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सुचरित्रम्
व्यवस्था में विकारों का समावेश होता है। व्यक्ति की विकृति परिवार पर असर डालती है, वहां समान व्यवहार के स्थान पर भेद बुद्धि से विषमता बढ़ने लगती है। इसी क्रम में गांव, नगर और राष्ट्र तक की व्यवस्था पर विपरीत असर पड़ता है। राष्ट्रों की कटुता अथवा शीत युद्ध जैसी स्थिति का भी अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की कार्य क्षमता एवं प्रणाली पर बुरा प्रभाव पड़ता है। दो राष्ट्रों के बीच युद्ध छिड़ जाने पर तो व्यवस्था छिन्न-भिन्न जैसी हो जाती है। व्यक्ति का अवमूल्यन हुआ तो समझिए कि संबंधित सारी व्यवस्था के मूल्यांकन का मापदंड नीचे गिरने लगता है। इस प्रकार मानवीय मूल्यों का महत्त्व स्पष्ट है।
परिवार से लेकर विश्व तक की सारी व्यवस्था मानवीय मूल्यों के क्षरण से क्यों विकृत बन जाती है-इसके कारणों को समझना चाहिये। सामहिक हितों पर चोट पहुंचाकर जब मानव निजी स्वार्थों में लिप्त होता है तथा उन स्वार्थों को निहित कर लेता है तब उसकी कर्त्तव्यबुद्धि नष्ट होने लगती है। जिस पद पर या जिस क्षेत्र में वह कार्य करता है, वह उस पद या क्षेत्र के प्रति अपने कर्तव्यों को भुला कर अधिकारों पर बल देने लगता है। कर्तव्य पालन के अभाव में अधिकारों का अस्तित्व ही कहां बनता है? कर्तव्यों का पालन नहीं होता है तो व्यवस्था दोषपूर्ण तथा पक्षपातपूर्ण बनती है। आज किसी भी स्तर की व्यवस्था में ये विकार खुले तौर पर देखे जा सकते हैं। ___ कर्तव्यों की अवहेलना तथा अधिकारों पर ही बल देने का दुष्परिणाम होता है। धीरे-धीरे व्यवस्था का प्रभावहीन होते जाना। इस प्रभावहीनता से क्रियाशीलता प्रभावित होती है तथा समाज का विकास अवरुद्ध हो जाता है। इससे भी आगे निहित स्वार्थों वर्गो तथा व्यक्तियों द्वारा अधिकारों का अतिक्रमण किया जाता है। जो व्यवस्था को चौपट ही करता जाता है। व्यवस्था के शिथिल होते जाने से स्वार्थियों का अभिमान आसमान छूने लगता है। तब वे अपने सामर्थ्य की सीमा को भुला कर अभिमान के आवेश में कोई भी अकर्म करने से नहीं हिचकिचाते। उन के माथे पर अहंकार का भूत सवार हो जाता है। अहंकार के साथ कितने विकार जुड़ जाते हैं इसका कोई हिसाब नहीं।
वर्तमान परिस्थितियों पर उपरोक्त विश्लेषण को घटाया जाए तो कोई संदेह नहीं रह जाएगा कि परिवार के संगठन से लेकर विकृत/अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की व्यवस्था कितनी विकृत एवं कितनी उत्तरदायित्व विहीन होती जा रही है। इसी की रोशनी में आकलन करना होगा कि आज का मानव अपने स्वभाव से कितना दूर होता जा रहा है और क्यों विभाव की अंधेरी गलियों में भटकता जा रहा है। अराजकता एवं अव्यवस्था की जड़ में है मानवीय मूल्यों का क्षरण, जब मानवता से ऊपर दानवता का वर्चस्व बढ़ेगा तो सुव्यवस्था स्थापित रह ही कैसे सकती है? आचार हीनता आज के मानव की समस्या है तो उसका समाधान है सदाचार : __निष्कर्ष यह निकलता है कि आज के मानव की सबसे बड़ी समस्या है आचारहीनता। मानवीय गुणों का ह्रास होने की स्थिति में आचार ही तो बिगडेगा। गुण या मूल्य वह तत्त्व है जो मन, वचन तथा व्यवहार में रच-बस जाता है। जैसे किसी चोट से काफी खून बह जाए तो उसका शरीर की शक्ति पर कुप्रभाव पड़ता है, उसी प्रकार गुणशील आचार अर्थात् चरित्रशीलता की हानि से मनोबल तथा