SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुचरित्रम् विशेष सम्पर्क नहीं हुआ। इस अर्से में यूरोप में 'रि नाइसेंस' (धार्मिक क्रान्ति-14वीं शताब्दी) की महत्त्वपूर्ण घटना घटी, लेकिन उसका असर भारत तक नहीं पहुंचा जबकि छठी शताब्दी तक ईरान, यूनान, बर्मा, श्याम, बाली द्वीप, इंडोनेशिया, सुमात्रा, बोर्नियो, चीन, जापान आदि कई देशों के साथ भारत का वाणिज्यिक अथवा सिकन्दर, मेगस्थनीज, फाह्यान, कन्फ्यूशियस आदि के माध्यम से धार्मिक अथवा सांस्कृतिक सम्पर्क बढ़ा। धर्म, गणित, ज्योतिष और विज्ञान ऐसे विषय थे जिनका भारत की संस्कृति पर असर पड़ा और यहां की संस्कृति तथा चरित्र निर्माण शैली भी उनसे प्रभावित हुई। यह प्रभाव तीन रूपों में स्पष्ट हुआ-1. जाति प्रथा को चुनौती मिली और समाज में नारी के स्थान को महत्त्व मिला, 2. उन धर्मग्रंथों के प्रति तिरस्कार का भाव बढ़ा जो सामाजिक बुराइयों का समर्थन कर रहे थे तथा 3. मनुष्य की स्वतंत्र बुद्धि, सहज विवेक तथा आत्म चरित्र को नई स्फरणा प्राप्त हई। मतवाद के खंडन-मंडन ने जोर पकड़ा और शास्त्रार्थ से प्रतिष्ठा पाने की होड़ चली। तब भी मनुष्य की मौलिक समस्याओं की ओर आवश्यक ध्यान नहीं गया। - मानव चरित्र के संचरण के क्षेत्र में तदनन्तर बड़ा परिवर्तन आया मुसलमानों का शासन स्थापित हो जाने पर । तब वह अस्पृश्य वर्ग (अछूत) जो ब्राह्मणवाद से असन्तुष्ट था आसानी से धर्म परिवर्तन करने लगा-इस्लाम को अपनाने लगा। यह आम राय बनने लगी कि ब्राह्मणों के अत्याचारों से इस्लाम के हाथों ही त्राण हो सकेगा। इस अवधि में भारत से बौद्ध धर्म का लोप ही हो गया। हिन्दू और मुसलमान जातियों के बीच लम्बे अर्से तक अपरिचय और घृणा का भाव बना रहा जिसके दो कारण थे-1. देश की आध्यात्मिक साम्राज्यवादिता मुसलमानों के प्रति तीखी बनी रही तथा 2. मुस्लिम शासकों के भयंकर अत्याचारों के कारण सामंजस्य की स्थिति नहीं बन सकी। यहां मोहम्मद गजनवी कमले (636 ई.) के साथ ही यवनों के लिये घणा सघन बनने लगी और धार्मिक वैमनस्य से उन्हें सेछ कहा जाने लगा। एक तथ्य विचारणीय है कि तब से पैदा हुई घृणा देश के वातावरण में बारबार उभरती रही है और भारत के विभाजन के बाद तो यह घृणा जैसे गहरी और स्थाई ही हो गई है। इससे शिक्षा लेनी चाहिए कि जब कभी स्वभाव में किसी कारण से कोई विकृति जम जाती है तो उसका घातक प्रभाव कितने लम्बे अर्से तक भी चलता रहता है, अतः ऐसी ग्रंथियों को यथासमय काट कर चरित्र शुद्धि का कार्य करते रहना चाहिये। कभी-कभी इतिहास का प्रभाव कितना तीक्ष्ण और दीर्घ हो सकता है-यह हिन्दुत्व और इस्लाम के आपसी असर से पहचाना जा सकता है। यह भी जाना जा सकता है कि घृणा को न जीत पाने पर मानव चरित्र को समय-समय पर कैसे आघात झेलने पड़ते हैं। इस्लाम भारत में 7वीं शताब्दी में पहुंचा, किन्तु 12वीं शताब्दी तक भी अपरिचय पूर्ण सम्पर्क ही रहा और मिश्रण की तो स्थिति ही नहीं आई। खेद जनक स्थिति तो यह है कि आगे 800 वर्षों में भी दूरियां बहुत ज्यादा कम नहीं हुई। अकबर ने दोनों जातियों की एकता का आन्दोलन चलाया लेकिन औरंगजेब ने उसे नकार दिया और यह मनोवृत्ति 20वीं सदी में भी यथावत् रही कि महात्मा गांधी की हिन्दू, मुस्लिम एकता के अभियान पर महम्मद अली जिन्ना ने पानी फेर दिया वैसे भारतीय दर्शनों और विचारधाराओं पर इस्लाम का कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ा। 242
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy