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विविधता में भी चरित्र की आत्मा एक और उसका लक्ष्य भी एक
वातावरण बना हुआ है, उसके लिये स्वार्थ के समान ही घृणा का दुर्गुण भी जिम्मेदार है। दूसरी ओर घृणा का विरोध भी सारे संसार में विवेकशील पुरुष कर रहे हैं। कामना, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, अभिमान
और सबसे ऊपर घृणा रूप अपने आन्तरिक शत्रुओं से लड़ने का आज उपयुक्त अवसर है जिसके लिये उत्कट चरित्र एवं अमित उत्साह से अपने आपको सम्पन्न बनाओ (स्वामी चिद्विलासानन्द)। घृणा पूर्ण रूप से विनाशात्मक है- दोनों के लिये, एक जो घृणा करता है और दूसरा जो घृणा को झेलता है। यह निरर्थक वृत्ति है जो किसी को भी खुशी नहीं देती (बेट्टी साईन, विख्यात पश्चिमी दार्शनिक)। जो घृणा करने में आनन्द मानते हैं वे ऐसा जहर खा रहे होते हैं जो धर्म की आत्मा को खा जाता है (विलियम हेजलिट)। सी एन एन पर एक संदेश प्रसारित हुआ था कि ओसामा बिन लादेन (आतंकवादियों का मुखिया) या तालिबान हकीकत में दुश्मन नहीं हैं। दुश्मन है नफरत। इस तथ्य को अगर आप भी अपने भीतर महसूस करें तो लगेगा कि आप इस दुश्मन को परास्त कर रहे हैं। चरित्र की आत्मा है- सम्पूर्ण मानव जाति की एकता
संसार के समग्र वातावरण को अच्छाई और बुराई के तराजू में तौलकर निष्कर्ष निकालना चाहिए-यही चरित्रशीलता का तकाजा होता है। भारतीय जन जीवन में जन्म से जो संस्कार बालक को दिये जाते हैं उनमें मुख्य यही होता है कि बालक भलीभांति समझे, अच्छाई के स्थानों को तथा बुराइयों को फिसलन को। दरअसल बुराई का कोई अलग अस्तित्व नहीं होता, वह एक तरह से अच्छाई का अभाव है, जैसे ज्ञान नहीं तो अज्ञान, निर्देशन नहीं तो भूल, स्मरण नहीं तो विस्मरण, शिष्टता नहीं तो मूर्खता, प्रकाश नहीं तो अंधकार, न्याय नहीं तो अन्याय, स्वास्थ्य नहीं तो रोगग्रस्तता, धन नहीं तो दीनता, शक्ति नहीं तो दुर्बलता और जीवन नहीं तो मृत्यु। अच्छाई के साथ तुलना करने पर ही बुराई का अस्तित्त्व बनता है। सोचें कि सांप या बिच्छु में जो जहर होता है, क्या वह अच्छा है या बुरा? सांप और बिच्छु के हिसाब से सोचें तो वह बुरा नहीं है, क्योंकि वह उनकी सुरक्षा का साधन है। इसका गहरा अर्थ यह निकलता है कि प्रकृति ने सब कुछ अच्छा ही अच्छा रचा है, बुरा कुछ भी नहीं।
फिर दुनिया में बुराइयाँ क्यों उभरकर आती है और क्यों वे इतनी भयानक हो उठती है कि रक्तपात और नरसंहार का कारण बन जाए? इस आतंकवाद को ही देखिए कि वह निर्दोषों की जान लेने पर तुला हुआ है। बुराइयाँ मनुष्य के मन में जन्म ले लेती है, प्रकृति के राज्य में नहीं। किसी मानव वर्ग के द्वारा स्वार्थ और लापरवाही का बर्ताव किया जाता है तो वह नये अभाव-अभियोगों को प्रकाशित करता है। एक ओर की चरित्रहीनता दूसरी ओर भी चरित्र को गिराती है। इसी चरित्रहीनता के कारण कई बार व्यक्ति के अधिकारों तथा समाज की स्वाधीनता के बीच ठीक से संतुलन नहीं रहता तो चारों ओर चरित्र का पतन प्रारंभ हो जाता है। चरित्र के पतन का सीधा-सा अर्थ होता है- बुराइयों का पैदा होना और पनपना। जब बुराइयाँ पनपती है तो अच्छाइयों का क्षरण होता है और अन्याय का माहौल बनता है। यह अन्याय का माहौल चरित्रहीनों को अपराध से आतंकवाद तक ले जाता है। __ ऐसी दशा में आज नया चारित्रिक दृष्टिकोण ढल रहा है कि संकुचित एवं हिंसक उद्देश्यों की जगह विश्व नागरिकता तथा सम्पूर्ण मानव जाति की एकता व खुशहाली का सिद्धांत अपनाया जाना चाहिए। राष्ट्रीयता एक सीमा तक बुरी नहीं है, किन्तु जब वही कट्टर बन जाए तो वह भी बुराइयों
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