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________________ सुचरित्रम् 258 260 262 263 264 266 267 • चरित्र निर्माण की व्यापकता के लिए संस्कृति आदि का अध्ययन आवश्यक 20. मानवीय मूल्यों का प्रेरक धर्म ही उज्ज्वल चरित्र • चावल के कण और चरित्र के गुण : रचनाधर्मिता के रहस्य को समझें। .धर्म चरित्र है और चरित्र धर्म, फिर चरित्र निर्माण में एकरूपता क्यों नहीं? •धर्म प्रवर्तकों का अन्तर्निहित लक्ष्य रहा चरित्र विस्तार से स्वतः चालित व्यवस्था का •चरित्र निर्माण अर्थात् धर्म के आचरण का प्रधान लक्ष्य है लोक-कल्याण •धर्म का परिणाम चरित्र-निर्माण और उसका परिणाम मानव मूल्यों का सृजन • वैयक्तिक एवं सामाजिक चरित्र के संतुलन की डोर धर्म के पास .धर्म चलाए चलता है, संसार बनाए बनता है और चारित्रिक पराक्रम की महत्ता 21. लक्ष्य निर्धारण शुभ हो तो संकल्प सिद्धि भी शुभ •धर्म, संस्कार, वातावरण से उपजी भावमयता नींव की पहली ईंट •भावमयता की एक-एक ईंट नींव को अहिंसा पर आधारित बना देगी •भाव-स्वभाव और चरित्र विकास का प्रगति चक्र . .चरित्र विकास से जीवनशैली का उन्नयन एवं समत्व योग •चरित्र विकास का शिखर है सत्य और सत्य के आग्रह का रूप •यों सम्पूर्ण चरित्र विकास होता है भावमय-उच्चतर से उच्चतम तक 22. आचार के उच्चतर बिन्दु, अहिंसक क्रांति और व्यक्तित्व गठन .आचार के उच्चतर बिन्दु तथा गणशीलता की सम्पन्नता • विकासशील गुणों के चौदह स्थान उनका संक्षिप्त विवरण व विश्लेषण .नींव हिली तो इमारत ढही और छत डाली तो काम सही • अहिंसक क्रांति का आगाज, विश्वव्यापी मंथन एवं फलश्रुति •चरित्र विकास से हो नए मूल्यों एवं नए मानव-व्यक्तित्व का सृजन • चरित्र विकास मानव-संबंधों में अहिंसा की प्रतिष्ठा का कारक बने 23. जब धर्माचरण रूढ़ होता है तो बाधित होता है चरित्र विकास • क्या है सच्चा धर्म और कैसा होना चाहिए उसका आचरण • आचरण के दो पक्ष : कौनसा प्राण, कौनसा कलेवर .धर्माचरण की रूढ़ता के कारण अनेक, पर परिणाम एक .रूढ़ता की पहली मारु पड़ती है चरित्र-चेतना और विवेक-बुद्धि पर 24. दुर्व्यसनों की बाढ़ बहा देती है चरित्र निर्माण की फलदायी फसल को अमरबेल की तरह लिपटकर जीवन का सर्वनाश कर देते हैं व्यसन • दुर्व्यसनों के अन्य प्रकार तथा आज के जमाने के व्यसन •चारित्रिक अध:पतन की ओर ले जाती है दुर्व्यसनों की राहें दुर्व्यसनों का पल्ला पकड़ा कि जीवन कष्टों में जकड़ा वि+आसन-विकृत आहार कराता व्याधियों में विहार यह विज्ञान सम्मत निष्कर्ष है कि अंडा मांसाहार है 268 270 274 276 277 279 280 283 284 285 287 289 292 294 295 298 299 300 309 373 314 315 316 318 - XXVIII
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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