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________________ सुचरित्रम् यह सभ्यता का भीतर से प्रकाशित हो उठना है। ___ चरित्र निर्माण अथवा संस्कृति के दो राष्ट्रीय पहलू हैं-एक, वह शक्ति जो बाहरी उपकरणों को पचाकर समन्वय या सामंजस्य पैदा करती है तथा दो, विभाजन को प्रोत्साहन देने वाली शक्ति। इसी प्रकार इतिहास के दो सिद्धान्त हैं-एक तो, सातत्य और दूसरा परिवर्तन। सैद्धान्तिक सत्य स्थिर रहते हैं, किन्तु उनके रूप-स्वरूप में बदलाव आते रहते हैं। ये दोनों सिद्धान्त परस्पर विरोधी नहीं हैं, बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं। परिवर्तन की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है जो यदि अवरुद्ध हो जाती है तो क्रान्ति शान्त परिवर्तन के बाह्य रूप की झलक दिखाती है। भारत का इतिहास गवाह है कि यहां ये दोनों सिद्धान्त साथ-साथ चले जिसका चरित्र निर्माण की स्थिति पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। इसका आकलन इस प्रकार है-1. विचारों तथा सिद्धान्तों में अधिकाधिक उदारता का समावेश हुआ। साथ ही सहिष्णुता भी बढ़ी।, 2. किन्तु सामाजिक चरित्र अथवा आचार में अधिक संकीर्णता फैली। यह विरोध शायद अब तक चल रहा है जो अपूर्ण व्यक्तित्व का परिचायक है। राजनैतिक, आर्थिक आदि के परिवर्तनों के साथ तदनुकूल सामाजिक परिवर्तन भी आना चाहिए था लेकिन वैसा नहीं हुआ और इस विरोधाभास का यही प्रमुख कारण है। आज आवश्यकता इस बात की है कि अब पुराने आदर्शों के साथ-साथ नये आदर्शों एवं मानदंडों की रचना की जानी चाहिए जो युगानुकूल हो, अन्यथा भारत की सामाजिक उन्नति अंधकारमय ही बनी रहेगी। यह दरावस्था चरित्र निर्माण तथा विकास के लिए भी अतीव बाधक है। सामाजिक परिवर्तनों के अभाव में एक ओर चरित्र निर्माण के कार्य को वांछित गति नहीं मिलती है तो दूसरी ओर समाज की विवेक बुद्धि का यथोचित विकास भी अटक जाता है। जो समाज की विवेक बुद्धि बनाने के काम में मदद करते हैं, उनके नाम इतिहास में दर्ज होते हैं, क्योंकि इतिहास ही वह कसौटी होती है जिस पर काम का खरापना जांचा और बताया जाता है। जैसे शिवाजी का उदाहरण लीजिये। शिवाजी के सैनिक कल्याण के सूबेदार की कन्या को भगाकर लाए और उसे शिवाजी को अर्पित की। उस समय में वैसी पद्धति थी। शत्रु की स्त्रियों का अपहरण करने में उस जमाने की विवेक बुद्धि बाधा उपस्थित नहीं करती थी। वह कन्या सुन्दर थी। शिवाजी ने उसे ठीक से देखकर आप जानते हैं कि क्या कहा? वे बोले-'मेरी मां भी अगर ऐसी ही सुन्दर होती तो मैं भी सुन्दर होता।' यों कहकर उसे वापिस भेज दिया यानी उसे मातृवत् माना। इस तरह वे सामाजिक विवेक बुद्धि में उत्थानगामी परिवर्तन लाए। अकबर बादशाह ने भी तत्कालीन परिस्थिति में परिवर्तन लाने के लिए उदारनीति अपनाई, हिन्दू-मुसलमानों के संबंध बढ़ाए और आदर्श विचारों को स्थान दिया। कालीदास जैसे कवि ने भी साहित्य के नये-नये उपकरण रच कर मानव जीवन को बदला। ऐसे युगान्तरकारी पुरुष ही इतिहास बनाते हैं तथा नये चरित्र एवं आचार तथा नई सामाजिक विवेक बुद्धि के सूत्रधार होते हैं। इसी तरह आचार्य रत्नप्रभ सूरि ने भी लोगों से सुरा, सुंदरी व दुर्व्यसनों का त्याग करवा करके एक आदर्श ओसवाल समाज की संरचना कर चारित्रिक क्रांति की। चरित्र निर्माण अभियान और पुरुषार्थ प्रयोग : किसी भी कार्य की सिद्धि के लिये पुरुषार्थ एक प्रमुख शर्त है। जितना अधिक पुरुषार्थ 244
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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