंकवाद मुसलमानों का चलाया हुआ है जिसे वे जेहाद कह रहे हैं यानि की धर्म युद्ध। आतंकवादी हरकतें कितनी नृशंस होती हैं-यह आज सभी जान रहे हैं। मुसलमान कट्टरपंथी सारी दुनिया को इस्लाम के रंग में रंगना चाहते हैं सो उनकी पहली लड़ाई ईसाइयत से है, जिसका फैलाव दुनिया में सबसे ज्यादा है और जिसकी शक्ति का प्रतीक अमेरीका है। उनकी दूसरी लड़ाई भारत से है, क्योंकि यहां भी हिन्दू धर्म के अनुयायी अधिक हैं। यह 'सब' धर्म के नाम पर ही तो हो रहा है और धर्म के नाम पर ही कटुता, आतंकवाद और हिंसा के दरवाजे खुले हैं तथा इन दरवाजों को खोलने वाले साम्प्रदायिक कट्टरपंथियों के सिवाय दूसरे कौन हैं? भारत में 1947 के बाद जितने दंगे हुए हैं उनमें वे ही लोग तो शामिल थे जो अपने आपको एक या दूसरे धर्म के कट्टर अनुयायी साबित करने में लगे थे। धर्म के नाम पर इतनी क्रूर हिंसा का तांडव
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