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________________ चरण चमत्कार से हो सकता है कैसा भी जीवन महिमा-मंडित अंगुलिमाल डाकू भी महात्मा बुद्ध से चरित्रोपदेश पाकर महात्मा बन गया। रामायण के रचयिता ऋषि बाल्मिकी भी पहले एक नृशंस डाकू ही थे। चरण-चमत्कार जब होता है तो कितना ही निकृष्ट जीवन क्यों न हो, वह महिमा मंड़ित होकर संसार के लिये पूजनीय बन जाता है। ___ चरण चमत्कार का प्रधान कारक होता है भाव! यह भाव जब हीन और मलिन होकर दुर्भाव का रूप लेता है तब चरण पिछड़ते हैं, चरित्र का पतन होता है तथा मनुष्यत्व पशुत्व एवं राक्षसत्व की ओर लुढ़कता है। यही भाव जब सरल, उदार और सदाशयी बनकर सद्भाव का सद्रूप धारण करता है तब चरित्र गठन एवं विकास. श्रेष्ठ होता हआ चरण-चमत्कार के रूप में दश्यमान होता है। भावों की उत्कृष्टता अथवा निकृष्टता से ही चरित्र का उत्थान और पतन होता है। ___ श्रेणिक राजा एक बार भगवान् महावीर के दर्शनार्थ उनकी सेवा में पहुंचे। मार्ग में उन्होंने एक सन्त को ध्यानस्थ देखा था तथा उनकी सौम्य मुद्रा से राजा अत्यन्त प्रभावित हुए थे, अतः उन्होंने भगवान से प्रश्न किया-'प्रभो! मैंने मार्ग में एक ध्यानस्थ मुनि के दर्शन किये थे, यदि वे इस समय कालग्रस्त हो जाएं तो किस गति को प्राप्त करेंगे?' महावीर कुछ देर शान्त रहे, फिर बोले-'राजन्! तुमने उनके दर्शन किये उसके और यह प्रश्न पूछने तक के समय के बीच भारी अन्तर आ गया है। वे प्रसन्नचन्द्र राजर्षि मुनि हैं और इस समय यदि वे मरण को प्राप्त हों तो निकृष्टतम गति सातवीं नरक में जावें। राजा आश्चर्यचकित, इतने प्रभावशाली मुनि और ऐसी गति? राजा कुछ भी समझ नहीं पाए। तब भगवान् ने ही समझाया-राजन् ! जब तुमने उनके दर्शन किये तब वे सौम्य भावों में रमण कर रहे थे और उनका मुखमंडल वैसी ही आभा से देदीप्यमान था। किन्तु उसके तुरन्त बाद उनके राज्य के दो सेवक सुमुख और दुर्मुख उस मार्ग से गुजरे तथा अपने पूर्व राजा को मुनिवेश में ध्यानस्थ देखकर जोरजोर से कहने लगे-अरे, हमारे ये राजा तो यहां खड़े हैं और उधर इनके राज्य पर पड़ोसी राजा ने आक्रमण कर दिया है तथा राजकुमार गंभीर संकट में फंस गये हैं। वे तो यह कह कर चले गये, किन्तु राजर्षि मुनि अपने वर्तमान को भूल कर भावों ही भावों में अतीत में चले गये। शरीर वही यथावत् खड़ा था किन्तु राजा तलवार भांजने लगे, शत्रुओं का पीछा करने लगे और शौर्य के साथ नरमुंड़ों के पहाड़ खड़े करने लगे। अपने भावों की निकृष्टतम दशा में अभी वे गोते लगा रहे हैं। ___ महावीर का भाव-विश्लेषण समझ कर राजा श्रेणिक ने थोड़ी-थोड़ी देर से एक ही प्रश्न बारबार पूछना शुरु किया कि इस समय यदि मुनि प्रसन्नचन्द्र मरण धर्म को पावें तो पुनर्जन्म में कौनसी गति प्राप्त करें। भगवान् भी उत्तर देते गये-नरकों से देवलोक, ग्रेवैयक आदि स्वर्ग भूमियों तक। तभी आकाश में देव-दुन्दुभियां बजने लगी और पुष्प वर्षा प्रारंभ हुई। श्रेणिक को इससे अन्तिम उत्तर मिल गया कि मुनि प्रसन्नचन्द्र को केवल ज्ञान प्राप्त हो गया है तथा अब वे मोक्षगामी हो गये हैं। ___यह भावों के ही निकृष्ट तथा उत्कृष्ट श्रेणियों का परिणाम है कि पलों में नरक से स्वर्ग और मोक्ष की गति बन गई। चरण चमत्कार भावों के ही ऐसे उत्थान से प्रतिफलित होता है जिसे जानसमझ कर सभी आश्चर्य से चकित रह जाते हैं। आत्म-स्वरूप की निकष्टता अथवा उत्कष्टता स्थायी नहीं होती. भाव प्रवाह के साथ वह परिवर्तित होती रहती है। यह भाव प्रवाह पर निर्भर होता 103
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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