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सुचरित्रम्
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उसकी दृष्टि का रूप - स्वरूप और उसकी कृति का रूप - स्वरूप यही सब मिलकर तो सृष्टि का रूप-स्वरूप बनाता है और उसे बदलने की बात भी तो दृष्टा ही करता है अपनी दृष्टि में नये रूपस्वरूप की कल्पना करके । अभिप्राय यह हुआ कि सृष्टि और दृष्टि का अभिन्न संबंध है तथा सृष्टि को बदलने की बात दृष्टि को बदलने के साथ जुड़ी हुई है।
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आज की दृष्टि आज की सृष्टि के परिवेश को किस रूप - स्वरूप में देख रही है? वह इस प्रकार है - सब ओर हिंसा का खून छितरा हुआ है, आक्रामक स्वार्थवादिता का तैलीय कीट चढ़ा हुआ है, भ्रष्टाचार का कीचड़ लिपटा है, क्रूरता के तेजाबी छीटें पड़े हैं, सत्तालिप्सा का विष्टा सना है और अन्य असंख्य बुराइयों के दाग लगे हैं। परिवेश जब ऐसा कालिमामय है तो भलाई का नाम और काम मुश्किल से ही मिलेगा। यहां विचारणीय बिन्दु यह पैदा होता है कि सृष्टि के ऐसे परिवेश को क्या सहन करते चले जाना चाहिए? कोई भी कहेगा कि नहीं सहना चाहिए । तब यह सोचना होगा कि सृष्टि के परिवेश की ऐसी दुर्दशा किसने की है? जिसने या जिन्होंने भी की क्यों की, कैसे की और किन छिछले स्वार्थों के लिए की तथा अब भी क्यों करते चले जा रहे हैं - यह जानना भी जरूरी है। उनकी पहचान पहले की जानी चाहिए क्योंकि इसके बिना न तो दुर्दशा करने वालों को बदला जा सकता है। 'कौन' का अर्थ तो साफ है, मनुष्य के सिवाय अन्य कौन ? किन्तु देखना यह है कि मनुष्यों का कौनसा वर्ग किन व्यक्तिगत या समूहगत लिप्साओं में समाज व सृष्टि पर यह अन्याय ढाये जा रहा है? वह क्यों सर्वहितैषी विचार तथा सर्वसुखदायी आचार से भ्रष्ट हुआ है? क्या विचार और आचार की चमक ही तो मंद नहीं हो रही है? क्या व्यक्ति का चरित्र ही पतनोन्मुख नहीं हो गया है? इसलिये मनुष्य के स्वभाव, विचार तथा आचार की विकृति पर सोचना आवश्यक है। मनुष्य अपने मूल स्वभाव से सरल और सदाशयी होता है किन्तु वातावरण की विकृतियां उस पर अपनी काली छाया डालती रहती है और उसे कलंकित बनाती रहती है। कई बार उसकी दृष्टि भी इस कालिमा से काली हो जाती है और उसी दृष्टि से अपनी कालिमा को देखने की अपेक्षा सृष्टि को कालिमामय देखने लग जाती है। सृष्टि की प्रकृति कभी काली नहीं होती है, काली होती है दृष्टि, अतः दृष्टि को बदलने की बात प्राथमिक है। यह दृष्टि बदलेगी चरित्र निर्माण से, क्योंकि चरित्र दृष्टि के कालेपन को हटाकर उसे उज्जवलता प्रदान करेगा । दृष्टा स्वयं का रूप - स्वरूप बदलेगा तो उसकी दृष्टि का रूप-स्वरूप भी बदलेगा और उसके साथ ही उसे सृष्टि नये रूप-स्वरूप में दिखाई देने लगेगी।
आज अपेक्षा है चरण चमत्कार की यानी चरित्र निर्माण के अभियान में अभूतपूर्व तेजी लाने की । यह तेजी दृष्टि को सही ढंग से बदलने में रामबाण का काम करेगी। दृष्टि बदलेगी, सृष्टि बदलेगी तथा सृष्टि दृष्टिमय एवं दृष्टि सृष्टिमय हो जायेगी।
कितना ही निकृष्ट भी क्यों न हो, वह जीवन महिमा मंड़ित होगा चरण चमत्कार से :
प्रतिदिन सात हत्याएं करने वाला घोर पापी अर्जुन माली भगवान् महावीर की चरण सेवा में पहुंचा तो उसका उद्धार हो गया। अनेक वध करके उनकी अंगुलियों की माला पहिनने वाला