________________
.
स्वकीयं
स्वकाय
.
अशांति, अराजकता, अविश्वास और अविवेक पूर्ण माहौल में शांति, सुव्यवस्था, विश्वास और विवेक की सृष्टि का निर्माण कोई कर सकता है तो वह मानव चरित्र ही कर सकता है।
चरित्र शब्द से हम मानव के उन उत्तम विचारों को, उदात्त व्यवहारों को तथा उज्ज्वल विचारों को ग्रहण करते हैं जिसमें न केवल उन मानवों का बल्कि समस्त चराचर जीव सृष्टि का लोक मंगल, लोक मैत्री और लोक हित का भाव सन्निहित है। चरित्र की शक्ति का अंदाज लगाना हमारे बलबूते की बात नहीं है, चरित्र ही मानव को महामानव बनाता है। जिसका चरित्र जितना पवित्र और निष्कलंक है वह मानव धरती का कल्पवृक्ष है, चिंतामणी रत्न है। चरित्र के सद्भाव से ही समग्र मानवीय सद्गुणों का प्रादुर्भाव होता है। चरित्र की दिव्यता को इसी से पहचाना जा सकता है कि जितने भी महान विचारक, लेखक, चिंतक एवं महापुरुष हुए हैं उन सबने चरित्र को जीवन की सर्वोच्च ऊँचाईयों को प्राप्त करने का सशक्त माध्यम बतलाया है।
महाकवि माद्य कहते हैं-दुर्बल चरित्र का व्यक्ति उस सरकण्डे के जैसा है जो हवा के हर झोंके के साथ झुक जाता है। यानि चारित्रिक दुर्बलता सबसे बड़ी दुर्बलता है जो जरा-सी प्रतिकूलता में क्षत-विक्षत हो जाती है और जो चरित्र में सुदृढ़ होते हैं वे आंधी और तूफानों के बीच भी अपने फौलादी व्यक्तित्व को स्थिर बनाए रखते हैं। ___ मुंशी प्रेमचंद कहते हैं-"चरित्रं का जो मूल्य है वह
और किसी वस्तु का नहीं। सही है-चरित्र से बढ़कर क्या हो सकता है? चरित्र ही सर्वस्व है-सर्वोपरि है और चरित्र सम्पन्न व्यक्ति सर्वगुण सम्पन्न होता है।"
XIX