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________________ • शराब कितनी खराब - कोई हद नहीं और नशा बिगाड़ता दशा • तम्बाकू के पुराने - नए उत्पाद कर रहे जिन्दगियाँ बरबाद • चारित्रिक अध: पतन की नीचाई में क्यों नहीं दिख रही सच्चाई • पुनर्चेतन के बीज बोने होंगे व्यसनी जीवन की भाव भूमि में तम्बाकू - अफीम की खेती ही हो बंद, जिससे मिटे करोड़ों के दुःख द्वन्द • शाकाहार से बने जीवन सात्विक, तब विचार भी होवें तात्विक • भान भूले और भयभीत मानव के लिए श्रद्धा पर लग जाता है प्रश्नचिह्न ● रूढ़ता का उन्मूलन हो, निवारक एवं रचनात्मक उपायों से • ऐसा ही चरित्र विकास जो रूढ़ता में भी टिका रहे और रूढ़ता को टिकने न दें 25. धर्म और विज्ञान का सामंजस्य निखारेगा मानव चरित्र का स्वरूप • समग्र जीवन में धर्म और विज्ञान का सामंजस्य क्या संभव है? आत्मा और प्रकृति दोनों के विज्ञान से मानव जीवन का घनिष्ठ संबंध जैन दर्शन की वैज्ञानिक विरासत है- धर्म विज्ञान सामंजस्य की प्रेरणा • अब धर्म फिर से विज्ञान होने लगा है और विज्ञान धर्म की ओर बढ़ने लगा है • मानव चरित्र का नवरूप निखरेगा आध्यात्मिक विज्ञान और वैज्ञानिक अध्यात्म से 26. श्रेष्ठ शिक्षा, संस्कार से सामर्थ्यवान व गुणी व्यक्तित्व का निर्माण • सुसंस्कारों के निर्माण की यात्रा एवं परस्परता का योगदान • संस्कार निर्माण से सत्शिक्षा तथा सत्शिक्षा से सुसंस्कार सृजन • शिक्षा का उद्देश्य ही चरित्र विकास, तभी तो कहा है- 'सा विद्या या विमुक्तये' चारित्रिक व्यक्तित्व के समग्र विकास हेतु शिक्षा प्रणाली का निर्धारण ) क्षमता विकास का गुर है कि समाज को सदा आदर्शोन्मुख रखो उत्तम संस्कार, शिक्षा व क्षमता चरित्र विकास के मूल भी हैं और फल भी 27. धनबल, बाहुबल व सत्ता की ताकत का सदुपयोग चरित्रवान ही करेगा • नियंत्रण- - शून्य विज्ञान ने दी विलासिता और संहारक शक्ति सत्ता के संग में तपे तपाए नेता भी स्वच्छंदता और भ्रष्टता की ओर मुड़ जाते हैं • सत्ता से धन और धन से सत्ता के दुष्चक्र में सारी अच्छाइयाँ भेंट चढ़ी • चरित्रहीनता से व्यवस्थाएँ सड़ रही हैं, आपराधिकता बचे खुचे मूल्यों को निगल रही है • भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक ऐसा फैला कि बेशर्मी भी शरमा गई • चरित्र के सर्वनाश के मूल में है धन- सत्ता लूटने का पागलपन धन को धन के स्थान पर ले जावें और धर्म को धर्म के स्थान पर लावें 28. बढ़ते आतंकवाद व हिंसा के लिए धर्मान्धता जिम्मेदार • धर्म और धर्म के नाम पर दोनों अलग-अलग मनोदशाएं होती हैं • असल में धर्म के दो छोर हैं- मानव धर्म एवं साम्प्रदायिक कट्टरता • धर्म के नाम पर क्यों खुलते हैं हिंसा के दरवाजे और कौन खोलता है उन्हें • साम्प्रदायिक कट्टरता, आतंकवाद एवं हिंसा के दरवाजों के पीछे के नजारे अनुक्रमणिका 318 319 320 321 321 323 324 325 325 328 329 331 333 335 337 340 341 343 345 346 348 349 350 353 355 356 358 359 360 361 364 366 368 369 371 XXIX
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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