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दुर्व्यसनों की बाढ़ बहा देती है चरित्र निर्माण की फलदायी फसल को
धीरे बोतलों तक पहुँच जाता है और शराब की प्यास बढ़ती ही जाती है। एक किशोर जिज्ञासावश शराब चखता है और फिर शराब उसे जीवन भर मजा चखाती रहती है। एक-एक कदम खिसकते हुए ही नशेड़ी अध:पतन के खड्डे में गिरता है। नई पीढ़ी के लड़के-लड़कियों को यह सिद्धांत बहुत लुभाता है कि खाओ, पीओ और मजे करो-'ईट, ड्रिंक एंड बी मेरी'। मदिरापान की लत ने आज महामारी का रूप ले लिया है और उससे कितने गरीब और ग्रामीण परिवार उजड़ रहे हैं-वह एक चिंताजनक स्थिति है। यह अधिक चिंताजनक है कि स्वतंत्र भारत की अपनी सरकारें भी राजस्व कमाने के लोभ के कारण शराब का चलन बुरी तरह से बढ़ा रही है। शराबबंदी को लक्ष्य मानते हुए भी इस ओर शासन को कोई ध्यान नहीं है।
एक कहावत है कि पहले जाम में आदमी शराब को पीता है, दूसरे जाम में शराब शराब को पीती है किन्तु तीसरे जाम में शराब ही आदमी को पी जाती है। आज अध:पतन की यही दुर्दशा चारों ओर दिखाई दे रही है, जिसे मंद आत्मघात की दशा कह सकते हैं। इससे साफ हो जाता है कि शराब इतनी खराब है जिसकी कोई हद नहीं और नशा बुरी तरह दशा बिगाड़ रहा है। तम्बाकू के पुराने-नए उत्पाद कर रहे जिन्दगियाँ बरबाद : __ कहा जाता है 'जर्दा बड़ा बेदर्दा', क्योंकि जर्दा सेवन मृत्यु के पूर्व ही नारकीय यातनाओं का द्वार खोल देता है। धूम्रपान और जर्दा सेवन तो सर्व प्रचलित व्यसन हो गया है-गुटखा छैनी तो जैसे हरेक अपने मुंह में डाले शान दिशाता फिरता है। केवल गुटखा के तरह-तरह के मसाला पाऊचों का करोड़ों का व्यापार होता है। जर्दा सेवन करने वाले लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। शहरों की बात छोड़ें, ग्रामीण क्षेत्रों में दस वर्ष से अधिक आयु के 75 प्रतिशत बच्चे 40 प्रतिशत महिलाएं तक या तो धूम्रपान करती हैं या और गुटखा-जर्दा चबाती हैं। धूम्रपान में बीड़ी का चलन तो गांवगांव, घर-घर में मिलेगा, बाकी सिगरेट का धुआं छोड़ना फैशन है और बड़े कहलाने वाले लोग चुरूट भी पीते हैं। धूम्रपान फेफड़ों को शराब करता है और टीबी लाता है। इससे होने वाली अकाल मौतें अनेक घर उजाड़ देती हैं।
आश्चर्य का तथ्य यह है कि जब तक कोई दस तक की गिनती गिने उतनी सी देर में देश के पांच व्यक्ति जर्दा-धूम्रपान के कारण मौत के शिकार हो जाते हैं। कैंसर से मरने वाले लोगों में 10 प्रतिशत तम्बाकू के व्यसनी होते हैं और हार्ट फैल के आधे रोगी भी तम्बाकू सेवी होते हैं। इस धूम्रपान की एक खास बुराई यह है कि धूम्रपान करने वाला तो अपनी प्राणहानि करता ही है किन्तु वे निर्दोष लोग भी धीमे जहर के शिकार बन जाते हैं जो तम्बाकू के धुएँ का असर खा जाते हैं। वे तो 'करे कोई
और भरे कोई' के चक्कर में आते हैं। धूम्रपान से चारों ओर का वातावरण विषाक्त बन जाता है। सार्वजनिक वाहनों में इसी कारण लिखा रहता है कि यहाँ धूम्रपान न करें, किन्तु उसकी पालना कहाँ होती है? ___ हकीकत यही है कि तम्बाकू के पुराने-नए सभी उत्पाद करोड़ों की जिन्दगियाँ बर्बाद कर रहे हैं। इस व्यसन से आर्थिक हानि बेहिसाब हो रही है। देश की अरबों रुपयों की राशि इस शौक के पीछे
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