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________________ • मानवीय मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा हेतु लक्ष्य बनावें आत्मोपलब्धि का मानवीय मूल्यों का निर्माण संभव होगा सत्य की भूमिका पर • व्यक्ति की अपार इच्छाओं के नियंत्रण हेतु सामाजिक व्यवस्था भी चाहिए • व्यवस्था की समूची प्रणाली अहिंसा पर आधारित की जाए • अन्तर्बाह्य जीवन के सृजन से विकास का चक्र नित चलता रहे 7. चरण चमत्कार से हो सकता है कैसा भी जीवन महिमा मंडित 8. अन्तर से आवाज उठे - खोल मन, दरवाजा खोल • विश्व तक की वर्तमान व्यवस्था विकृत है मानवीय मूल्यों के क्षरण से • आचार हीनता आज के मानव की समस्या है तो उसका समाधान है सदाचार 9. • चरण बल प्राप्त होता है एक लम्बे अभ्यास एवं आयाम के पश्चात् • चरण विधि, संस्कार की भूमिका एवं चरित्र गठन से व्यक्तित्व का निर्माण • आज नए मानव का सृजन अपेक्षित है जो होगा चरित्र के निर्माण से • चरित्र सम्पन्नता के पथ पर पुरुषार्थ चतुष्ट्य का योगदान • चरण गति और चरण शक्ति समाज तथा संसार में नवप्राण फूंकेगी • चरित्र की उत्कृष्टता की कसौटी है परमार्थ, परहित एवं लोक-कल्याण ) चरण गति ही व्यवस्था को परमार्थ से तथा क्रांति को आदर्श से जोड़ेगी चरण चमत्कार से ही बदलेगी दृष्टि और नई दिखाई देगी सृष्टि • कितना ही निकृष्ट भी क्यों न हो, वह जीवन महिमा मंडित होगा चरण चमत्कार से • तभी तो भव्य चरण कहते हैं - चलो, मजबूती से चलो और चलते रहो चरित्र एवं समानार्थ शब्दों की सरल सुबोध व्याख्या • चरित्र का शब्दार्थ, भावार्थ एवं उसकी सार्थकता का समग्र जीवन पर प्रभाव • मूलतः चरित्र की यथार्थता है उसकी अशुभता से शुभता की ओर गति • चरित्र के समानार्थक शब्दों का अन्तर्भाव एक, पर व्यवहार के रूप अनेक • चरित्रशीलता गुण और कर्म के महल खड़े करती है नैतिकता की नींव पर • क्यों बिखर जाता है चरित्रहीन व्यक्ति मिट्टी के एक ढेले की तरह ? आध्यात्मिक जगत् में चरित्र या चारित्र की ऊँचाइयों की थाह लीजिए! • अन्तर्वृत्ति एवं बाह्य प्रवृत्ति का दर्पण होता है चरित्र • चरित्र की व्याख्या को समझें, उसका विश्लेषण करें और शुभता को अपनावें ! मानव जीवन में आचार विज्ञान : सुख शांति का राजमार्ग • आचार भारतीय चिंतन का मूल केन्द्र और वही संस्कृति का प्राण • मानव जीवन की लक्ष्य साधना का मूलाधार है आचार • आचार विज्ञान का बहुआयामी स्वरूप : मूल्य एवं मूल्यांकन • श्रमणाचार में आचार के उत्कृष्ट स्वरूप का दर्शन होता है ! • आचार विज्ञान के रसायन रूप हैं सर्व शुद्धाचारी पांच व्रत • सभी धर्मों का सार - अहिंसा किन्तु वहाँ तक पहुँचने की समस्या अनुक्रमणिका 82 83 84 86 87 87 88 89 92 93 94 96 97 98 99 100 101 102 104 106 108 109 110 112 113 115 117 118 119 121 122 123 125 127 136 XXV
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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