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________________ सुचरित्रम् . 7. आहार की विषाक्तता का कारण - आहार की विषाक्तता (फूडपाइजनिंग) की 70 प्रतिशत घटनाओं का जिम्मेदार मांसाहार है। फ्रोजन चिकन का विषाक्त असर होता है और बर्ड फ्लू फैलता है। फ्रिज में मांस के पदार्थ रखने से संदूषण का खतरा बढ़ता है। विख्यात वैज्ञानिक डॉ. थॉम्पसन का कहना है कि शरीर विज्ञान के अनुसार मनुष्य को शाकाहारी ही होना चाहिए। यह विज्ञान सम्मत निष्कर्ष है कि अंडा मांसाहार है : । अंडा मांसाहार है-अब यह विज्ञान सम्मत निष्कर्ष निकाला जा चुका है। अब अंडे को शाकाहार बताने की बात गलत साबित हो चुकी है। अंडे का जनन बिम्ब जीव युक्त होता है और अंडो चाहे फर्टिलाइज्ड हो या इन्फर्टाइल-उसमें जीवनांश होता है। श्वासोश्वास जीवन की निशानी है और जब भी यह अवरुद्ध होता है, अंडा सड़ जाता है। वैज्ञानिक तमाम अंडों में जीव मानते हैं। वास्तव में अंडा गर्भरस है, अतः उसे शाकाहार में गिनना-गिनाना बहुत बड़ा धोखा है। अंडा हकीकत में पोषण शून्य होता है। उसे प्रोटीन, खनिज या विटामिन से भरपूर बताना एकदम गलत है। अंडे का 30 प्रतिशत हिस्सा जर्दी, 60 प्रतिशत हिस्सा सफेदी और 10 प्रतिशत हिस्सा खोल का बना होता है। शर्करा तत्त्व इसमें बिलकुल नहीं होता, जो शक्ति का स्त्रोत है। अंडे में प्रतिरोधक शक्ति देने वाला विटामिन सी भी बिलकुल नहीं होता। अंडे के संबंध में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि की गलत धारणाएँ फैलाई गई, जो अब स्पष्ट कर दी गई हैं। 100 ग्राम अंडे में सिर्फ 137 कैलोरी ऊष्मा ही मिलती है, जबकि 100 ग्राम मूंगफली से 549 कैलोरी ऊष्मा मिलती है। उबला अंडा तो एकदम अर्थविहीन आहार बन जाता है। सबसे ऊपर धार्मिक दृष्टिकोण तो सदा से स्पष्ट रहा है कि अंडा जीवधारी की प्रारंभिक अवस्था के रूप में जीव है और यह मांसाहार ही है। शराब कितनी खराब-कोई हद नहीं और नशा बिगाड़ता दशा : प्रचलित पाश्चात्य अपसंस्कृति के कुप्रभाव से मदिरापान का प्रचलन बहुत बढ़ा है। कोई 30 प्रतिशत आबादी शराब के व्यसन में डूबी हुई है। पुरुषों के अलावा स्त्री समाज में भी शराब का चलन बढ़ा है। विडम्बना तो यह है कि किशोरवय के लड़के-लड़कियों में चुपके-चुपके शराब पीने वालों का अनुपात बढ़ता जा रहा है और उसके जरिए अपराधवृत्ति भी बढ़ रही है। साथ ही अन्य नशीले पदार्थों जैसे ब्राऊन शुगर आदि का उपयोग भी बढ़ रहा है। इस नशेबाजी का बुरा असर गर्भस्थ शिशुओं पर पड़ता है और उससे बाल मृत्यु दर बढ़ी है तथा बाल रोग फैल रहे हैं। नशे की लत फैलने में अज्ञान तो मुख्य कारण है ही, किन्तु आज के जीवन की जटिलता से उपजी परिस्थितियाँ भी सहायक कारण हैं। इनमें हैं-आधुनिकता का आग्रह, ऊब का निराकरण, तनाव मुक्ति की झूठी आशा, विलासिता का दिखावा, अनुकरण की प्रवृत्ति, सहज जिज्ञासा, कुसंगति आदि। ऊँची सोसायटी की निशानी नशेबाजी बना दी गई है। पियक्कड़ी की शुरुआत इसी तरह होती है कि एक-दो बूंट पी लेने से क्या बिगड़ता है? फिर बेजान बन जाने को मस्ती का कारण मान लिया जाता है। कोई शराब या नशे की आदत तुरन्त ही नहीं पकड़ लेता है। एक-दो बूंट पीते-पीते वह धीरे318
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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