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________________ सुचरित्रम् सहयोग का भाव प्रबल बनेगा और समाज में एकता, प्रेम तथा समता के सूत्र सुदृढ़ होंगे। परिणामस्वरूप चरित्रहीनता का वातावरण लुप्त होने लगेगा और चरित्र निर्माण की नई-नई संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। सत्य के साक्षात्कार का लक्ष्य साफ होगा तो वर्तमान की गतिविधियों में सर्वत्र सत्य की शोध की वृत्ति रहेगी और आचरण सत्याधारित बनेगा और फलितार्थ की बात करें तो वह इन रूपों में प्रस्फुटित होगा-नैतिकता का प्रसार, आध्यात्मिकता की अनुभूति, विश्वात्मकता का भाव, सम्पूर्ण मानव जाति की एकता तथा समग्र प्राणियों व एकल विश्व के कल्याण के प्रयत्न। ये फलितार्थ चरित्र विकास को उसकी सर्वोच्चता के शिखर तक पहुंचाएंगे। चरित्र निर्माण की प्रक्रिया में विवेक के मूल महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए मुनि संतबाल जी कहते हैं-"जागृति आने का अर्थ होता है विवेक बुद्धि की प्राप्ति । बुद्धि तो मानव मात्र में होती है किन्तु जब तक बुद्धि का अन्त:करण के साथ संबंध नहीं जुड़ता तब तक वह केवल विकल्पात्मक होती है, निर्णयात्मक नहीं और निर्णयात्मक बुद्धि के बिना प्रगति की दिशा स्पष्ट नहीं होती। सत्यासत्य का निर्णय चरित्र विकास के बाद ही संभव है, लेकिन निर्णयात्मक बुद्धि का पनपना पहले जरूरी है और यही विवेक बुद्धि है। विवेक बुद्धि जागी, ध्येय स्पष्ट हुआ तभी समझें कि पुरुषार्थ सधता है। यह पुरुषार्थ होता है आचरण विकास का। आचरण विकास के आधार हैं-1. शास्त्र (आत्मिक) दृष्टि, 2. महापुरुषों के कथन तथा 3. विवेक बुद्धि का उपयोग-प्रयोग। इन कसौटियों से साधक को गुजरना होता है। तब अपनी ही भूमिका पर अपने ही चरित्र एवं आचरण के विकास को सम्पन्न बनाते हुए साधक सुयोग्य सिद्ध होता है (श्री आचारांग सूत्र नो संक्षेप-गुजराती-भाग 4 पृष्ठ 28-29)।" चरित्र निर्माण का प्रवाह बाधित हो सकता है, अवरुद्ध कदापि नहीं: यह सनातन सत्य है कि चरित्र निर्माण का प्रवाह किसी भी युग में कभी-भी न अवरुद्ध हुआ है, न आज अवरुद्ध है और न कभी भविष्य में भी अवरुद्ध होगा। प्रवाह सतत चलता रहा है, क्षीण दशा में ही सही आज भी चल रहा है और चरित्रशील महापुरुषों की प्रेरणा से निकट तथा सुदूर भविष्य में भी शुभ-सत्वर गति से चलता रहेगा जो शुभाकांक्षियों को शुभता के पथ पर बढ़ते रहने को अनुप्राणित करेगा। यह दूसरी बात है कि शुभता की शक्तियों की दुर्बलता से और अशुभता की काली ताकतों के जोर पकड़ने से इस प्रवाह में बाधाएं आती रही हैं और आज तो ये बाधाएं चुनौती भरी है। किन्तु इन बाधाओं पर विजय पाने का संकल्प सर्वोपरि रहना चाहिए और ठोस प्रयत्नों से चरित्र निर्माण एवं विकास के पारम्परिक प्रवाह को वेगपूर्ण बनाया जाना चाहिए। ___ प्रत्येक आत्मा में जब परमात्मा बनने की शक्ति समाई हुई है तो हम क्यों समझते हैं कि किसी भी महत्तर कार्य के लिये हम अक्षम और असमर्थ हैं। अपनी क्षमता तथा समर्थता के आह्वान की आज उपयुक्त वेला है। । 198
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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