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लक्ष्य निर्धारण शुभ हो तो संकल्प सिद्धि भी शुभ
व्यवस्था शान्ति स्थापना के कार्यों में नियोजित की जाए। पुलिस जनता की मित्र बने और उसके सहयोग से कार्य करे। इसी प्रकार जेल व्यवस्था बंधन का काम छोड़ कर सुधार केन्द्रों का रूप धारण करे । अपराधी का उपचार किया जाए और उसे विवेकवान नागरिक बनाया जाए ताकि आगे से अपराध की जड़े कटती रहे। इस पृष्ठभूमि में लोकतंत्र को अहिंसक रूप दिया जाना चाहिए। लोकतंत्र में मुख्य होती है चुनाव पद्धति। इसमें हिंसा तभी घुसती है जब राजनीति निहित स्वार्थियों के घेरे में कैद हो जाती है अतः राजनीति के शुद्धिकरण के साथ चुनाव पद्धति को स्वस्थ बनाना होगा। प्रत्येक नागरिक को भी अपना दायित्व समझना होगा तथा चुनाव के सम्बन्ध में नैतिक आचरण अपनाना होगा। समूचे वातावरण में अहिंसा घुलेगी तो उसका प्रभाव भी निरन्तर अभिवृद्ध होता जाएगा।
2. अर्थनीति को भी अहिंसक स्वरूप देना होगा। इस हेतु आज की अर्थव्यवस्था में कई परिवर्तन करने होंगे। अब तक सारी अर्थ व्यवस्थाएं (पूंजीवादी अथवा अन्य) शोषण पर आधारित रही है, अतः अब ऐसी अर्थ व्यवस्था का निर्माण करना होगा जो श्रम पर आधारित हो तथा शोषण से मुक्त हो । ऐसी व्यवस्था ग्राम स्वावलम्बन की नीति से संभव हो सकती है जो विकेन्द्रीकृत हो । अर्थ व्यवस्था में महात्मा गांधी का ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त उपयोगी हो सकता है। अपरिग्रहात्मक अर्थात् अपरिग्रह को मर्यादित बनाने तथा उपभोक्तावाद को समाप्त करने के प्रयत्न होने चाहिए। पूंजी का व्यक्तिगत स्वामित्व कम से कम हो और प्रत्येक उपभोग- परिभोग वस्तु का प्रत्येक नागरिक के लिए परिमाण पूर्व निश्चित हो। इससे आर्थिक विषमता समाप्त होगी और आर्थिक साम्यता फैलेगी जिससे अनेक व्यक्तिगत व सामाजिक अपराध व दोष अपने आप ही समाप्त होने लगेंगे । अर्थव्यवस्था का पूर्ण रूप से स्वदेशीकरण कर दिया जाना चाहिए । स्वदेशी का अर्थ स्वावलम्बन को अपनाना और अपने पैरों पर खड़े होने की क्षमता का विकास करना ।
3. शिक्षा व्यवस्था को भी अहिंसा के आधारों पर खड़ी करनी होगी। शिक्षा का अभिप्राय सम्पूर्ण जीवन विकास है, अत: शिक्षा व्यवस्था मूल्यपरक होनी चाहिए, आज की तरह केवल वस्तु परक नहीं । आज की शिक्षा व्यवस्था केवल भोगवाद को बढ़ावा दे रही है और यही कारण है कि यह शिक्षा अनैतिकता, भ्रष्टाचार, बेईमानी, हिंसा आदि के फैलाव का परिणाम बन रही है। मूल्य परक लक्ष्य के अनुसार मूल्यों पर आधारित जीवन विज्ञान की शिक्षा पर बल देना होगा। विद्यालय से लेकर विश्व विद्यालय तक की शिक्षा पद्धति में एकरूपता एवं लक्ष्य समानता का विकास करना होगा। गांधी जी कहते थे कि जैसे हिंसा की तालीम में मारना सीखा जाता है, वैसे ही अहिंसा की तालीम में मरना सीखना जरूरी है। मरना वही सीख सकता है जो आत्मबल का धनी बनता है। महात्मा गांधी के सत्याग्रह, असहयोग आदि के आन्दोलनात्मक उपाय मरना सिखाते थे और अहिंसक शक्ति को मजबूत बनाते हैं। इन उपायों का प्रयोग सदैव प्रासंगिक रहेगा।
4. हृदय परिवर्तन का उपकरण भी अहिंसा को बनाना होगा। गांधीजी का हृदय परिवर्तन का सिद्धान्त अहिंसा पर ही आधारित था । वैसे सभी भारतीय दर्शन इस सिद्धान्त के समर्थक हैं कि - " 5- " घृणा
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