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मानव चरित्र का संचरण इतिहास के परिप्रेक्ष्य में
भारतीयों की भाषा. वेशभषा और अन्ततः मानसिकता पर जिस तथ्य ने सर्वाधिक प्रभाव डाला, वह था भारत में यूरोप का आगमन तथा अंग्रेजों का साम्राज्यवादी शासन । वर्ष 400 ई. पू. से ही भारत का नाम ज्ञान और धन के भंडार के रूप में यूरोप में मशहूर हो गया था। उसी आकर्षण ने सिकन्दर, कोलम्बस, वास्कोडीगामा आदि को खींचा और तीसरी शताब्दी से तो हॉलेंड, फ्रांस, पुर्तगाल तथा इंगलैंड आदि देश भी भारत में सत्ता स्थापना हेतु आए। इससे एक ओर ईसाइयत का जम कर मिशनरियों द्वारा प्रचार हुआ तो दूसरी ओर वैज्ञानिक साधनों (प्रिटिंग प्रेस, रेलें) के विकास से देश की शिक्षा एवं आवागमन सुविधा में क्रान्तिकारी बदलाव भी आए। इतिहास के बढ़ते असर के कारण हिन्दू नवोत्थान का कार्यक्रम भी चला। ब्रह्म समाज (बंगाल), परमहंस समाज (महाराष्ट्र), आर्य समाज, थियोसोफीकल सोसायटी आदि इसके उदाहरण हैं। फिर स्वामी विवेकानन्द का विदेशों में हिन्दू धर्म का प्रचार काफी रंग लाया। 20वीं सदी के पूर्वार्ध में ही भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष का श्री गणेश हुआ, जो लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी आदि के नेतृत्व में अन्तिम परिणति तक पहुंचा और 15 अगस्त 1947 को यह देश अंग्रेजों की दासता से मुक्त हो गया। इस अवधि के दौरान
भारतीय चरित्र के विकास का लेखा जोखा लें तो विदित होगा कि 1000-1200 वर्षों की राजनीतिक • गुलामी ने जो जकड़न पैदा कर दी थी वह चाहे अंग्रेज शासकों के हाथों ही सही पर यूरोपीय प्रगति के प्रभाव ने उसे ढीली की और स्वतंत्रता के संघर्ष काल में तो वह चारित्रिक शक्ति न सिर्फ समूहों की बल्कि एक-एक भारतीय जन की इतनी ऊंचाई पर चढ़ी कि जिसकी मिसाल नहीं मिलती। यदि स्वतंत्रता प्राप्त हो जाने के बाद उस अद्भुत चरित्र विकास को समुचित संरक्षण मिलता तो आज भ्रष्टाचार, राजनीति के अपराधीकरण आदि अनेक विकारों के कारण जो चरित्रहीनता फैली है, वैसा कदापि भी घटित नहीं होता। इतिहास और संस्कृति के उतार चढ़ाव तथा चरित्र निर्माण की क्रमिकता: ___ सामान्यत: चरित्र नायक इतिहास बनाते हैं और इतिहास का अच्छा या बुरा प्रभाव समाज व राष्ट्र के सभी वर्गों को अपने-अपने स्तर पर प्रभावित करता है. क्योंकि इतिहास की घटनाओं के कारण सांस्कृतिक परिस्थितियों में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। आश्चर्य का तथ्य यह है कि इन उतारचढावों के बीच में भी अधिकांश रूप से चरित्र-निर्माण की क्रमिकता बनी रहती है। अनकल परिस्थितियों में चरित्र निर्माण की मनोवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है तो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जनाक्रोश के कारण इस मनोवृत्ति को पुष्ट करने का ही सामाजिक आयास उभरता है। निष्कर्ष यह कि चरित्र-निर्माण का कार्य किसी भी समय में अप्रासंगिक नहीं होता। __ चरित्र और संस्कृति एक दूसरे में अन्तर्निहित शब्द है, क्योंकि चरित्र का समग्र रूप ही संस्कृति में प्रतिबिम्बित होता है। यही कारण है कि दोनों शब्दों की व्याख्या में भी काफी समानता है। आधुनिक राजनीति के दार्शनिक तथा भारत : एक खोज के लेखक पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में संस्कृति है-'संसार भर में जो भी सर्वोत्तम बातें जानी या की जाती है, उनसे अपने आपको परिचित करना।' वे आगे कहते हैं-संस्कृति शारीरिक या मानसिक शक्तियों का प्रशिक्षण, दृढ़ीकरण या विकास अथवा उससे उत्पन्न अवस्था है। मन चरित्र, आचार अथवा रुचियों की परिष्कृति या शुद्धि
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