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सुचरित्रम्
फूंक दी जाती है। तम्बाकू के किसी भी उत्पाद का व्यसनी एक दिन में कम से कम 10 रु. भी प्रतिदिन बर्बाद करता है तो वर्ष भर में अपनी कितनी मेहनत की कमाई इसमें बर्बाद कर देता है। शरीर की हानि, धन की हानि तो सामने दिखती है, मगर संस्कारों की हानि कितनी लम्बी हानि पहुँचाती है-उसे अधिक लोग समझते ही नहीं हैं। तम्बाकू में जो निकोटीन तत्त्व होता है, वह कुछ देर के लिए दिमाग को आराम पहुँचाता है, मगर भयावह रोगों को पैदा करता है। यह थोड़ा सा आराम परिवारों को चौपट कर रहा है, समाज को तोड़ रहा है और व्यक्ति स्वयं तो टूटता ही है। चारित्रिक अधःपतन की नीचाई में क्यों नहीं दिख रही सच्चाई?
दुर्व्यसनों के चक्रव्यूह में देश के अधिसंख्य लोग और खास करके युवक और युवतियाँ इतनी बुरी तरह से फंसे हैं कि वे निरन्तर अध:पतन की नीचाई में लुढ़कते ही जा रहे हैं, फिर भी आश्चर्य है कि अपनी ही जिन्दगी की बर्बादी की सच्चाई उन्हें नहीं दिखाई दे रही है। मूलतः यह मानव चरित्र का अधःपतन है। , वास्तव में व्यसन बिना बोए हुए ऐसे विष वृक्ष हैं, जो मानवीय गुणों को विकृत बना कर घातक दुर्गुणों में बदल देते हैं। वे विष वृक्ष जिस जीवन भूमि पर उग आते हैं, वे बराबर बढ़ते और बड़े होते रहते हैं तब तक जब तक जीवन का सारा रस चूस कर उसे मृत्यु में नहीं बदल देते। विष वृक्ष के तले सदाचार का कोई पौधा नहीं पनपता। जीवन में ज्यों-ज्यों दुर्व्यसनों का जहर फैलता जाता है, त्यों-त्यों सारी सात्विकता नष्ट हो जाती है तथा राक्षसी क्रूरता सबको आहत करती है। व्यसनी व्यक्तियों का जीवन एकदम नीरस हो जाता है, पारिवारिक जीवन रोज-रोज के झगड़ों से क्लेशमय बन जाता है तो समाज में व्यसनी की कोई इज्जत नहीं करता। एक व्यसनी व्यक्ति का जीना मरने से भी अधिक कष्टदायक हो जाता है। ___कहा जाता है कि व्यक्ति मरता नहीं, वही स्वयं को मारता है और एक व्यसनी व्यक्ति के लिए यह कहावत सोलहों आने सच है। इस कहावत को उलट दें अगर एक व्यसनी व्यक्ति तो कहावत बन जाएगी कि व्यक्ति जीवित ही नहीं रहता, वह अपने जीवन को स्वयं जीवंत बना सकता है। ऐसा तभी घटित हो सकता है जब व्यसनी व्यक्ति अपने चारित्रिक अध:पतन को महसूस कर ले और उससे उबरने के लिए तत्पर बन जावे। सच्चाई समझ लेने के बाद ही ऐसा बदलाव आ सकता है। व्यसनी व्यक्ति निश्चय कर ले तो अपने सारे व्यसन छोड़ कर अपने जीवन को विकास की ओर मोड़ सकता है। वह अपने अकाल मरण को सुरक्षित कर सकता है और अपने निष्क्रिय जीवन में क्रियाशीलता का प्राण-संचार फैला सकता है। जीवन के रूपांतर की क्रिया कठिन संकल्प पर ही सफल हो सकती है।
चरित्र निर्माण अभियान में यह व्यसन मुक्ति का मोर्चा बहुत रचनात्मक सिद्ध हो सकता है क्योंकि व्यसनों को त्यागे बिना चरित्र को निर्माण की पटरी पर लाया ही नहीं जा सकता है। यह सही है कि दुर्व्यसनों की ताकत बहुत तगड़ी होती है, जो व्यक्ति एक बार त्याग का संकल्प लेकर भी उस पर खरा नहीं उतरता है। व्यसन मुक्ति के लिए एक व्यक्ति को निरन्तर देखरेख में रखना होगा तथा
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