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________________ क्या विश्व की विकृत व्यवस्था मानवीय मूल्यों की मांग नहीं करती? क्षण में तुष्ट, रुष्ट अगले क्षण कैसा खेल रचाया है। विधि-विधान से बंधी सष्टि वह कौन भला, तुमको बांधे, कर लेते, मन, मनमानी तुम अजब तुम्हारी माया है। सचमुच में मन बड़ा ही कौतुकी है। इस मन के द्वारा हमें गमनागमन को उपयोगी तथा उद्देश्यवान बनाना है। अच्छा भीतर में आवे इसके लिये मन को विराट बनाना होगा, बुरा बाहर निकले इसके लिये मन को लचीला बनाना होगा। तब निर्बाध गमनागमन हो सकेगा। नये को प्रवेश देने के लिये पुराने को बाहर करना होता है और फिर भीतर-बाहर की प्रक्रिया से शुद्धता का वातावरण बनता है। जिस कमरे के कपाट बंद होते हैं, उसमें हवा, रोशनी नहीं जाती तो कूड़ा कचरा जमा हो जाता है, सीलन लग जाती है और मैल की परतें जम जाती है। उसके कपाट खोलने पर वातावरण बदलता हैनयापन आता है, पुरानी गंध मिटती है। यही दशा मन की है मन का दरवाजा खुलने से कुसंस्कारिता और जड़ता बाहर निकलेगी तो सत्संस्कारों तथा चेतना की सुवास भीतर रमेगी। गमनागमन होगा तो मन को गति मिलेगी, मनन की धारा गंभीर बनेगी। मनन और चिन्तन से भावमयता, आत्मालोचना एवं विशुद्ध वैचारिकता का प्रवाह बहता है। खोल मन, दरवाजा खोल। खोलने के लिये चाबी चाहिये। चाबी, ताला खोलती भी है और उसे बन्द भी करती है। आपके पास ऐसी ही चाबी होनी चाहिए जिससे जब जरूरत हो, मन के दरवाजे को खोलबन्द कर सकें। इस चाबी का नाम है मानवीय मूल्य, जो मन को नियंत्रण में रखते हैं और मानव को अकरणीय से बचाते हैं। मानवीय मूल्य गुप्त एवं सुप्त मन के दरवाजे बन्द कर देते हैं और जागृत एवं विवेकी मन के दरवाजे खोल देते हैं। इसी प्रकार बद्ध मन बुद्ध बनता है तो अशुद्ध मन शुद्ध होता है। मानव मन की वर्तमान परिस्थितियां विचित्र हैं, क्योंकि मानव अपने ही मूल्यों का अवमूल्यन कर रहा है और अपने को मानवता से गिरा कर दानवता का मुखौटा ओढ़ रहा है। ऐसी दुर्दशा में दानवी वृत्तियाँ और मनोवृत्तियाँ चारों ओर चिंघाड़ रही है और दानवी रूप धारण किये मानव अपने ही साथी मानवों पर अत्याचार ढा रहे हैं। जिससे व्यक्ति का चरित्र मलिन हो रहा है तो सामाजिक चरित्र कलंकित। दानवता से इसके द्वार ही नहीं खुलते बल्कि दरारें फटती हैं और दीवारें खड़ी हो जाती हैं। चाहे व्यक्ति का सबसे नीचे का स्तर हो तो उसका मन लालची, घमंडी, क्रोधी और क्रूर बन जाता है और सामुदायिक रूप से चाहे ग्राम संगठन हो या नगर, राष्ट्र या अन्तर्राष्ट्रीय संगठन हों, दानवी प्रवृत्तियाँ उन्हें शोषण, अन्याय, दमन और उत्पीडन के मंच बना देती हैं। विश्व तक की वर्तमान व्यवस्था विकृत है मानवीय मूल्यों के क्षरण से : ___ मानव जब अपनी गुणवत्ता से पतित होता है, तब नीचे से लेकर ऊपर तक की समूची व्यवस्था उस पतन से प्रभावित होती है। कारण, व्यवस्था का मूल तो मानव पर ही टिका होता है। मानव के मन, वचन, कर्म में जितने अंशों में मानवीय मूल्यों का क्षरण होता है। उतने ही अंशों में संबंधित 83
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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