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________________ सुचरित्रम् है कि परिवर्तन त्वरित गति से होता है अथवा मंथर गति से अथवा उच्च श्रेणियों से निम्न श्रेणियों में होता है या निम्न श्रेणियों से उच्च एवं उच्चतर श्रेणियों में। यह साधक के आत्म-नियंत्रण का प्रश्न है कि वह भावों के शुभ प्रवाह को यानी कि अपनी चरित्रशीलता को न्यूनतम समय में सफल बनाकर चरण चमत्कार को साकार कर दे। तभी तो भव्य चरण कहते हैं-चलो, मजबूती से चलो और चलते रहो : ___ तभी तो भावुक के, प्रबुद्ध के, सन्त के, साधक के भव्य-चरण कहते हैं-चलो, निरन्तर चलो, मजबूती से चलो, सही दिशा में चलो और चलते रहो। जो चलते रहने का आनन्द है, जो यात्रा का उत्साह है, जो सफर का जोश है, वैसा आनन्द, उत्साह और जोश क्या बाद में भी बना रहता है? चरण गति से चरण शक्ति और चरण शक्ति से चरण चमत्कार। चरित्र विकास के आभ्यन्तर आल्हाद का क्या कहना? ऋषि मुनि कहते रहे हैं-चरेवेति, चरेवेति। गरुदेव रवीन्द्रनाथ ने तो यहां तक कहा कि और किसी का साथ न हो तब भी अकेले ही चलो परन्तु चलो अवश्य। लेटे मत रहो, बैठे मत रहोन शिथिलता, न निष्क्रियता, प्रमाद और अकर्मण्यता भी नहीं। इसीलिये जागो, उठो और चलना आरंभ कर दो। जीने का नाम ही जिन्दगी नहीं है, चलना इस जिन्दगी का मूलमंत्र है। ज्ञान और प्रेम की गंगा बहाते-चलो, खट्टी-मीठी खुशियों की फुहारों से सबके मन-मानस को भिगोते हुए चलो और थोड़े गिले शिकवों से जीवन में नित नया उत्साह एवं माधुर्य को भरते हुए चलो। इन्हीं इन्द्रधनुषी रंगों से अपने व सबके जीवन को सरोबार करते हुए चलो और मस्ती में चलते रहो। ___ आओ, जीवन को इन्द्रधनुषी रंगों से सजाने की कला सीखें-सिखावें। सुखपूर्वक जीवन जीने की अहम शर्त है कि व्यक्ति वर्तमान में जिए। सामान्यत: व्यक्ति अपने अतीत की स्मृतियों में खोया रहता है या फिर भविष्य के सुनहरे सपने संजोता रहता है। एक की स्मृति और दूसरे की चिन्ता-कल्पना में वर्तमान के कर्मठ पल यों ही निरर्थक बीत जाते हैं। समय के अनसार बदलते परिवेश में जीने का अभ्यास होना चाहिए। गिलास जितना भरा है उस भराव को देखकर खुश होना सीखें, उसे अधिक भरने का उत्साह पैदा करें लेकिन उसके खालीपन को कोसे नहीं, उस खालीपन को लेकर न निराश व हताश होवें और न ही कुंठाग्रस्त बनें। गिलास जितना भरा है पहले उसका सदुपयोग करें परन्तु उसके खालीपन पर ही अपने पूरे ध्यान को केन्द्रित करके समय का अपव्यय न करें। जीवन को रुचिकर तथा खुशहाल बनाने के लिये आवश्यक है कि व्यक्ति सर्वप्रथम स्वयं को ही भरपूर स्नेह एवं विश्वास दे। आत्म-स्नेह तथा आत्म-विश्वास से भरा व्यक्ति ही दूसरों को भरपूर स्नेह एवं विश्वास प्रदान कर सकता है। उसी में सहानभति एवं सहयोग की भावना बलवती होती है। पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन को एक सूत्र में बांधने में ये दोनों गुण अत्यन्त ही उपयोगी होते हैं। इनके बिना व्यक्ति का स्वयं का जीवन तो नीरस बनता ही है, बल्कि परिवार तथा समाज की सरसता एवं समरसता भी आगे नहीं बढ़ पाती है। ___ अच्छी दोस्ती जीवन को खुशहाल बनाने में अहम् भूमिका अदा करती है। कारण, जब कभी-भी व्यक्ति अपने को किसी परेशानी या समस्या से घिरा हुआ महसूस करता है तो एक अच्छे दोस्त से 104
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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