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________________ धनबल, बाहुबलव सत्ता की ताकत का सदुपयोग धरित्रवान ही करेगा सत्ता के संग में तपे तपाए नेता भी स्वच्छंदता और भ्रष्टता की ओर मुड़ जाते हैं___एक दार्शनिक ने कहा है कि सत्ता भ्रष्ट बनाती है और निरंकुश सत्ता किसी को भी पूरी तरह भ्रष्ट बनाकर ही छोड़ती है (पॉवर करप्ट्स एब्सोल्यूट पॉवर करप्ट्स एब्सोल्यूटली)। इसी कारण महात्मा गांधी का विचार था कि अब तक अंग्रेजों ने सत्ता को जो शान दे रखी है, उसे स्वतंत्र भारत में मिटा दी जाए और भारत का राष्ट्रपति एक झोपड़ी में रहे। कइयों ने इस विचार का मखौल उड़ाया और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी पं. नेहरू ने भी शायद मन ही मन उसका मखौल ही उड़ाया होगा जो उन्होंने अपने शासनकाल में सत्ता की शान ज्यादा ही बढ़ाई जो बाद में बराबर इस कदर बढ़ती रही है कि आज का जन प्रतिनिधि अपने विचार, व्यवहार और कार्य की दृष्टि से तानाशाह से कम नहीं होता। यह नहीं कहा जा सकता कि गांधी जी का विचार अव्यावहारिक था। उस विचार का जीवन्त उदाहरण भी लोगों ने देखा है, उत्तर वियतनाम के राष्ट्रपति होचीमीन्ह के रूप में। वे जब भारत की राजकीय यात्रा पर आए थे तब अधिकारी उनका सामान खोजने लगे और जब कहीं कोई सामान नहीं मिला तो वे उनसे पूछ ही बैठे। होची तनिक मुस्कुराएं और बोले-सारा सामान • मेरे अपने पास ही है-एक जोड़ा खाकी पेन्ट और शर्ट तथा पैरों में टायर की चप्पलें पहन रखी है तथा पेन्ट-शर्ट का दूसरा जोड़ा मेरे कंधे पर टंगे झोले में है-बस। वे भी आखिर उसी वक्त के एक राष्ट्र के राष्ट्रपति ही तो थे। किन्तु भारत में ऐसा नहीं हुआ-उसकी त्यागमय, सरलतामय और सहयोगमय संस्कृति के उपरान्त भी। पं. नेहरू पर पाश्चात्य प्रभाव अधिक था सो न तो राजकाज की शानो-शौकत में फर्क आया और न ही राज करने के तौर-तरीकों में। आम लोगों से शासकों की दूरियां बराबर बढ़ती रही और आज तो बुरा हाल ऐसा है कि छोटे बड़े सभी नेताओं को ऊंचे से ऊंचे दर्जे की सुरक्षा चाहिए। आम लोगों के साथ अंग्रेजों की पुलिस का जो बर्बर बर्ताव था, आज आधी सदी गुजर जाने के बाद भी आम आदमी पुलिस से दहशत खाता है-उसे दोस्त मानने की बात तो कही भले ही जाती है, अमल में आने में शायद आधी सदी और लग जाय। यहां इस तथ्य पर बल दिया जाना चाहिए कि सत्ता को जब तक सेवा का माध्यम नहीं बनाया जाएगा, सत्ता मानव या समाज की पूर्ण रूप से हितैषी कभी-भी नहीं बन सकेगी। कहने को भारत में लोकतंत्र की स्थापना हुई, सब को मताधिकार मिला और चुनाव द्वारा शासक से उपजे उन्माद ने किसी को भी सफल नहीं होने दिया-मजबूर मतदाताओं के मताधिकार के साथ खिलवाड़ होता है, चुनाव पद्धति विसंगतियों और विकृतियों से भरी पड़ी है पर कोई भी पार्टी उसे सुधारना नहीं चाहती और इस तरह लोकतंत्र मात्र एक मुखौटा बन कर रह गया है। जनता और अनपढ़ गरीब जनता के भले का सपना कब तक सिर्फ सपना ही बना रहेगा कोई नहीं जानता। सत्ता के संग का भारत में जो असर हुआ वह आज की अपराधी राजनीति और भ्रष्ट राजनेताओं के रूप में भलीभांति आंका जा सकता है। यहां तो स्वतंत्रता-संग्राम में महात्मा गांधी जैसे आदर्श व्यक्तित्व का नेतृत्व प्राप्त था, आन्दोलन भी आत्मबल और अहिंसा पर आधारित था तथा खादी के प्रतीक से सादगी की संस्कृति बनाई गई थी, फिर भी सत्ता के संग में आकर तपे तपाए नेता भी 355
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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