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चरित्र निर्माण का पारम्परिक प्रवाह एवं उसका सैद्धांतिक पक्ष
समाप्त हो जाती है। इस दृष्टि से सैद्धान्तिक पक्ष का आधारगत महत्त्व माना जाना चाहिए।
चरित्र निर्माण एक व्यक्ति के लिये करणीय कार्य है तो समूह (समाज, देश, दुनिया ) के लिये अभियान भी हो सकता है या घने प्रचार के नजरिये से जन-जन का आन्दोलन भी हो सकता है, उसका स्पष्ट तथा मान्य सैद्धान्तिक पक्ष अवश्य है और प्राथमिक रूप से उसकी जानकारी चरित्र निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ होने के साथ ही ले लेनी जरूरी है। इस सिद्धान्त पक्ष को दो कोणों से समझा जाना चाहिये। पहला है कि चरित्र निर्माण की आवश्यकता क्यों है, उस की जीवन निर्माण के संबंध
महत्ता कैसी है और क्या कारण होते हैं जो निर्मित चरित्रशीलता को विकृत बनाते हैं तथा चरित्र को हीनता तक पहुंचा देते हैं? इसे कारणों की समीक्षा और वर्तमान की लक्ष्य धारणा के रूप में देख सकते हैं। ऐसा करने पर अपनी जमीन की पक्की जानकारी हो जाएगी कि अभियान कैसे धरातल
खड़ा किया जा रहा है तथा उसकी प्रक्रिया के प्रभावशाली होने की संभावना कैसी है? सैद्धान्तिक पक्ष का दूसरा कोण है अभियान का फलितार्थ अर्थात् उसका परिणाम । कारण और परिणाम का ज्ञान जितना परिपक्व होगा उतनी ही परिपक्वता से दोनों के बीच की प्रक्रिया चलेगी और उतनी ही मात्रा में सफलता हाथ लग सकेगी।
अब चरित्र निर्माण के सैद्धान्तिक पक्ष की स्पष्ट चर्चा कर लें। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि चरित्र निर्माण की प्रक्रिया निरन्तर चलनी चाहिए और सतत रूप से चलनी चाहिए। इसके लिये विशिष्ट अवसर भी होते हैं तब विशिष्ट अभियान चलाने के प्रश्न भी सामने आते हैं। जब कभी व्यक्ति और समूह के चरित्र में पतन का दौरदौरा गंभीर रूप ले लेता है और मानवीय मूल्यों का चिन्तनीय रूप से क्षरण होने लगता है तब चरित्र निर्माण के अभियानों में विशेष उत्साह तथा सक्रियता की जरूरत होती है और वैसे अभियान भी विशेष तैयारी के साथ चलाए जाने होते हैं। वर्तमान समय कुछ ऐसा ही है जब विशेष अभियान विशेष संगठन के साथ चलाए जाने अनिवार्य हो गये हैं और इस दृष्टि से इनका सैद्धान्तिक पक्ष भी भली-भांति समझ लिया जाना चाहिये, ताकि धरातल, मार्ग और मंजिल की साफ जानकारी हो जाए। इस सैद्धान्तिक पक्ष का त्रिकाल विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है। आज के चरित्र निर्माण का अतीत है, स्थान-स्थान और क्षेत्र-क्षेत्र में चरित्रहीनता का फैलाव, जिसके कारण सत्ता सम्पत्ति के स्वार्थ, सामाजिक विषमताओं आदि से जुड़े हुए हैं। इसका वर्तमान यह है कि ऐसी जीवनशैली की रचना की जाए जो चरित्र विकास को प्रोत्साहित करे। इसका भविष्य है पूर्ण स्वतंत्र, सहकारी तथा समतामय समाज का सर्जन जो सत्याधारित हो । संक्षेप में कहें तो आज के अभियान के तीन चरण हो सकते हैं जो साथ-साथ उठेंगे तथा अपने-अपने स्तर से शुभ परिवर्तन का चक्र घुमाएंगे
(1) चरित्रहीनता का उन्मूलन,
(2) अहिंसक जीवनशैली का निर्माण तथा
(3) सत्य से साक्षात्कार ।
अहिंसक जीवनशैली के प्रारंभ के साथ ही निजी व सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टता की समाप्ति होने लगेगी, स्वार्थों का दायरा संकुचित किया जाएगा, सहकारिता के क्षेत्र बढ़ेंगे पारस्परिक
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