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सुचरित्रम्
रहेगा तो सभी पांव अपने-अपने बल के अनुसार विकास के पथ पर प्रगति करते रह सकेंगे। धरातल है समाज का सामूहिक वातावरण और प्रबंध जो बनता और ढलता है समाज में स्थापित व्यवस्था की सुघड़ता से। यदि व्यवस्था अनुकूल हो तो सभी व्यक्ति प्रगतिशील बन सकते हैं। गति किन्हीं की तीव्र हो या किन्हीं की मंद, परन्तु चरित्र निर्माण की दिशा में चलना सबको आवश्यक है। चलते-चलते एक को दूसरे का सहयोग मिलता रहेगा और सर्व-विकास सार्थक होता जाएगा। - इस ग्रंथ का प्रमुख लक्ष्य यही है कि व्यक्ति को समाज से और समाज को व्यक्ति से ऐसा संबल मिलते रहने की जीवनशैली विकसित हो जाए कि चरित्र निर्माण से चरित्र सम्पन्नता का अनुक्रम अक्षुण्ण बना रहे। इस ग्रंथ का सम्पादन करने का सौभाग्य मुझे मिला है और मेरा सम्पूर्ण प्रयास रहा है कि आचार्य श्री के भाव सामान्य जन के मन-मानस तक पहुँचे, जो उन्हें चरित्र निर्माण के लिए प्रबोधित कर सकें।
सार की बात दो टूक शब्दों में यह है कि आज के भ्रष्ट आर्थिक युग में व्यक्ति को भी बदलना होगा और व्यवस्था को भी, ताकि सभी क्षेत्रों में लाभ का लोभ घटे और विषमता का रोग मिटे। अतः चरित्र निर्माण अभियान को सशक्त और सफल बनाना होगा। युवा पीढ़ी इस अभियान का नेतृत्व संभाले कि मुरझाए फूल खिल सकें, बुझे दीपक फिर से जल सकें और आंसू बहाते चेहरे मुस्कुरा सकें। अभियान की दिन दुगुनी-रात चौगुनी उन्नति की शुभकामना के साथ...
29.7.2007
शांतिचन्द्र मेहता ए-4, कुंभानगर, चित्तौड़गढ़
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