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धनबल, बाहुबल व सत्ता की ताकत का सदुपयोग चरित्रवान ही करेगा
आधार पर खुशहाल बनाने के काम में जुट जावें। इस तरह विज्ञान मानव जाति के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सकता था। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए धर्म और अध्यात्म के क्षेत्रों का भी प्रभाव उन नायकों पर शुभदायक सिद्ध होना चाहिए था, किन्तु वैसा नहीं हो सका तथा कतिपय शक्ति सम्पन्न नायकों ने वैज्ञानिक शक्ति को अपने सत्ता स्वार्थों की पूर्ति में झौंक देने का निश्चय किया। फलस्वरूप नगरों पर पहली बार अणुबम गिराए गए। तदनन्तर भी शान्ति स्थापना के स्थान पर बड़े देशों ने शस्त्रों की शक्ति से लैस होकर विश्व विजय की कुटिल आकांक्षा से शस्त्रोत्पादन की अति कर दी। चाहे पहली बार गिराए गए अणुबम के बाद दूसरा मौका अब तक नहीं आया हो लेकिन दुनिया के कई भागों में युद्ध की स्थितियां बनती रही हैं और राष्ट्रों के बीच तनाव फैलता जा रहा है। आज भी इस स्थिति में खास सुधार नहीं हो पाया है।
विज्ञान द्वारा प्रदत्त ऐसे सुनहरे अवसर को गंवा देने का कुफल सामान्य जनता के लिए ही अधिक कष्टकारक रहा और निहित स्वार्थियों ने धन और सत्ता को कमाने की कोशिश कम रखी, बल्कि इन्हें लूटने का पागलपन ही उन पर अधिक सवार रहा। पागलपन इसलिए कहना होगा कि चारों ओर धन का संचरण सही रास्तों से कम और हवाला. शस्त्रास्त्र उत्पादन. नशीले पदार्थों के काले जरियों से ज्यादा किया जाने लगा। इसका नतीजा यह हुआ है कि सब ओर चरित्र की व्यापक रूप से गिरावट होने लगी। धनार्जन के सही रास्तों में अनेक रूकावटें खड़ी होती जाने के कारण गैर कानूनी रास्ते ज्यादा पकड़े जाने लगे और इस तरह चरित्रहीनता का दायरा बड़ा होता ही रहा। अनीति अवैधानिकता और अपराध चरित्रहीनता के माथे चढ़ कर ही तो फैल सकते हैं और वही जम कर हो रहा है। धन और सत्ता को नीति और विधि की सीमा में रहते हुए प्राप्त करने की कोशिश की जाए, वह जायज कहलाएगी। लेकिन धन व सत्ता को येन-केन-प्रकारेण हथियाने की दौड़ चल पड़े तो
रित्र का सब कुछ अच्छा खत्म हो जाता है। यह आज प्रत्यक्ष हो गया है कि धन व सत्ता को लूट लेने के पागलपन ने मानव चरित्र का सर्वनाश कर डाला है और उसकी पनप्रतिष्ठा के प्रय
'प्रयास तुरन्त शुरू हो जाना ही व्यक्ति एवं समाज के लिए श्रेयस्कर है। पाश्चात्य विचारक सेमूअल एडम्स का यह कथन ध्यान में रखा जाना चाहिए-'न तो बुद्धिमत्ता पूर्ण संविधान और न ही कुशलतम कानून उस देश की स्वाधीनता तथा सुखमयता की रक्षा कर सकते हैं, जहां के लोगों का व्यवहार व्यापक रूप से भ्रष्ट हो चुका हो।'
स्वार्थ, भ्रष्टाचार आदि दोष वैसे घुन हैं, जो व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन को लग जावें तो उस जीवन की मूल पूंजी चरित्रशीलता को खोखली करके ही छोड़ते हैं, अतः इन दोषों पर कठोर संकल्प के साथ मारक प्रहार करने होंगे। धन को धन के स्थान पर ले जावें और धर्म को धर्म के स्थान पर लावें: ___चरित्र निर्माण एवं विकास को आज एक मात्र उद्देश्य बनाने की आवश्यकता है, फिर जो कुछ साधन अपनाएं जावें, कार्यक्रम या योजनाएं बनाई जावें तथा आन्दोलन या अभियान छेड़े जावें-उन्हें पहले ठोक बजा कर परख लेना होगा कि उद्देश्य पूर्ति की ओर ही वे आगे बढ़ाएंगे-उद्देश्य से भटकाएंगे तो कतई नहीं। उद्देश्य का सार तत्त्व यह है कि इस युग ने धन (सत्ता, विलास आदि) और
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