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________________ सुचरित्रम् कृषि उत्पादन करने लगी तो किसानों के पाँव ही कट जायेंगे। कम्प्यूटरों को बनाया तो व्यक्ति के दिमाग ने ही, लेकिन ये बनावटी दिमाग व्यक्ति के ही सिर पर चढ़ गए हैं, क्योंकि असली दिमाग तो छोटी-बड़ी भूलें कर सकता है, लेकिन यह नकली दिमाग छोटी से छोटी भूल नहीं करता है। जीन तकनीक जब भांति-भांति के क्लोनों की लाईन लगा देगी, तब कहाँ रहेगा असली व्यक्ति और कैसे होगी उस की पहिचान? कहने का आशय यह है कि यह जो व्यष्टि तथा समष्टि की शक्तियों के साथ तीसरी शक्ति जिन भावी आशंकाओं के साये में उभर रही है, वह हर तरह से 'अति भीषण' सिद्ध होने वाली है। यह चरित्र निर्माण तथा विकास के लिये भी कठिन वेला है। यदि व्यष्टि तथा समष्टि की शक्तियों को सहयोगी न बनाया जा सका तथा दोनों के बीच सन्तुलनात्मक व्यवस्था कायम नहीं की जा सकी तो यह भीषण विज्ञान सम्पूर्ण मानव जाति को विनाश की कगार तक पहुँचा देगा। आज युवा शक्ति को आगे आना होगा, अपने चरित्र सामर्थ्य को सक्षम बनाना होगा तथा विज्ञान को मानव कल्याण की दिशा से भटकने नहीं देना होगा। इस स्वस्थ सम्बन्ध के लिये व्यक्ति को अपने अहंकार, अन्याय और अत्याचार की निरंकुशता त्यागनी होगी तो यह ध्यान रखना होगा कि सर्व शक्तियों को केन्द्रित करके समाज भी व्यक्ति हंता न बन जाए। यह नियंत्रण भी साधना होगा कि विज्ञान अपनी मानव कल्याण की पटरी से नीचे न उतर सके। विज्ञान व्यक्ति के वजूद पर ही प्रश्न चिह्न लगाने लगे- यह तो कदापि सह्य नहीं होना चाहिए। आज की इन परिस्थितियों का तकाजा है कि व्यष्टि तथा समष्टि के सम्बन्धों को नवीनता दी जाए। परन्त कैसे भरें नवीनता के रंग और गंजित करें समरसता के स्वर? यह चमत्कार चरित्र बल से ही संभव हो सकता है। व्यष्टि व समष्टि के सम्बन्धों का बिगड़ना या कि विज्ञान की प्रगति का भीषण रूप ले लेना-यह सब चरित्र के अभाव में ही हो रहा है। जब व्यक्ति स्वयं अपनी स्वार्थपूर्ति में निरंकुश बन जाता है, तब वह समाज को तोड़ता है अर्थात् सामाजिक नियमों या लक्ष्मण रेखाओं का उल्लंघन करता है। इस कारण स्वच्छंदता तथा अराजकता का वातावरण बन जाता है तो व्यक्ति एवं समाज दोनों की स्वस्थ प्रगति को रोक देता है। निरंकुश व्यक्तियों का यह दुराचरण ही सर्वत्र चरित्रहीनता को बढ़ावा देता है। चरित्रहीन व्यक्ति सुव्यवस्थित समाज का कभी भी सहायक नहीं बन सकता है। ___ चरित्र के मूल बिन्दु पर आकर हमें ठहरना होगा और विचार करना होगा कि व्यक्ति तथा समाज की उन्नति अथवा अवनति में चरित्रशीलता अथवा चरित्रहीनता का क्या रोल होता है? यह समीक्षा हमें मार्ग दिखाएगी कि चरित्र निर्माण का कार्य ही बनियादी है और इसके बिना किसी भी शभ परिवर्तन का श्रीगणेश नहीं किया जा सकता तथा न ही उस शुभ परिवर्तन को स्थायी बनाया जा सकता है। अतः चरित्र निर्माण का कार्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। एक चरित्रशील व्यक्ति अपनी चारित्रिक प्रतिभा से चरित्र निर्माण का सफल विस्तार कर सकता है तो व्यष्टि तथा समष्टि के बीच सहयोगी सम्बन्धों का निर्माण भी। जब व्यक्ति और समाज चरित्र विकास के मार्ग पर अग्रगामी हो जाते हैं तब समाज में सारी विषमताओं का अन्त हो जाएगा-न आर्थिक विषमता व्यक्तियों के चरित्र को पतित कर 184
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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