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________________ सुचरित्रम् उस चरण का ही तो गुण है चलना और यह चलना जब शुरू होता है और निरन्तर होता रहता है तभी तो अपरिपक्वता की स्थिति से परिपक्वता की स्थिति तक पहुँचता है। चलना एक नादान का भी होता है और एक साधक का भी। चलना बेडोल भी होता है तो चलना सधा हआ भी। कभी चलना किसी भी प्रकार की अस्थिरता से ग्रस्त होता है तो वही चलना पक कर स्थिर एवं सुदृढ़ भी बन जाता है। आम आदमी की बोली में इस चलने को चला का नाम दिया गया है और इस चाल का जो रंग-ढंग सामने आता है उसे चलन कहा जाता है। इस प्रकार चाल चलन शब्द पूरे चरित्र शब्द का बोध होता है। सामान्य रूप से जब किसी व्यक्ति के चाल-चलन की आलोचना की जाती है तो उसका अभिप्राय उस व्यक्ति के चरित्र का स्वरूप बताना ही होता है। कुल मिला कर चरित्र एवं उसके समानार्थक शब्दों का मूल अन्तर्भाव एक ही होता है। यह अलग बात है कि एक-एक शब्द का व्यवहार विभिन्न परिस्थिति एवं समय के संदर्भ में किया जाता है। चरित्रशीलता गुण और कर्म के महल खड़े करती है नैतिकता की नींव पर सभी जानते हैं कि अंधकार को समाप्त करने के लिये सूर्य को कोई संघर्ष नहीं करना पड़ता है। सूर्योदय होते ही जैसे अंधकार स्वयं ही भाग जाता है, वैसे ही चरित्रशील बनते ही व्यक्ति की अनेकानेक विपत्तियाँ स्वतः ही समाप्त हो जाती है। यही नहीं, नैतिकता की नींव पर खड़ी की गई चरित्रशीलता गुण और कर्म के ऐसे ऊँचे प्रतिमान स्थापित करती है कि जो संसार के लिये पथ प्रदर्शक आदर्शों का रूप धारण कर लेते हैं। इन ऊँचे प्रतिमानों को गुण और कर्म के महल की उपमा दी जा सकती है। ___ चरित्रशीलता की पहली सीढ़ी होती है नैतिकता। नैतिक बने बिना कोई व्यक्ति चरित्रशील नहीं बन सकता है। नैतिक जीवन की ओर कदम बढ़ाना वास्तव में मानवता की ओर कदम बढ़ाना है। जो व्यक्ति नैतिकता के मार्ग पर चल पड़ता है, अन्य व्यक्ति ही नहीं, पूरा समाज उसका अनुकरण करने लगता है। इस दृष्टि से जो नैतिकता की नींव मजबूती से डाल दी तो समझिए कि आपने जीवन के सारभूत तत्त्व को प्राप्त करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा दिया है। यह समझने की बात है कि नैतिकता एक प्रकार की स्वस्थ जीवन प्रणाली का नाम है। इस पर किसी भू-भाग, धर्म-सम्प्रदाय या कि वर्ग संगठन का रंग नहीं होता। नैतिकता को न पूर्व का पक्षपात है, न पश्चिम का। उसे न काले आदमी का, न गोरे-पीले आदमी का पक्षपात है, न ही अन्याय सम्प्रदायों का। नैतिकता को कोई भी अपना सकता है और उनके अनुसार अपने जीवन-व्यवहार को शुद्ध एवं सद्गुणमय बना सकता है, नैतिकता को जिस व्यक्ति ने भी अपनाई है फिर जहाँ भी वह व्यक्ति जाता है, वह प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। नैतिकता की पक्की सड़क चरित्रशीलता की मंजिल तक जाती है। जहाँ पहुँचने में साधना के उस यात्री को किन्हीं विशेष कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है। इस संदर्भ में यह सुनिश्चित है कि नैतिकता से अर्जित की गई कम आमदनी भी उस व्यक्ति को जितना अन्दर-बाहर का सुख देती है, उतना सुख अनीति से प्राप्त अपार धन के स्वामी को भी नहीं मिलता। जो अनीति से धन प्राप्त करके सुख का अनुभव करना चाहता है, वह मानों कच्चे घड़े में पानी भरकर उससे अपनी प्यास बुझाना चाहता है। 112
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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