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सुचरित्रम् ।।
संकुचितता के दायरे में कैद कर देता है। समभाव के लिए तो स्वार्थ बाधक ही नहीं, घातक भी होता है, अतः निःस्वार्थ वृत्ति से समभाव की सुरक्षा होती है।
2. समर्पण-बिना दिये लेना क्रूर स्वार्थ है, लेन-देन करना सौदेबाजी है, किन्तु समभाव के क्षेत्र में केवल देने का ही विचार मुख्य होना चाहिए और इस देने की भी कोई सीमा नहीं, सब कुछ अर्पित कर देने की तत्परता होनी चाहिए। समर्पण समभाव का संवाहक होता है। समर्पण को त्याग का उच्चस्थ बिन्दु कह सकते हैं।
3. प्रेम-सबके प्रति प्रेम और. अनुराग समभाव की सरसता का प्रतीक होता है। प्रेम पूरित हृदय में विषमता का अंश तक प्रवेश नहीं कर सकता है। समभाव को शिरोमणि बनाता है प्रेम। सच तो यह माना जाना चाहिए कि इन निःस्वार्थता, समर्पण तथा प्रेम के भावों के साथ जिस उत्कृष्टता से जो भी क्रियाएं की जाए, उन्हें धर्म के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान मिले। समभाव अर्थात् चरित्र का यह विकास ही विश्व बन्धुत्व की मंजिल तक पहुंचा जा सकता है। चरित्र विकास से जीवनशैली का उन्नयन एवं समत्व योग :
चरित्र विकास का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति के जीवन पर परिलक्षित होना चाहिए और यही प्रभाव सघन बन कर समाज के नव स्वरूप को प्रतिबिम्बित करें। व्यक्ति एवं समाज पर पड़ा प्रभाव तब अवश्य ही एक नई जीवनशैली का विकास करेगा। कोई भी सद्गुण अपनाया जाता है उसका सीधा सादा अर्थ यह है कि जीवन के व्यवहार में उस सद्गुण की छाप देखी जा सके। सद्गुणी जीवन जब व्यावहारिक बनता है तो उससे नई समतामय जीवनशैली का उन्नयन ही समभावी समाज अथवा समत्व योग की रचना करता है।
ऐसी नई जीवनशैली को अहिंसक, जीवनशैली का नाम दिया जा सकता है क्योंकि अहिंसा वह नींव है जिस पर कोई भी निर्माण स्थायी, स्थिर और सुन्दर होगा। इसीलिए तो अहिंसा को परम धर्म । कहा गया है। जीवन के प्रति अहिंसा की मौलिक दृष्टि होती है। पहले अहिंसा के लिए विवेक उत्पन्न होता है और बाद में प्रारम्भ होता है उसका आचरण । अहिंसा ऐसा व्रत है जिसमें सभी व्रतों का समावेश हो जाता है। इसीलिए इसका स्वरूप सर्वतोमुखी और सर्वव्यापी होता है। यह भी सत्य है कि हमारी सम्पूर्ण संस्कृति ही अहिंसा से जुड़ी हुई है-यह जुड़ाव कभी हल्का तो कभी गहरा होता रहता है, किन्तु जुड़ाव कभी समाप्त नहीं हुआ है और न होगा। नई अहिंसक जीवनशैली के निर्माण की जब हम बात करते हैं तो उसके लिए वर्तमान परिस्थितियों की हमें समीक्षा करनी होगी तथा तदनुसार उसके विकास के प्रयास करने होंगे। विचारणीय कुछ पहलू इस प्रकार है :1. राजनीति को अहिंसक स्वरूप देना होगा। इसके लिए पहला प्रयास यह हो कि सरकारों का
प्रशासनिक दायरा कम से कम किया जाए। आज यह सिद्धान्त माना जाने लगा है कि जिसका शासन कम से कम हो, वही अच्छी सरकार (दी गर्वनमेन्ट इज बेस्ट, विच गवर्न दी लीस्ट)। राज्यों में आज हिंसा के तीन प्रतीक है-सेना, पुलिस और जेल। महात्मा गांधी के अनुसार अहिंसक राजनीति का स्वरूप वह होगा जिसमें सेना का कम से कम प्रयोग हो और पुलिस
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