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सुचरित्रम्
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पाप से हो, पापी से कभी नहीं लवलेश" यानी प्रेम के द्वारा शत्रु में परिवर्तन लाया जाए। वैसे वैज्ञानिक क्षेत्र में आजकल 'जीन' पर काफी खोजबीन चल रही है और यह साबित किया जा रहा है कि आनुवांशिकता की दृष्टि से हिंसा का कारण उस व्यक्ति के 'जीन' में उपलब्ध होता है। तथा रसायनों में समाया रहता है। 'जीन' में आवश्यक 'हारमोन्स' के निरूपण से इन कारणों को बदला जा सकता है। मनोविज्ञान में भी हिंसा का मूल कारण अनैतिकवृत्ति को बताया गया है जो चरित्र निर्माण तथा विकास के प्रयोग से परिवर्तित की जा सकती है। कर्म सिद्धान्त की दृष्टि से भी कर्म में हिंसा तथा अहिंसा दोनों के बीज हमारे भीतर हैं। अहिंसा के बीज को विकसित करने के लिए उसके अनुकूल प्रयोग, परिणाम, परिवेश एवं प्रबंध का प्रायोजन जरूरी है। यह हृदय परिवर्तन एकदेशीय नहीं, बल्कि सर्वदेशीय हो कि जीवन के सभी क्षेत्रों में अहिंसा को आधार बना कर शुभता का फैलाव किया जाए और चरित्र विकास को प्रखर बनाया जाए।
5. मनुष्यों की वृत्तियों तथा प्रवृत्तियों में अहिंसा का प्रवेश हो, जो निरन्तर मनुष्य के समस्त कार्यों का संचालन करती है। हिंसा का प्रबल अहिंसक प्रतिकार तभी संभव हो सकता है जब सभी नागरिक अहिंसा के प्रयोगों में अपनी पूरी शक्ति लगाने की मानसिकता बना लें। जब जाग जाय तो व्यक्ति की शक्ति अतुलनीय होती है। उसमें असाधारण साहस, सहिष्णुता, निर्भीकता, सन्तुलनात्मकता आदि गुण भरे हुए होते हैं जिन्हें जगाने भर की जरूरत होती है। ऐसा चरित्र विकास मनुष्य के प्रत्येक व्यवहार तथा पूरी दिनचर्या अहिंसक रूप दे सकता है।
6. सामाजिकता के क्षेत्र में अहिंसा पर अति विशेष बल देना होगा। धन कमाने की तृष्णा, विलासितापूर्ण रहन-सहन, प्रदर्शन के लोभ और आडम्बरों के फैलाव पर कड़ा अंकुश लगाना होगा। सम्प्रदायवाद, जातिवाद जैसे संकुचित विचारों से ऊपर उठना होगा और इन संकुचित गतिविधियों पर विराम लगाना होगा। सामाजिक कुरीतियों को त्याग कर अहिंसक सुरीतियां प्रचलित करनी होगी, जिनसे सामाजिक समानता का विस्तार हो सके। इस दिशा में सर्वाधिक महत्त्व का काम होगा कन्या शिक्षा का इतना फैलाव कि सभी कन्याएं एवं महिलाएं साक्षर तो बने हीं, बल्कि कन्याओं को उच्च शिक्षा के लिए उचित प्रोत्साहन दिया जाए। भोजन, रहन-सहन आदि में भी अहिंसक प्रभाव फैलाना चाहिए।
यह एक रूपरेखा मात्र है । चरित्र-निर्माण अभियान के अन्तर्गत इसे एक व्यापक योजना का रूप दिया जा सकता है । चरित्र-निर्माण में वैसे भी अहिंसा का प्रशिक्षण अनिवार्य होगा, किन्तु चरित्र विकास की प्रक्रिया में इस प्रशिक्षण का प्रसार सर्वत्र हो जाना चाहिए। मूलतः कहा जा सकता है कि अहिंसक जीवनशैली निर्माण का अर्थ होगा- शोषणविहीन समाज की रचना, सह-अस्तित्व का विकास, रुढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त, मानव मूल्यों का प्रसार तथा शिक्षित, संस्कारी एवं श्रमनिष्ठ पीढ़ी का निर्माण ।
अहिंसा की नींव पर बने चरित्र विकास का धरातल इतना समतल और सुदृढ़ हो जाता है उस पर समत्व योग का प्रसाद निर्मित किया जा सकता है। चरित्र विकास के प्रभाव से जिस क्षमता एवं संयमितता का फैलाव होगा, उससे वृत्तियों एवं प्रवृत्तियों पर पूरा आत्म नियंत्रण कायम हो जाएगा