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________________ चरित्र एवं समानार्थ शब्दों की सरल सुबोध व्याख्या नैतिकता की नींव पर चरित्रशीलता का त्वरित एवं श्रेष्ठ विकास होता है जिस के माध्यम से उत्तम गुणों एवं कार्यों की जैसे श्रृंखला ही चल पड़ती है। गुण और कर्म के आधार पर ही चरित्रशील अथवा चरित्रहीन या मानवता अथवा दानवता की पहिचान होती है। जहाँ जीवन और गुण एकमेक हो जाते हैं, वहाँ मानवता के सुमन खिले बिना नहीं रहते। जैसे दूध में शक्कर, दाल में नमक, फूल में सुगंध और दीपक में प्रकाश एकमेक हो जाते हैं, वैसे ही जीवन और सद्गुण एकमेक हो जाए तो कहना हो क्या? हमारे अन्तरंग मूल्यों का मापक यंत्र हमारा चरित्र है। जीवन व्यवहार में कोई व्यक्ति सफल है या विफल अथवा सर्वहित के क्षेत्र में वह उन्नति कर रहा है अथवा अवनति - उसका मूल्यांकन उसके चरित्र के आधार पर ही किया जा सकता है। चरित्र ऐसी कसौटी है जिस पर रगड़ कर किसी भी जीवन की परख की जा सकती है कि वह कितने टंच तक खरा है। एक व्यक्ति को बिना कछ कहेसुने मात्र उसके बोलने, सुनने, समझने व कार्य करने के ढंग को देखकर जाना जा सकता है कि वह कैसा है? जिस व्यक्ति के भीतर में अपने चरित्र को उन्नत बनाए रखने की तमन्ना होती है, वह कभी भी सत्य एवं श्रम से विमुख नहीं होता। उसकी श्रम के प्रति सच्ची निष्ठा होती है कि वह जो कुछ भी अर्जित करेगा, वह अपने श्रम के बल पर ही करेगा तथा श्रम से अर्जित आय से ही अपना निर्वाह चलाएगा। साथ ही वह अपने जीवन में सत्य को इस प्रकार आत्मसात् कर लेता है कि असत्य, छल, कपट के अंश तक को अपने व्यवहार से दूर कर लेता है। वह जैसे श्रम एवं सत्य के प्रति पूर्णतया समर्पित हो जाता है। जीवन के प्रत्येक क्रियाकलाप में वह श्रम एवं सत्य को सर्वोच्च स्थान देता है तो समाज के विशाल प्रांगण में भी वह श्रम एवं सत्य की प्रतिष्ठा के लिये अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने के लिये सदैव तत्पर रहता है। इस रूप में वह अपने जीवन को श्रेष्ठ सिद्धांतों पर आधारित बना देता है और सर्वत्र चरित्रशीलता के प्रसार का प्रेरक वातावरण रच देता है। ____ अपने मन से एक प्रश्न पूछिए। इस संसार में धर्म सम्प्रदाय अनेक हैं तो जाति एवं वर्ण व्यवस्थाएँ भी अनेक हैं। इन सबके बीच कटुता एवं संघर्ष का व्यवहार तो दिखाई देता है, किन्तु क्या इन सबको एकता के सूत्र में पिरो कर स्थायी शान्ति का सूत्रपात किया जा सकता है? यह जटिल प्रश्न है, सोचिए कि ऐसी कौनसी शक्ति है जिसके माध्यम से सच्ची एकता स्थापित की जा सकती है? गहन विचार मंथन के बाद आपको इसका उत्तर मिलेगा, अवश्य मिलेगा। वह सब एक मात्र शक्ति है चरित्र की शक्ति। चरित्र से प्राप्त आत्म बल कौनसा लक्ष्य है जिसे पा नहीं सकता? जब एक-एक व्यक्ति का चरित्र उभरता है और अपने व्यवहार की प्रेरणा सब ओर फैलाता है तब वहाँ निश्चित रूप से पूरे समाज और संसार में सबको जगाने वाला विशिष्ट आन्दोलन जन्म ले लेता है। यह आन्दोलन सबके जीवन में चरित्र शीलता को एक नया आयाम देता है। चरित्र की शक्ति तब सब में समानता एवं समता जगा देती है। क्यों बिखर जाता है चरित्रहीन व्यक्ति मिट्टी के एक ढेले की तरह? ___ यह अनुभूत सत्य है कि अर्थ या भौतिक साधन-सुविधाओं के अभाव में व्यक्ति उतने कष्ट का अनुभव नहीं करता, जितना घोर कष्ट वह अपनी चरित्र हीनता के कारण से भुगतता है। एक व्यकि 113
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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