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________________ अनुक्रमणिका 198 199 201 202 204 206 208 210 211 213 215 216 218 220 222 •चरित्र निर्माण का प्रवाह बाधित हो सकता है, अवरुद्ध कदापि नहीं 15. विभिन्न धर्मग्रंथों, वादों-विचारों में चरित्र निर्माण की अवधारणाएँ • मनुष्य जाति की एकता पर स्थित है चरित्र निर्माण की मूल अवधारणा •धर्म और समाज की परस्परता तथा चरित्र गठन पर बल • विभिन्न धर्म ग्रंथों में वर्णित है उत्कृष्ट चारित्रिक गुण • वादों-विचारों में चरित्र निर्माण के प्रश्न सुलझे भी, उलझे भी • दोनों पहियों की असमानता में नहीं चलता है चरित्र का रथ .चरित्र निर्माण है सबका साध्य 16. नैतिकता भरा आचरण ले जाता है सदाचार के मार्ग पर • नैतिकता का वास्तविक स्वरूप तथा उसके दो पक्ष एवं दो रूप नैतिकता कर्त्तव्य-पालन भी तो कर्तव्याकर्त्तव्य के निर्णय का आधार भी नैतिकता आचरण में उतरती है तो वह सदाचार के मार्ग पर ले जाती है •स्व-स्वभाव रूप समत्व की प्राप्ति ही नैतिक जीवन का साध्य है • नैतिक मानदंड दिखाते हैं नैतिक चेतना के विकास के स्तर • नीतिशास्त्रीय नैतिकता एवं आधुनिक मनोविज्ञान का गहरा संबंध • नैतिकता का अतिक्रमण ले जाता है आसक्ति एवं बंधन से मुक्ति तक • नैतिक जीवन सरल सुखमय होता है किन्तु उसे साधना सच्चा पुरुषार्थ है 17. चरित्र निर्माण की प्रक्रिया में फूटते हैं आचार के कैसे-कैसे आकार? • आचार को एक बिन्दु मानें तो उसके आगे है शुभाचार और पीछे है अशुभाचार • चरित्र निर्माण की प्रक्रिया में फूटे हैं और फूटते हैं आचार के विविध आकार •आचार की भिन्न-भिन्न परिणतियाँ होती है स्वभाव व विभाव के धरातलों पर • आचार में प्रगतिशील मोड़ लाने वाला मंगल-सुविचार • आचार के स्वस्थ एवं विकासशील आकार हेतु जरूरी है पुरुषार्थ 18. मानव चरित्र का संचरण इतिहास के परिप्रेक्ष्य में • इतिहास क्या होता है?-चरित्र के उत्थान-पतन की कहानियाँ ही तो • मानव चरित्र के संचरण की दृष्टि से भारतीय इतिहास का सिंहावलोकन • इतिहास और संस्कृति के उतार-चढ़ाव तथा चरित्र निर्माण की क्रमिकता चरित्र निर्माण अभियान और परुषार्थ प्रयोग 19. संस्कृति, सभ्यता, साहित्य और कला बनियादी तत्व •चरित्र विकास में संस्कृति प्राण तत्त्व है तो सभ्यता उसका भौतिक तत्त्व • भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की चरित्रगत विशेषताएँ साहित्य समाज का दर्पण होता है अतः चरित्र निर्माण का भी संस्कृति, सभ्यता, साहित्य एवं कला के समन्वित रूप से ढलती है चरित्रनिष्ठा उन्नत चरित्र की प्रतीक हाती है कला और कलामय राजस्थान चित्रकला शिल्प और भाषा पर बाहरी संस्कृतियों का प्रभाव तथा चरित्र निर्माण का पक्ष 223 224 226 228 230 233 234 235 237 239 240 243 244 246 250 252 253 255 256 257 XXVII
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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