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सुचरित्रम्
आचारांग का सम्पूर्ण विषय वस्तु आचार के आधारभूत तत्त्वों, असदाचार के कारणों, पंचाचार विश्लेषण, आचार की मीमांसात्मक दष्टि, साधना के स्वरूप आदि सम्बन्धित सभी विषयों का गहनता से आकलन करता है। यहाँ इस आगम के 'लोकसार' नामक मात्र एक अध्याय का संक्षिप्त विवेचन इस उद्देश्य से प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि पाठक पूरे आगम की गहराई की एक झलक पा सकें।
लोकसार आचार के आदि ग्रंथ का पांचवां अध्ययन है, जिसमें छः उद्देशक हैं-चारित्र प्रतिपादन, चारित्र विकास के उपाय, वस्तु विवेक, स्वातंत्र्य मीमांसा, अखंड विश्वास तथा सत्पुरुषों की आज्ञा का फल। अध्ययन का आरंभ सारगर्भित है क्योंकि वह सार-वर्णन के साथ आगे बढ़ता है। प्रश्न किया गया है कि लोक अर्थात् संसार का सार क्या है? साथ ही उत्तर है-संसार का सार धर्म है। फिर प्रश्नोत्तर चलते हैं-धर्म का सार क्या है? धर्म का सार ज्ञान है। ज्ञान का सार क्या है? ज्ञान का सार संयम है। संयम का सार क्या है? संयम का सार मोक्ष है। मोक्ष का सार क्या है? मोक्ष का सार आनन्द है। सार रूप यह वर्णन स्वाभाविक और मार्मिक है। सार का यह क्रम समझने योग्य है। संसार में रहते हुए धर्म/कर्त्तव्य का पालन किया जाए तो एकता एवं समता की स्थिति सुदृढ़ बनेगी। इस शान्तिमय एवं सहयोगी वातावरण में अवश्य ही सब ओर ज्ञान की जिज्ञासा जागृत होगी तथा ज्ञान का अधिकतम विस्तार संभव बनेगा। ज्ञान के विस्तार का सुनिश्चित प्रभाव आचरण पर पड़ेगा और चरित्र गठन का भाव प्रबल बनेगा। चरित्र गठन का सुपरिणाम संयम ही होता है। संयम का अर्थ है ऐसा आत्मानुशासन कि जो संसार के समस्त प्राणियों के लिए हितावह सिद्ध हो । संयम का सार मोक्ष कहा गया है-यह गूढ़ विषय है। संयम की साधना से ही वह शक्ति उत्पन्न होती है जो प्रत्येक प्रकार के बन्धन से छुटकारा दिलाने में सक्षम होती है। यह सक्षमता सबसे पहले यहाँ और इस जीवन में मोक्ष की झलक दिखाती है। यह सत्य है कि मोक्ष का सार आनन्द है। किसी भी प्रकार के बन्धन से जब मुक्ति मिलेगी तो यह निश्चित है कि उसका पहला प्रभाव आनन्द के रूप में ही प्रकट होगा। ऐसी आनन्दानुभूति के लिए यह सार वर्णन क्रमिक, सचोट और सुन्दर है। ___ लोकसार अध्ययन के छः उद्देशकों (उपाध्ययनों) में वर्णित विषय हैं-कामनाएँ-वासनाएँ : उनके कारण व निवारण के उपाय, अप्रमाद की महत्ता का प्रतिपादन, परिग्रह त्याग तथा काम विरक्ति का सन्देश, अपरिपक्व साधु के एकाकी विहार की सम्भावित हानियाँ, कर्मबंध एवं उसके विवेक का निरूपण, आचार्य की महिमा, सत्य, श्रद्धा, मध्यस्थ भाव, अहिंसा एवं आत्मस्वरूप का सम्यक् विवेचन, मुक्तात्मा के स्वरूप का मार्मिक वर्णन आदि। मोक्षमार्ग के तीन रत्नों में तीसरे रत्न आचार या चारित्र का पूरे आगम में व्यापक विवेचन है और उसकी सारपूर्ण झलक इस अध्ययन में स्पष्टता से परिलक्षित होती है। ___ संसार का सार धर्म बताया गया है और धर्म की यथार्थ व्याख्या है-वस्तु का जो मूल स्वभाव है, वही उसका धर्म माना जाएगा। जैसे एक लकडी के टकडे का मल स्वभाव पानी की सतह पर तैरना है तो इसे उसका धर्म कह दीजिए। स्वभाव के साथ विभाव भी होता है। लकडी के टकडे को लोहे की पेटी में बन्द करके पानी में डाला जाएगा तो वह तैरेगा नहीं, डूब जाएगा। इसी प्रकार आत्मा का
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