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सुचरित्रम्
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महापद्म ने अपनी निराशा को दबाते हुए टूटते स्वर में कहना शुरू किया - पुत्र बिम्बिसार ! अब मेरे पास अधिक समय नहीं है, अत: यह विह्वलता छोड़ो और मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनों । तुम्हारे लिये यह सिद्ध करने की वेला समझो आ गई है कि तुम एक वीर पिता के वीर पुत्र हो, चरित्र निष्ठ हो, धीरजवान व विवेकवान हो और हो प्रत्येक परिस्थिति का सफल सामना कर सकने वाले सत्पुरुष । अपने सुदूर भविष्य की ओर तुम्हें देखना है और वर्तमान को तत्पर बनाना है। इस मगध की माटी को तुमसे ढेर सारी अपेक्षाएँ हैं... महापद्म हांफने लगे तो आँखें बन्द कर शान्त लेटे रहे।
राजकुमार बिम्बिसार भी जैसे कुछ ही क्षणों में प्रौढ़ हो चला हो, उसका मन-मानस आन्दोलित हो उठा। पिता के शब्दों की गूंज ने उसे वर्तमान की जड़ता से बाहर निकाल कर कर्त्तव्य के सुघड़ मंच पर खड़ा कर दिया। चरित्र निर्माण की जो गहन शिक्षा उसे अब तक मिली थी, वह वैसे अनन्त गुणी सुदृढ़ होकर उसे ललकारने लगी- अरे बिम्बिसार ! तूं आयु से भले ही छोटा है, तेरे में सृजनशीलता के प्रसार की महती क्षमता है और तेरे लिये उसका सफल प्रयोग अनिवार्य होगा । राजकुमार भावी योजनाओं के उत्साह में फड़क उठा।
पिता के अन्तिम शब्द उसके कानों में पड़े पुत्र, मैं आशा के साथ जा रहा हूँ कि तुम मगध राज्य और उसकी राजधानी राजगृही नगरी के गौरव को मात्र अक्षुण्ण ही नहीं रखोगे, अपितु अपनी अटल चरित्रशीलता एवं लोकप्रिय प्रशासनिक प्रतिभा से उसे तुम निरन्तर अभिवृद्ध करते रहोगे तो राजकुमार बिम्बिसार को जैसे लगा कि उनकी आयु कुछ ही समय में कई गुनी हो गई है और चरित्रनिष्ठा का शौर्य जैसे उसके रोम-रोम में समा गया। उसकी वय गौण हो गई और उसका विवेक प्रौढ़ता की देहरी पर चढ़ गया। वह कड़क कर खड़ा हो गया-जैसे एक नये बिम्बिसार ने जन्म ले लिया हो, चरित्र की शक्ति जब प्रस्फुटित होती है और विस्तार पाती है तब उसकी कोई सीमा नहीं रहती। राजकुमार मृत पिता के चरणों में गिर कर धीर-गंभीर वाणी में घोषणा करने लगे-पिता श्री ! आप मरे नहीं, मेरे लिये सदा जीवित रहेंगे-आखिर आप ही तो मेरे चरित्र निर्माण के परम स्रोत रहे। मैं आपके आदेश का अपनी सम्पूर्ण चरित्रनिष्ठा, शक्ति एवं योग्यता के साथ जीवनपर्यन्त पालन करता रहूँगा और मगध राज्य के गौरव के नये शिखर तक पहुँचाऊंगा ।
और छोटा बिम्बिसार मगध के राजसिंहासन पर बैठकर सर्वजनहित एवं सर्वदेशीय प्रगति की बहुत बड़ी पीड़ा में समा गया - शासन को सुशासन एवं उन्नतिशील शासन बनाने के महद् कार्य में पूरे तन-मन से जुट गया कि राज्य की सारी जनता नई सृजनशीलता में दत्तचित्त बन जाए। अपने चरित्र बल, गहन विवेक एवं मंत्रियों की मंत्रणाओं के आधार पर राजा बिम्बिसार ने निष्कर्ष निकाला कि मात्र राजप्रासाद में बैठकर नहीं बल्कि जनता के निकट सम्पर्क में जाकर उसकी आकांक्षाओं को जानना होगा, महत्त्वाकांक्षाओं को उभारना होगा तथा मगध के नये गौरवपूर्ण भविष्य के लिये उसे प्रत्येक प्रकार से सृजनशील बनाना होगा। उन्होंने निश्चय किया कि वे स्वयं सब कुछ जानेंगे, जनमानस को परखेंगे तथा वांछित विकास के लिये प्रेरणा जगाएंगे।
राजा बिम्बिसार बन गए एक अश्वारोही और प्रत्यक्ष परिचय पाने लगे अपने मगध की एकएक पग भूमि का । अथक भ्रमण में उन्हें अनुभव हुआ कि मगध पिताश्री की दीर्घ रुग्णावस्था के